रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Monday, July 8, 2013

बारिश

नॉएडा में आज नाज़ुक नाज़ुक हल्की हल्की प्यारी प्यारी बूंदा बंदी उन खूबसूरत लम्हों की याद दिला गयी
जब हम  हम यानि वोह और में आगन में भरे पानी में छापक छायया खेला करते थे एक दुसरे पर पानी
उछालते गारे के गोले एक दुसरे पर फेकने में कितना मज़ा आता था कागज़ की कश्ती बना कर पानी में
चलाना कितना मज़ा आता था मगर अब इस कंकरीट के जंगल में पैसा और शोहरत के पीछे इस तरह भाग
रहे हें की अपने लिए समय ही नही हे वोह कही हम कही बस यादे सिर्फ यादे सिर्फ यादे

Tuesday, May 14, 2013

बाबू जी लघु कथा

रोज रात को २   बजे बाबू  जी जाग जाते थे और  कभी कलमा पढ़ते कभी अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते कभी दुआ मांगते  ये सिलसिला बरसों से चला आ रहा था वो जोर जोर से बोलते और मेरी नींद खुल जाती बहुत गुस्सा भी आता मगर    कुछ कहने की हिम्मत नही होती थी  फिर यही सुनते सुनते में सो  जाता था .....मगर अब  जब बाबू जी नही रहे     मगर  मेरी आँख अब भी रोज़ रात  को  २ बजे खुल जाती हे  रात का सन्नाटा  और ख़ामोशी चारो ओर होती हे मगर  सुबह तक  में  सो नही पता  

Sunday, May 12, 2013

लघु कथा


पिता  जी के देहांत के  बाद छोटे  भाई  के घर  जाना हुआ उनकी  बताई  बातो का उनकी यादो  का रात भर जिक्र होता रहा अगले दिन घर वापिस से पहले उस कमरे को देख कर जहाँ पिता जी रहते थे में बोला ...अब के कमरा खाली हो गया पिता जी तुम्हारी और तुम्हारे घर की चोकीदारी तो करते ही थे उनके होते कोई इस घर तो क्या गली में भी नही फटकता था ...भाई बोला ..नही भाई मेरे दोस्त ने एक जर्मन शेफर्ड डॉग गिफ्ट में दिया था जो अब बड़ा हो गया हे इस कमरे में वो ही रहेगा और यहाँ किसी को फटकने भी नही देगा में ये सुन कर सुन्न हो गया

Saturday, May 11, 2013

सियासत

सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल गलती है ?
ये सच है, हम भी कल तक जिन्दगी पर नाज़ करते थे
मगर अब जिन्दगी पटरी से उतरी रेल लगती है
गलत बाज़ार की जानिब चले आये हैं हम शायद
चलो, संसद में चलते वहाँ भी सेल लगती है कोई भी अंदरूनी गन्दगी बाहर नहीं होती
हमें तो इस हुकूमत की भी किडनी फेल लगाती है

Friday, May 10, 2013

गर्व से कहें वंदे मातरम


    र्क साहब ने वन्देमातरम पढने से इंकार किया। ये खबर पढ़कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। बड़े दुःख की बात  है,  कि हमारे मुस्लिम भाइयों को वन्दे मातरम के मायने का ही नहीं पता। जबकि इस्लाम में अपने मुल्क को मादर -ए- वतन कहा गया है। जिसका मतलब भी वन्दे मातरम ही है। हमें अपनी ज़मीन को माँ कहने में शर्म कैसी? हिन्दू भाई तो ज़मीन को सिर्फ माँ कहते हैं, लेकिन हम मुस्लिम भारत माता को असली माँ समझते हैं। हम जिंदा रहकर भी अपनी माँ की हिफाज़त करते हैं और मरने के बाद भी धरती माँ के आँचल में हमेशा के लिए सो जाते हैं,  जबकि हिन्दू भाई माँ के साथ रहते ज़रूर हैं,  लेकिन मरने के बाद उसकी गोद में सो नहीं सकते। मैं गर्व से कहता हूँ वन्दे मातरम और अपने सभीमुस्लिम  भाइयों से भी कहता हूँ, कि आप भी कहें वन्दे मातरम।  

रउफ अहमद सिददिकी 
संपादक, जनता की खोज, 
नॉएडा, उ. प्र.

Thursday, May 9, 2013

झूँठ

आखिर तुम्हें झूँठ तो
बोलना ही था
और ....
बहाना भी बनाना था
क्योंकि ........
मैं तुम्हारी मजबूरी जो ठहरी |
और ....
तुम मेरी आदत और ज़रूरत |

शायद मेरी
आदत और ज़रूरत ,
आज तुम्हारी
मजबूरी भरी रिश्ते के आगे
फीकी पर गयी |

किसी दिन यह रिश्ता
भी दम तोड़ देगा
और ....
यादों के किसी किनारे
छिप भी जाएगा
लेकिन ...
यह भी सच है यह यादें
कभी मर नहीं पायेंगी

स्टिंग ऑपरेशन (लघु कथा)

शिकारी सिंह युवा एवं महत्वाकांक्षी पत्रकार था। जल्द से जल्द पैसा व शोहरत पाने की खातिर उसने स्टिंग ऑपरेशन का सहारा लेने का निश्चय किया और उसके स्टिंग ऑपरेशन के शिकार हो गये प्रतिशत ईमानदार व98 प्रतिशत बेइमान मंत्री फटीचर लाल। जब फटीचर लाल को इस बात का पता चला तो उन्होंने शिकारी सिंह को अपनी 2  प्रतिशत ईमानदारी का वास्ता दिया व स्टिंग ऑपरेशन को चैनल पर न चलाने का आग्रह किया तथा इसके एवज में एक करोड़ रुपये देने का वादा भी किया। शिकारी सिंह व फटीचर लाल के बीच होटल के गुप्त कमरे में यह सौदा चुपचाप तय हुआ। लेकिन हाय उन दोनों की बुरी किस्मत एक दूसरे युवा व महात्वाकांक्षी पत्रकार ने इस घटना का स्टिंग ऑपरेशन कर डाला। आजकल दोनोंशिकारी सिंह व फटीचर लालजेल में एक-दूसरे के कंधे पर सिर रखकर रोते रहते हैं।


