रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Saturday, May 11, 2013

सियासत

सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल गलती है ?
ये सच है, हम भी कल तक जिन्दगी पर नाज़ करते थे
मगर अब जिन्दगी पटरी से उतरी रेल लगती है
गलत बाज़ार की जानिब चले आये हैं हम शायद
चलो, संसद में चलते वहाँ भी सेल लगती है कोई भी अंदरूनी गन्दगी बाहर नहीं होती
हमें तो इस हुकूमत की भी किडनी फेल लगाती है

1 comment:

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