रोज रात को २ बजे बाबू जी जाग जाते थे और कभी कलमा पढ़ते कभी अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते कभी दुआ मांगते ये सिलसिला बरसों से चला आ रहा था वो जोर जोर से बोलते और मेरी नींद खुल जाती बहुत गुस्सा भी आता मगर कुछ कहने की हिम्मत नही होती थी फिर यही सुनते सुनते में सो जाता था .....मगर अब जब बाबू जी नही रहे मगर मेरी आँख अब भी रोज़ रात को २ बजे खुल जाती हे रात का सन्नाटा और ख़ामोशी चारो ओर होती हे मगर सुबह तक में सो नही पता
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