लघुकथाकार: श्री सुमित प्रताप सिंह 

नई दिल्ली, भारत 

Wednesday, May 8, 2013

सरकार ने की युवाओं को ग़लत समझने की ऐतिहासिक ग़लती

सारा देश, कोई दस दिन से आक्रोशित था। घर-घर में बात हो रही थी। तीखी बात। हर कोई पूछता : आखिर सरकार को हो क्या गया है? वह हमारे 16 साल के बच्चों को सेक्स के लिए उकसाना क्यों चाहती है? 'भास्कर' ने देश में सबसे पहले 'संबंधों' की उम्र कम किए जाने के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। जन युद्ध। जिम्मेदारी निभाने के उद्देश्य से। अपने करोड़ों पाठकों के प्रति। समाज के प्रति। देश के प्रति।

प्रश्न केंद्र सरकार की महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने में हो रही ग़लती का ही नहीं था। न ही इसका कि शादी की उम्र 18 रहते हुए भी वह संबंधों की उम्र 16 वर्ष कर 'विवाह पूर्व सेक्स' को मान्यता देने की भयंकर भूल क्यों कर रही है? प्रश्न इन सभी से कहीं बड़ा था। प्रश्न भारतीय समाज के 'फैमिली वेल्यू सिस्टम' को तोडऩे के प्रयास का था। यह हमारे बच्चों के बारे में था। जिस पर सिर्फ हमारा और हमारा ही अधिकार है। किन्तु बंद कमरों में कुछ मंत्री बैठकर फैसला कर रहे थे। कर चुके थे। धिक्कारा जाना था। सो धिक्कारा गया। 

किन्तु जब 'भास्कर' के माध्यम से राष्ट्रीय विरोध उभरा, तब भी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूरी तरह आंखें बंद कर, अपनी मर्जी से यह फैसला ले लिया। तब देश सकते में आ गया। एक ही प्रश्न था - ऐसा क्या है इस समाज विरोधी प्रस्ताव में? क्या फायदा? क्या इतने चतुर राजनीतिज्ञ नहीं समझ पा रहे कि सारा देश ग़ुस्सा हो रहा है? नेता और सरकारें हर काम फायदे के लिए ही करते हैं। तो क्या इस बात में वे अपना फ़ायदा भूल गए? क्या है ऐसा? 

यही वह प्रश्न है - जिसका उत्तर ढूंढना आवश्यक है। निश्चित ही देश ने सही कहा - नेता व सरकारें हर काम राजनीतिक फायदे के लिए ही करते हैं। यहां भी उन्होंने भारी फायदा देखा। उन्हें लगा - देश में 65 करोड़ युवा हैं, जो निरंतर खुल रहे हैं। बढ़ रहे हैं। मीडिया-टीवी-इंटरनेट-मोबाइल ने उन्हें दुनिया दिखा दी है। कम उम्र में। नेटवर्किंग। सोशल नेटवर्किंग। कई तरह की महत्वाकांक्षाएं। बढ़ती-खुलती इच्छाएं। बस, यहीं ग़लती हो गई मंत्रियों से। ग़लती नहीं, बल्कि ऐतिहासिक ग़लती। हमारे बच्चों- युवाओं को आंकने में। पहचानने में। मंत्रियों को लगा, विरोध तो बड़े बुजुर्ग कर रहे हैं। युवा तो खुले दिल से अपना लेंगे। नौजवानों को भरोसा हो जाएगा कि यही सरकार उन्हें और उनकी आवश्यकताओं को समझती है। व्यावहारिक ढंग से। बदलते समाज को पहचानती है। आधुनिक है। अल्ट्रा मॉडर्न युवा, अल्ट्रा मॉडर्न नेतृत्व ही तो चाहते हैं। यानी यहां कच्ची उम्र के करोड़ों युवाओं में साल- दो साल बाद करोड़ों वोटरों को ढूंढा जा रहा था। युवा वोटों की राजनीति थी यह। इन युवा वोटों की ही वजह है कि राष्ट्रीय दबाव के दौरान द्रमुक, वामपंथी और बसपा जैसे कुछ विपक्षी दल भी ललचाए थे। 

इसी कड़ी में सरकार ने संभवत: 18 से कम उम्र में अपराध करने को 'बचपना' मानना ही जारी रखा है। 

बस यहीं ग़लती हुई। भारतीय युवा, खुले जरूर हैं किन्तु उनकी आस्था पारिवारिक मूल्यों में ही हैं। निश्चित ही कम उम्र में दुनियादारी की समझ आने लगी है। जिस सोशल नेटवर्किंग को सरकार पहले भी $गलत समझते हुए दमन करना चाहती थी, उस पर युवा क्या कर रहे हैं, यह मंत्रियों को नहीं पता। परिवार के फोटो शेयर कर रहे हैं दोस्तों से। कैट, नेट, गेट, सेट की क्या तैयारियां चल रही हैं, यह लिख रहे हैं। सब-कुछ खुला है। काफी कुछ ग़लत भी हो रहा है। उसे रोकने के लिए परिवार चिंतित हैं और कुछ न कुछ कर रहे हैं। किंतु उसके लिए उन्हें सरकार की जरुरत नहीं है। कुल जमा, आज की नई पीढ़ी शिक्षा, सेहत और भविष्य को लेकर जितना काम कर रही है - उतना पहले कभी नहीं हुआ। 

