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Thursday, June 8, 2017

मुसलमानों के सब्र का इम्तिहान न ले

मुसलमानों के सब्र का इम्तिहान ना ले।

दिल्ली का बॉर्डर सोनिया विहार अम्बे एन्क्लेव के 25 मुस्लिम परिवारों को रमज़ान में नमाज़ की दिक्कत हुई तो किसी अललाह के नेक बंदे ने 100 ग़ज़ का प्लाट मस्जिद को वक़्फ़ कर दिया,मस्जिद के ज़िम्मेदार लोगों ने सोनिया विहार थाने से मस्जिद में नमाज़ की परमिशन ली जो कि पुलिस द्वारा दे दी गई.अभी 8 दिन ही नई मस्जिद में नमाज़ अदा होते हुए थे कि कुछ अमन के दुश्मनों को यह मस्जिद चुभ गई.बिना किसी वजह बिना किसी तज़दीक के करीबन एक हज़ार आदमियों का झुंड आज दोपहर आता है और बरछा कुदाल,घन, सब्बल लेकर मस्जिद की छत से जय श्री राम के नारे लगाते हुए मस्जिद को तोड़ना शुरू करदेते हैं और देखते ही देखते मस्जिद ज़मीन दोज़ हो जाती है.सवाल यह उठता है कि यह भीड़ तंत्र कभी तो किसी अख़लाक़ को पीट पीटकर उसकी जान ले लेता है तो यही भीड़ तंत्र किसी को ज़िंदा आग के हवाले करदेता है,यह वही भीड़ तंत्र है जिसने 1992 में बाबरी शहीद की तो इस ही भीड़ तंत्र ने गुजरात,मुज़फ्फरनगर को अंजाम दिया.एक तरफ़ अमन शांति का परचम लहराने की बात करने वाले सेक्युलर लोग तो कभी दलाल और भांड मीडिया की आज आंखों पर पट्टी बंधी लगती है.? एक समुदाय की प्राथना स्थल ज़मीन दोज़ कर देने की ख़बर दिखाना तो दूर किसी काने सेक्युलर का मुंह तक नही खुल रहा ?
भीड़ ही अगर सब फैसले करने लगीं तो यक़ीन जानिए यह संविधान खतरे में है.ये पुलिस प्रशासन यह न्यायपालिकाएँ सब पर ताले मार देने होंगे. एक पल को मान भी लिया जाए कि मस्जिद अवेध थी(जब कि पुलिस परमिशन का लेटर अभी भी मौजूद है) चलिये मान भी लिया मस्जिद के पास नमाज़ पढ़ाने की परमिशन भी नही थी ? फ़िर एक भीड़ जो "जय श्री राम"के नारे लगाते हुए कैसे फैसला सुना सकती है ? और अगर मस्जिद अवेध रूप से बनाई भी गई थी तो क्यों उस भीड़ ने क़ानून का सहारा नहीं लिया ? आखिर उस भीड़ को मस्जिद शहीद करने की इजाज़त किसने दी ? पुलिस भी सवालों के घेरे में है कि एक इमारत तोड़ने में करीबन  2/3 घन्टे तो लगे ही होंगे तो क्यों पुलिस वहां नहीं पोहची.
स्थानीय लोग बता रहें हैं कि मस्जिद तोड़ने वालों में से 60% बहारी लोग थे यानी के वही गुजरात,मुज़फ्फरनगर, और सहारनपुर वाला फॉर्मूला की भीड़ बाहर से बुलाओ मारों काटो लूटो और ग़ायब हो जाओ.
अगर ऐसे ही एक समुदाय विशेष एक धर्म विशेष को निशाने पर रखकर जगह जगह इस तरह की बड़ी वारदातें अंजाम दी गईं तो फ़िर इस देश में गृह युद्ध कभी भी छिड़ सकता है.अभी भी मुसलमानों को यहां की क़ानून व्यवस्था और न्यायपालिकाओ पर यक़ीन है लेकिन ऐसी घटनाओं से यह यक़ीन दिन बा दिन कमज़ोर होता जा रहा है.सवाल एक और भी की अगर ये प्राथना स्थल अल्पसंख्यकों का ना होकर बहुसंख्यकों का होता तो क्या होता तब भी यह प्रशासन यह मीडिया ऐसे ही अपनी बगलों में मूंह डालकर बैठे रहते ?

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