दिल्ली की नृशंस वारदात के बाद देश में अभूतपूर्व जागरूकता आई है। युवाओं का सबसे बड़ा योगदान रहा है उसमें। उन्हीं युवाओं ने सड़कों पर उतरकर महिलाओं की सुरक्षा के कठोर कानून बनाने पर विवश किया था। उन्हीं युवाओं ने 'संबंधों' की उम्र घटाने को भी पुरजोर नकार दिया है। विरोधी राजनीतिक पार्टियां इसे समझकर सरकार को सीधे रास्ते पर लाईं हैं। 'भास्कर' ने देश की भावना के अनुरूप ही अपनी जिम्मेदारी निभाई है। भारत के सबसे बड़े समाचार पत्र सबसे बड़े और सर्वाधिक सराहे जाने वाले समाचार पत्र समूह के रूप में 'भास्कर' के अपने विज़न में तय किया है कि वह सामाजिक-आर्थिक बदलावों का माध्यम बनेगा। इसमें स्पष्ट है कि समाज पर थोपे जाने वाले ग़लत और जनहित-विरोधी बदलावों के विरुद्ध खुलकर आवाज़ उठाना और जागरूकता पैदा करना। राजनीतिज्ञ, चाहे किसी दल या विचारधारा के हों, अपनी सुविधा और लाभ-शुभ के लिए ऐसे ग़लत बदलाव हम पर थोप सकते हैं। इसलिए हमें, हम आम भारतीय नागरिकों को ही, आंखें खुली रखनी होंगी। भास्कर हमेशा जगाता रहेगा।

गलियों के ये गैंग.

पिछले दिनों एक समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक एक 16 साल के लड़के को 15 हूडी लड़कों ने चाकू से गोदकर बेरहमी से सरे आम सड़क


 पर मार डाला . वह बच्चा छोड़ दो  , ऐसा मत करो की गुहार लगाता रहा और वे उसे चाकू से मारते रहे। यह इस साल का लन्दन में होने वाला पहला नाबालिक लड़के का खून है जबकि पिछले साल 17 वर्षीय एक युवक को ऐसे ही चाकू से वार करके मृत अवस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया था। रिकॉर्ड के मुताबिक सन 2005 से अब तक लन्दन में 146 नवयुवकों की हत्या हो चुकी है।  
जहां लन्दन पुलिस के सामने यह गैंग प्रमुख चुनौती बने हुए हैं वहीँ लन्दन में रहने वाले नवयुवकों के माता - पिता के लिए यह हमेशा एक खौफ का विषय रहा है। इन गैंगों  के सदस्य इलाके के आधार पर होते है सामान्यत: एक ही स्कूल केएक ही इलाके में आसपास में रहने वाले लड़के आपस में एक गैंग बना लिया करते हैं और एक साथ ही घूमते  फिरते और बाकी गतिविधियाँ करते हैं।  

ऐसा नहीं है कि सारे ही गैंग आपराधिक प्रवृति के होते हैं। इनमें से कुछ गैंग्स सिर्फ दोस्तों के साथ घूमने  - फिरने तक सीमित भी होते हैं



परन्तु अधिकांशत: सड़क पर हल्ला गुल्ला करनागंदगी फैलाना लोगों को डराना , शो ऑफ करना इनकी सामन्य गतिविधियाँ होती हैकुछ के पास चाकू और गन जैसे खतरनाक हथियार भी होते हैं जिनका इस्तेमाल ये शो ऑफ के अलावा छोटी मोटी लूटपाट और कभी कभी गंभीर अपराध को अंजाम देने के लिए भी करते हैं। इन गैंगों के सदस्य किसी भी अन्य नवयुवकों जैसे ही होते हैं -महंगे ट्रेक सूटखिसकती हुई जींस और हुड वाली जेकेट या टोपीरास्तों में शोर मचाते, मस्ती करतेऔर धुंआ उड़ाते और अपने साथियों को अलग ही स्ट्रीट नामों से जोर जोर से पुकारते हुए इन्हें देखा जा सकता है। इनके गैंग्स के भी अलग अलग नाम होते हैं।कुछ ऐसे ही गैंग सदस्यों से बात करने पर, ख़बरों के माध्यम से सामने आया कि इन गैंगों में शामिल होने के जो  कारण हैं वो अमूनन बहुत ही सामान्य से होते हैं - जैसे कुछ खास करने को नहीं है तो यही गैंग बना लोघर में माता पिता व्यस्त हैं, ध्यान रखने वाला कोई नहीं तो अकेलेपन को हटाने के लिए शामिल हो गए या फिर दूसरे  लड़कों की गुंडा गर्दी या छेड़ छाड़ से बचने के लिए किसी गैंग का हिस्सा बन गए और इस तरह वे अपने आप को सुरक्षित महसूस करते है कि कोई उनसे अब कुछ नहीं कह सकता। ऐसे में किसी भी नवयुवक के लिए इनकी जीवन शैली की तथाकथित कूलनेस से प्रभावित होकर इनके साथ शामिल हो जाना मुश्किल नहीं होता।परन्तु एक बार शामिल होकरगलती समझ आ जाने पर भी इससे निकलना उनके लिए असंभव होता है इसके लिए उन्हें जान से मारने की धमकी तक मिलती है और इसे अंजाम भी दिया जा सकता है।
2007 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले लन्दन में ही करीब 169 (करीब 5000 सदस्य ) अलग अलग ऐसे गैंग्स हैं जिनमें से एक चौथाई हत्या जैसे गंभीर मामलों में शामिल है

हालाँकि मेट पुलिस के अनुसार सितम्बर 2012 में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले वर्ष अप्रैल से ऐसे अपराधों में लगभग34% की कमी देखी गई है, 1500 से ज्यादा ऐसे गैंग सदस्य गिरफ्तार किये गए हैं जो आपराधिक मामलों में शामिल थेऐसे गैंग्स से निबटने के लिए अलग से खास यूनिट बनाई गई है 

इनके ऑफिसर, बच्चों को इन गैंग्स में शामिल होने से रोकने के लिए स्कूलों में जाकर कार्यक्रम चला रहे हैं। जहाँ बात चीत के जरिये बच्चों को इस तरफ आकर्षित होने से रोके जाने की कोशिश की जाती है।बच्चों को बताया जाता है कि  कोई उन्हें किसी गैंग में शामिल करने की कोशिश करे या जबरदस्ती करे तो कैसे इससे बचा जा सकें।
परन्तु यह समस्या युवा होते बच्चों के माता पिता या अविभावकों के लिए एक डर का कारण तो है ही। खासकर एशिया मूल के लोगों के लिए एक अजीब सी असमंजस की स्थिति रहती है। सामान्यत: लोग लड़की के पालन पोषण के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं परन्तु लन्दन में रहने वाले एशियाई माता पिता के लिए लड़के को बड़ा करना उससे भी बड़ी चुनौती  है। वह चाहते हैं उनका बेटा भी बाहर की दुनिया से रू ब रू होघूमे फिरेदोस्त बनाए काम करे और अनुकूल माहौल में अपने आपको ढालना सीखे। परन्तु एक डर में हमेशा जीते रहते हैं कि अनजाने में ही अपने हमउम्रों के साथ उनकी तरह कूल बनने के चक्कर में या उनके उकसाए जाने पर कहीं किसी आपराधिक गैंग का हिस्सा न बन जाए या फिर उनसे कोई दुश्मनी ही न मोल ले बैठे। 
वहीँ उसे अधिक सुरक्षा या अपने में सिमित रखने पर अंदेशा रहता है कि वह स्कूल में बाकी साथियों के सामने हीन भावना का शिकार न हो जायेसाथियों के मखौल उड़ाने की वजह से उनका अच्छा भला पढने लिखने वाला बच्चा कहीं गलत रास्ते का चुनाव न कर ले। बेशक कोई गैंग आपराधिक या नुकसानदेह न हो परन्तु उनका रहन सहन और चाल चलन एशियाई अभिभावकों को कभी रास नहीं आ सकता


Friday, May 3, 2013

जख्म

क्या कहूँ दोस्तों के बारे में  मेरी ज़िन्दगी के फूल हें ये लोग 

  • जब भी देते हें ज़ख्म देते  हें कितने  बा उसूल हें ये  लोग

Wednesday, May 1, 2013

पत्रकार बने

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jantakikhoj@gmail.com          जनता  की   खोज  पेपर  वे  मैगज़ीन

Tuesday, April 30, 2013

अश्क

लोग बहरे  हें इन्हें दिल की सुनाया न करो 
बंद दरवाजे पे आवाज़ लगाया न करो 
वक़्त की आंधी उड़ा  कर न कही  ले जाये 
रेत पर तुम मेरी तस्वीर बनाया न करो 
तेरे बीमार ने चेहरे पे कफ़न ओढ़ लिया
अब ज़रूरत नही तुम ज़ुल्फ़ का साया न करो 
उम्र भर कौन रहा साथ किसी के हम दम 
तुम मेरी याद में ये अश्क बहाया न करो

Friday, April 26, 2013

आज़म खान से अमरीका में बदसलूकी

आजम खान से 'बदसलूकी' मामले में दखल दे अमेरिका- भारत ने जताया विरोध
   यूपी के नगर विकास मंत्री और समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां  के साथ अमेरिका के बोस्‍टन (जहां हाल ही में ब्‍लास्‍ट हुए थे) में एयरपोर्ट पर 'बदसलूकी' के मामले पर भारत सरकार ने विरोध जताया है। आजम ने अपने ​अतिरिक्‍त निजी सचिव को बोस्‍टन से फोन करके गुरुवार देर रात बताया था कि उन्‍हें अमेरिका में एयरपोर्ट पर सिक्‍योरिटी अफसरों द्वारा ​बदसलूकी झेलनी पड़ी। उन्‍होंने चेकिंग के नाम पर वो किया, जो आज तक उनके साथ कहीं नहीं हुआ था। वह कोई अमेरिका घूमने नहीं गए थे, वह वहां मेहमान की हैसियत से गए थे, अमेरिका की प्रतिष्ठित हॉवर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्‍हें मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव के साथ आमंत्रित किया था। 

बोस्टन एयरपोर्ट पर आजम खान को दस मिनट तक रोककर पूछताछ के मामले में भारत ने औपचारिक विरोध दर्ज करा दिया है। सूत्रों के मुताबिक खान को इमिग्रेशन से एंट्री मिलने के बाद यूएस कस्टम एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन की एक महिला अधिकारी उन्हें पास के ही एक कमरे में आगे की पूछताछ के लिए ले गई। इसके बाद आजम ने इमिग्रेशन में हंगामा भी किया और कहा उन्हें मुसलमान होने की वजह से पकड़ा गया है। खान ने उस महिला अधिकारी से माफी की मांग की जिसने कहा था कि वह अपनी ड्यूटी कर रही हैं। हंगामा बढ़ता देख न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों ने बीच-बचाव कर मामले को शांत किया और खान को एयरपोर्ट से बाहर ले गए। 

वाशिंगटन भारतीय दूतावास के के प्रवक्ता एम श्रीधरन ने कहा कि भारतीय मिशन ने औपचारिक तौर पर विदेश मंत्रालय के सामने इस मामले को उठाया है। भारत ने इस मामले में गंभीर चिंता जताई है। श्रीधरन ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी अधिकारियों से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। ऐसे कदम उठाने को कहा है जिससे भविष्य में ऐसा दोबारा से न हो। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता पैट्रिक वेनट्रेल ने कहा कि उन्हें मामले की पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि अमेरिका में एयरपोर्ट के मामलों को देखने के अधिकार गृह मंत्रालय का है। 

आजम के मुताबिक, अब उनकी इस यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में शामिल होने की कोई इच्‍छा नहीं है। वह बस औपचारिकता ही पूरी करेंगे और जल्‍द से जल्‍द हिंदुस्‍तान लौट आएंगे। सूत्रों के अनुसार एयरपोर्ट पर चेकिंग के नाम पर आजम खां को काफी देर तक रोके रखा गया, वहीं इस दौरान कई बार पूछताछ के साथ ही उनके सामान और कपड़ों की कड़ी जांच की गई। बताते चलें कि यह अमेरिका का वही बोस्‍टन शहर है, जो पिछले दिनों मैराथन के दौरान बम धमाके से दहल गया था। 26/11 के बाद अमेरिका में यह दूसरा आतंकी हमला कहा गया। 

​देर रात सूचना अधिकारी खुर्शीद अहमद की तरफ से जो आधिकारिक बयान जारी किया गया, उसके अनुसार ​​उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री मोहम्मद आजम खां के अमेरिका पहुंचने प​र बोस्टन के एयरपोर्ट लोगान पर वहां के अधिकारियों द्वारा उन्हें अत्यधिक अपमानित, शर्मिंदा और परेशान किया गया,​ ​जबकि उनके पास डिप्लोमैटिक पासपोर्ट था। वह कुम्भ मेले की सफलता के बारे में बताने के लिए हारवर्ड यूनिवर्सिटी के आमंत्रण पर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ वहां गए हुए हैं। (टेक्‍सास में हुए धमाके के बाद तबाही का मंजर देखिए)

इस घटना से आहत आजम खां ने बड़े दुःख के साथ कहा कि मुसलमान होने की वजह से अमेरिकी अधिकारियों ने उनके साथ ऐसा शर्मनाक व्यवहार किया है, जो काबिले मजम्मत है। नगर विकास मंत्री ने कहा कि इस घटना से आहत होने की वजह से वह हार्वर्ड में ​ ​भाषण देंगे और अमेरिका में अपने निर्धारित शेड्यूल से पहले ही स्वदेश वापस आ जायेंगे। उन्होंने कहा कि  इस घटना के विरोध स्वरुप वह वहां पर अन्य निर्धारित कार्यक्रमों में भाग नहीं लेंगे।

महिलाएं होती है बेहतर बॉस?

Women are better boss?
एक नए अध्ययन में कहा गया है कि महिलाओं में निष्पक्ष निर्णय की योग्यता होती है। वे दूसरों के अधिकारों का ख्याल रखती है और मिल-जुलकर काम का रुख अपनाती है। इन खास गुणों की बदौलत वे बेहतर कारपोरेट लीडर साबित होती है। इसी अध्ययन की प्रमाणिकता पर राय संगिनी सिटी की..
घर की जिम्मेदारी हो या ऑफिस की लीडरशिप, महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा हमेशा बेहतर बॉस साबित होती है। इसकी वजह महिलाओं का हर मुद्दे पर गंभीर और दूरदर्शी होना है। पुरुष किसी भी काम पर त्वरित प्रतिक्रिया देते है, जबकि महिलाएं सोच-समझकर निर्णय लेती है।

सर्वे में भले ही महिलाओं को बेहतर बॉस बताया गया हो, लेकिन मेरी समझ से हर वह व्यक्ति जो नम्र और जिम्मेदार स्वभाव होता है, वही बेहतर बॉस होता है। इसमें महिला या पुरुष जैसी कोई बात नहीं है। बड़े कारपोरेट घरानों में कई ऐसे नाम आते है जो पुरुष है और बेहतर बॉस भी।

बेहतर बॉस वही होगा जिसमें नेतृत्व करने की क्षमता होगी और जो अपने पद के अनुरूप योग्यता भी रखता होगा। इसलिए बेहतर बॉस महिला या पुरुष में से कोई भी हो सकता है। यह जरूर है कि ऑफिस में महिलाओं का ध्यान कार्य पर रहता है, जबकि पुरुष इंटरनल पॉलिटिक्स से जल्दी ग्रसित हो जाते है।

कोपल का सुरीला सफर

    जिस उम्र में आमतौर पर बच्चों की गीत संगीत में रुचि उत्पन्न होती है उस उम्र में फरीदाबाद की कोपल ने अपने गानों की न सिर्फ सीडी लांच कर दी बल्कि देश के प्रतिष्ठित म्यूजिक रिएलिटी शो इंडियन आइडल में भी जगह बनाकर क्षेत्र का नाम रोशन कर दिया। संगीत गुरु अंजू मुंजाल की इस शिष्या की आवाज में वो कशिश व दर्द है कि ऑडीशन के दौरान रिएलिटी शो के जजों की आंखें भी नम हो गई।
ऐसे शुरू हुआ सफर
कोपल कहती हैं कि जब वह तीन साल की थी, तब उनकी मम्मी ड्राइंग, स्केटिंग, संगीत आदि की हॉबी कक्षाओं में ले जाती थी। बस वहीं से धीरे-धीरे संगीत में रुचि बढ़ती चली गई। पांच साल पहले संगम कला गु्रप की ओर से आयोजित एक प्रतियोगिता में संगीत गुरु अंजू मुंजाल से मुलाकात हुई। गायन सीखने के प्रति मेरी ललक को देखते हुए उन्होंने मुझे अपनी शिष्या बना लिया।
सीडी से मिली पहचान
यह कोपल की प्रतिभा ही है कि इतनी छोटी उम्र में ही उन्होंने 'कोपल' शीर्षक से अपनी एक सीडी में भी निकाल ली। इस सीडी में भू्रण हत्या पर कटाक्ष करता हुआ एक गीत 'क्यों इतनी गुस्सा हो मां काफी लोकप्रिय हुआ।
इंडियन आइडल में किया प्रभावित
इंडियन आइडल के फाइनल ऑडिशन के दौरान श्रेया घोषाल, विशाल-शेखर कोपल के सामने थे। कोपल ने भ्रूण हत्या पर सीडी में गाए गीत 'क्यों इतनी गुस्सा हो मां, क्या है मेरी गलती' को सुना कर निर्णायक मंडल को प्रभावित किया। इस गीत को सुन कर निर्णायकों की आंखें भी नम हो गई और उसका चयन मुंबई के लिए हो गया।
बोझ नहीं हैं बेटियां
कोपल जब भी अखबारों व टीवी न्यूज में भू्रण हत्या संबंधी खबरें पढ़ती-सुनती हैं, तो उसे बेहद दुख होता है। वह कहती हैं कि ऐसा नहीं है कि अनपढ़ लोग ही ऐसा कर रहे हैं बल्कि पढ़े-लिखे लोग भी बेटी को गर्भ में मारने में पीछे नहीं हैं। हम सबको यह समझना होगा कि बेटियां आज बोझ नहीं बल्कि गर्व करने का विषय हैं।
पंडित भीमसेन जोशी और किशोरी अमोनकर की हैं मुरीद
सुबह-शाम एक-एक घंटा गायन का नियमित अभ्यास करने वाली कोपल को शास्त्रीय गायन बेहद पसंद है और वह इसे सीख भी रही हैं। शास्त्रीय गायन की बारीकियों से रूबरू होने के लिए वह पंडित भीमसेन जोशी व किशोरी अमोनकर को बेहद तल्लीन होकर सुनती है। साथ ही श्रेया घोषाल, सोनू निगम भी उन्हें बेहद पसंद हैं।
पाश्‌र्र्वगायिका बनने के सपने के करीब
कोपल कहती हैं कि अब इंडियन आइडल में चयन होने के बाद उन्हें लगने लगा है कि उनका पा‌र्श्व गायिका बनने का सपना पूरा हो सकता है। यह एक बड़ा मंच है। इस अवसर को वह यूं ही गंवाना नहीं चाहेंगी। इसके लिए वह अभी से जुट गई हैं। कोपल चाहती है कि वह छोटे पर्दे पर अपने सुरों के जादू को बिखेर कर श्रेया घोषाल जैसी बनने के सपने को पूरा करे।
मात-पिता व गुरु का सहयोग
कोपल अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी मा रचना व बिजनेसमैन पिता अनुराग बिंद्रा और संगीत गुरु अंजू मुंजाल को देती हैं।

Wednesday, April 24, 2013

नेपाल


नेपाल: सब तरफ नजारा हिमालयी है
एवरेस्ट की धरती नेपाल किसी परिचय का मोहताज नहीं। हम भारतीयों का नेपाल से वैसे भी भावनात्मक रिश्ता सा है। हिमालय का आकर्षण दुनियाभर से सैलानियों को नेपाल खींच लाता है। यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी नेपाल के लिए आय के सबसे बड़े जरियों में से है। नेपाल में सैलानी पहाड़ व नदी से जुड़ी हर गतिविधि का रोमांच ले सकते हैं।
इनमें पर्वतारोहण, ट्रैकिंग, रॉक क्लाइंबिंग, राफ्टिंग, जंगल सफारी, पैराग्लाइंडिंग, माउंटेन फ्लाइट, माउंटेन बाइकिंग, बंजी जंपिंग आदि सब शामिल है। काठमांडू घाटी के अलावा पोखरा, चितवन, लुंबिनी, जनकपुर, एवरेस्ट क्षेत्र, अन्नपूर्णा रेंज, लंगतांग क्षेत्र आदि में पहाड़ का मजा लिया जा सकता है।
जोखिमभरी होने के बावजूद काठमांडू से लुकला तक की उड़ान समय बचाने के लिए बहुत पसंद की जाती है। लुकला से ही एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू होती है। इसके अलावा नेपाल में कई जगहों से एवरेस्ट देखने के लिए अल्ट्रालाइट या माइक्रोलाइट विमानों से सैर भी कराई जाती है।
कैसे जाएं: भारतीयों को नेपाल जाने के लिए न पासपोर्ट चाहिए होता है और न वीजा। उसके अलावा उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके से लेकर उत्तर प्रदेश व बिहार तक सड़क मार्ग से नेपाल जाने के कई रास्ते हैं। विदेश जाने का क्या शानदार तरीका है। राजधानी काठमांडू के लिए भारत के कई शहरों से सीधी उड़ान भी है। एवरेस्ट की चढ़ाई बेशक महंगी है लेकिन नेपाल में रुकने व घूमने के कई सस्ते विकल्प हैं। लेकिन भीतरी इलाकों में रास्ते अभी और बेहतर किए जा सकते हैं।

तेंदुलकर

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने आज मीडिया के सामने अपने 40वें जन्मदिन के अवसर पर केक काटा। केके काटते वक्त वे काफी तनाव में थे। इस विशेष मौके पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए सचिन ने कहा कि वे अपनी जिंदगी में केक काटते वक्त इससे पहले इतना तनाव में कभी नहीं थे।
उन्होंने कहा कि अनिल कुंबले से बातचीत करने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली। सचिन ने कहा कि यहां आने से पहले अनिल कुंबले ने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी और कहा कि चिंता मत करो, 40 तो सिर्फ एक आंकड़ा है। इसके अलावा उन्होंने दुनियाभर में मौजूद अपने तमाम प्रशंसकों को धन्यवाद कहा।
सचिन ने कहा कि यह उनके प्रशंसकों की दुआओं की ही देन है कि वे आज भी इस स्थिति में केक काट रहे हैं। सचिन ने कहा कि मैं उन सभी लोगों का बहुत आभारी हूं, जिन्होंने मेरे लिए बलिदान दिए हैं। सचिन ने कहा कि ऐसे कुछ खास लोग हैं, जिन्होंने मेरे लिए उस वक्त व्रत किया जब मैं घायल था। उन सभी का तहे दिल से मैं धन्यवाद करता हूं। हालांकि इससे मेरा काम पूरा नहीं हो जाता। मैं सभी से एक-एक कर मिलना चाहता था, लेकिन यह संभव नहीं था, इसलिए मैंने सोचा कि उनतक संदेश पहुंचाने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।
सचिन तेंदुलकर ने पत्‍‌नी अंजलि तेंदुलकर के साथ मिलकर मुंबई इंडियंस की तरफ से आयोजित विशेष कार्यक्रम में केक काटा। सचिन तेंदुलकर ने जैसे ही केक काटा, उनकी पत्‍‌नी अंजलि ने उन्हें पहला टुकड़ा खिलाया। उससे पहले पत्रकारों के विशेष अनुरोध के बाद सचिन ने दूर बैठी पत्‍‌नी अंजलि को अपने पास बुलाया। फिर उन्होंने मजाक में कहा कि अब आप ऐसा मत कह देना कि वे मेरे चेहरे पर केक लगाएं। गौरतलब है कि रात आठ बजे तेंदुलकर 40 पाउंड का विशाल केक ड्रेसिंग रूम के बाहर काटेंगे, जिसे कैब ने विशेष तौर पर तैयार कराया है।

Wednesday, April 17, 2013

मुझे प्यार है तुमसे

I love you!
मुझे प्यार है तुमसे
कभी नीम कभी शहद और कभी वह भी नहीं..। हम-तुम के रिश्ते में भी ऊंचे-नीचे पहाड़ आते रहते है। जैसे-तैसे इनकी नैया पार हो ही जाती है। प्यार भी करते है और इंकार भी यह खुद समझ नहीं पाते कि इनकी तकरार कब बदल जाएगी प्यार में। देखते है इस बार इन दोनों के बीच क्या होने वाला है।
मिस एक्स
1. तुम मुझे क्यों पसंद करते हो? मुझसे क्यों प्यार करते हो?
2. अगर तुम मुझे कारण नहीं बता सकते तो यह कैसे कह सकते हो कि मुझे पसंद करते हो।
3. प्रूव न करो, लेकिन मुझे कारण बताओ, जैसे मेरी सहेलियों के मित्र उन्हे प्यार करने का रीजन बताते हैं।
4. और..
5. क्योंकि तुम हैडसम हो, केयरिंग हो, स्मार्ट हो, भरोसेमंद हो और तुम मेरी रिस्पेक्ट भी करते हो। इसीलिए तो हम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते है।
6. क्यों? अभी तो तुमने मेरी कितनी तारीफ की और कितने सारे रीजन दिए। अब क्या हो गया? (रुंधे हुए स्वर में)
7. रोते हुए। आइ एम सॉरी। शायद मैं तुम्हें ठीक से समझ नहीं पाई थी, पर अब समझ गई हूं कि तुमसे ज्यादा इस दुनिया में मुझे कोई सच्चा प्यार नहीं कर सकता।
मिस्टर वाई
1. मैं वास्तव में तुमको पसंद करता हूं, लेकिन पसंद करने का कारण नहीं बता सकता।
2. मेरा यकीन मानो मैं प्यार करने कारण नहीं बता सकता, लेकिन अपने प्यार को प्रूव कर सकता हूं।
3. ओके, क्योंकि तुम बहुत सुंदर हो.. क्योंकि तुम्हारी आवाज मेरे दिल को छू जाती है.. क्योंकि तुम्हारी आंखों की गहराई में मैं डूब जाता हूं.. क्योंकि तुम केयरिंग पर्सन हो.. क्योंकि तुम्हारी सोच अच्छी है.. क्योंकि तुम मेरी सब कुछ हो..।
4. और.. तुम बताओ कि मुझे क्यों पसंद करती हो और प्यार करती हो?
5. नहीं, गलत। मैंने झूठ कहा था। मैं तुमसे प्यार नहीं करता।
6. क्या प्यार में कोई रीजन की जरूरत होती हैं? क्या किसी कारण से ही प्यार किया जाता है? मैं ऐसे प्यार को सच्चा नहीं मानता जिसमें कोई कारण छिपा हो, लेकिन मैं तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता, बिना किसी कारण के। इसलिए तुम ऐसे लड़के के पास जा सकती हो, जो तुम्हे किसी कारण से चाहे, लेकिन मैं तुम्हे हमेशा चाहता रहूंगा..।
7. मिस्टर वाई मिस एक्स के आंसू को हाथ में लेकर वादा करते है कि अब कभी वह उनकी आंखों में आंसू नहीं आने देंगे।
दिल्ली डेजायर

बांस का उयोग

मकान, कागज बनाने के साथ अन्य कई उपयोग में लाया जाने वाला बांस अब आपकी नाश्ते और खाने की थाली में भी शामिल हो रहा है। बांस का अचार तो बनता था, लेकिन अब आप इससे बने नूडल्स, कैंडी और पापड़ का भी जायका ले सकेंगे। बांस की उपयोगिता पर लगातार काम कर रहे हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आइएचबीटी) पालमपुर ने अब बांस की मदद से कुछ खाद्य पदार्थ भी तैयार कर लिए हैं जो न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि इनमें मौजूद प्रोटीन, कैल्शियम व फाइबर के कारण ये उत्पाद सेहत के लिए बेहद लाभकारी भी हैं।
बांस का ऐसा उपयोग पहले कहीं नहीं हुआ है। इन खाद्य उत्पादों को संस्थान के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के दम पर तैयार किया है। खाद्य पदार्थो के अलावा वैज्ञानिकों ने बांस का कोयला भी तैयार किया है। यह कोयला जहां जलने में बेहद आसान है, वहीं इससे ऊर्जा व लकड़ी संरक्षण में भी मदद मिलेगी। आइएचबीटी पालमपुर पिछले कई वर्षो से बांस पर शोध कर रहा है। बांस की कई प्रजातियां तैयार करने के लिए मशहूर इसी संस्थान में बांस का पहला संग्रहालय भी है, जहां दरवाजे से लेकर फर्श तक सब बांस का ही बना है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, बांस की मदद से कपड़ा, लकड़ी की टाइल, शैंपू, प्लाइ बोर्ड सहित कई पदार्थ तैयार किए जा सकते हैं। इस दिशा में कई देशों में कार्य भी हो चुका है। भारत के बंगलूर में यह कार्य चल रहा है। आइएचबीटी पालमपुर में तैयार उक्त खाद्य पदार्थो में नूडल्स बनाने में करीब 35 प्रतिशत बांस के फाइबर व आटे का प्रयोग किया गया है। इसी तरह से बडि़यों व पापड़ में भी करीब 35 प्रतिशत बांस के फाइबर का प्रयोग हुआ है, जबकि कैंडी पूरी तरह से बांस से ही बनाई गई है। यह कैंडी खाने में बेहद स्वादिष्ट है। वैज्ञानिकों की मानें तो इन खाद्य पदार्थो में जो तत्व है, वह शरीर के लिए बेहद गुणकारी है। खासकर फाइबर से शरीर बेहद स्वस्थ रहता है। इन पदार्थो को इसी वर्ष लोगों के बीच पहुंचाने की योजना है। निदेशक आइएचबीटी डॉ. पीएस आहूजा का कहना है कि संस्थान लगातार बांस से नये उत्पाद व बांस की नई प्रजातियों के लिए कार्य कर रहा है।

शोभना

शोभना वेल फेअर सोसाइटी के सयोजक सुमित प्रताप जी ने आज मुझे पत्रकारिता के लिए सम्मानित किया 

Saturday, March 30, 2013

अजमेर शरीफ

अजमेर शरीफ

राजथान में वेसे तो देखने लायक बहुत कुछ हे  लेकिन ख्वाजा गरीब नवाज़ की दरगाह एक खास मुकाम
रखती हे कहते हें वहां जो भी दिल से मांगो मुराद पूरी होती हे काफी दिनों से हम भी वहां जाने का इरादा
कर रहे थे मार्च में हमे ये मोका मिल गया अजमेर के साथ हम जयपुर की भी सेर कर आये अजमेर में
दरगाह के अलावा आप देख सकते हे निज़ाम गेट यह नवाब हेदर ने बनवाया था अलीम दरवाज़ा इसे
शाहजहाँ ने बनवाया था अकबरी मस्जिद इसे बादशाह अकबर ने बनवाया था बुलंद दरवाज़ा यह सुल्तान
महमूद खिलजी की यादगार हे सेहन चिराग यह एक बहुत बड़ा पुरानी किस्म का पीतल का चिराग हे
बड़ी देग इसमें सवा नो मन चावल पक सकता हे छोटी देग इसे सुल्तान जहांगीर ने बनवाकर पेश की थी
महफिल खाना इसे नवाब बशिरुल्दोला ने अपने बेटे की पैदाइश की ख़ुशी में बनवाया था खानकाह यह
ईमारत आज कल यतीम खाने की शकल में मोजूद हे लंगर खाना यह अकबर बादशाह ने गरीबो के लिए
बनवाया था अहताए चमेली इस में पाक मजारे हे इन मजारो और उनकी दीवारों पर चमेली के पोधे छाए हें
मस्जिद संदल खाना इसे जहाँगीर ने बनवाया था ओलिया मस्जिद यह मस्जिद वहां हे जहाँ ख्वाजा जी
नमाज़ पढ़ते थे शाहजहानी मस्जिद  संगेमरमर से बी नी यह मस्जिद शाहजहाँ ने बनवाई थी बेगमी दालान
इसे शहजादी जहानारा ने बनवाया था रोज़ा ए मुनावगरा इसे ख्वाजा हुसेन नागोरी ने बनवाया था गुम्बद शरीफ के अन्दर रौशनी इसमें मोमबत्ती से रौशनी की जाती हे ...आप को जब भी वक़्त मिले आप अजमेर
  जरुर जाये ....ख़ुदा हाफिज ...

Monday, March 25, 2013

दीवाना

तुम कुछ न करो बस मुझे दीवाना बना दो

अब इसके सिवा तुम से कोई काम  नहीं हे

मर के भी दिखा देंगे तेरे चाहने वाले

मरना कोई जीने से बड़ा काम नही हे










मसयूसियां

मायूसिया समेट  कर सारे जहान की 

जब कुछ ना बन सका तो मेरा दिल बना दिया 

रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया : रऊफ अहमद सिददीकी आ गए ब्लॉग जगत में

रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया : रऊफ अहमद सिददीकी आ गए ब्लॉग जगत में: रऊफ अहमद सिददीकी लेखक व पत्रकार हैं इनके चाहने वाले इस जग में कई हज़ार हैं जनता की खोज इनका एक नेक विचार है  इनके दिल में सबके लिए बहुत प्यार है

Sunday, March 24, 2013

खटमल

दोस्तो यह पहली रचना अपने इस ब्लॉग पर डाल रहा हूँ. आशा है, कि आपको पसंद आएगी.
                      

एक  खटमल ने 
कहा चिंघाड़ कर 
आप अच्छा नही करेंगे 
मुझे यूँ मार  कर
हम दोनों की 
खानदानी दुश्मनी हो जायगी
हानि दोनों को पहुचेगी
क्योंकि मुझमें आप से ज्यादा जूनून हैं
मत भूलिए मेरी रगों में भी 
आप का ही खून है. 

Friday, March 22, 2013

रऊफ अहमद सिददीकी आ गए ब्लॉग जगत में

रऊफ अहमद सिददीकी लेखक व पत्रकार हैं
इनके चाहने वाले इस जग में कई हज़ार हैं
जनता की खोज इनका एक नेक विचार है 
इनके दिल में सबके लिए बसा केवल प्यार है। 


श्री रऊफ अहमद सिददीकी 
मुख्य संपादक, जनता की खोज पत्रिका 
पता: वी- 19, हरोला मार्केट, 
सेक्टर- 5, नॉयडा, उत्तर प्रदेश 
फोन नं- 09958430778