सारा
देश, कोई दस दिन से आक्रोशित था। घर-घर में बात हो रही थी। तीखी बात। हर
कोई पूछता : आखिर सरकार को हो क्या गया है? वह हमारे 16 साल के बच्चों को
सेक्स के लिए उकसाना क्यों चाहती है? 'भास्कर' ने देश में सबसे पहले
'संबंधों' की उम्र कम किए जाने के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। जन युद्ध।
जिम्मेदारी निभाने के उद्देश्य से। अपने करोड़ों पाठकों के प्रति। समाज के
प्रति। देश के प्रति।
प्रश्न केंद्र सरकार की
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने में हो रही ग़लती का ही नहीं
था। न ही इसका कि शादी की उम्र 18 रहते हुए भी वह संबंधों की उम्र 16 वर्ष
कर 'विवाह पूर्व सेक्स' को मान्यता देने की भयंकर भूल क्यों कर रही है?
प्रश्न इन सभी से कहीं बड़ा था। प्रश्न भारतीय समाज के 'फैमिली वेल्यू
सिस्टम' को तोडऩे के प्रयास का था। यह हमारे बच्चों के बारे में था। जिस पर
सिर्फ हमारा और हमारा ही अधिकार है। किन्तु बंद कमरों में कुछ मंत्री
बैठकर फैसला कर रहे थे। कर चुके थे। धिक्कारा जाना था। सो धिक्कारा गया।
किन्तु
जब 'भास्कर' के माध्यम से राष्ट्रीय विरोध उभरा, तब भी केंद्रीय
मंत्रिमंडल ने पूरी तरह आंखें बंद कर, अपनी मर्जी से यह फैसला ले लिया। तब
देश सकते में आ गया। एक ही प्रश्न था - ऐसा क्या है इस समाज विरोधी
प्रस्ताव में? क्या फायदा? क्या इतने चतुर राजनीतिज्ञ नहीं समझ पा रहे कि
सारा देश ग़ुस्सा हो रहा है? नेता और सरकारें हर काम फायदे के लिए ही करते
हैं। तो क्या इस बात में वे अपना फ़ायदा भूल गए? क्या है ऐसा?
यही
वह प्रश्न है - जिसका उत्तर ढूंढना आवश्यक है। निश्चित ही देश ने सही कहा -
नेता व सरकारें हर काम राजनीतिक फायदे के लिए ही करते हैं। यहां भी
उन्होंने भारी फायदा देखा। उन्हें लगा - देश में 65 करोड़ युवा हैं, जो
निरंतर खुल रहे हैं। बढ़ रहे हैं। मीडिया-टीवी-इंटरनेट-मोबाइल ने उन्हें
दुनिया दिखा दी है। कम उम्र में। नेटवर्किंग। सोशल नेटवर्किंग। कई तरह की
महत्वाकांक्षाएं। बढ़ती-खुलती इच्छाएं। बस, यहीं ग़लती हो गई मंत्रियों से।
ग़लती नहीं, बल्कि ऐतिहासिक ग़लती। हमारे बच्चों- युवाओं को आंकने में।
पहचानने में। मंत्रियों को लगा, विरोध तो बड़े बुजुर्ग कर रहे हैं। युवा तो
खुले दिल से अपना लेंगे। नौजवानों को भरोसा हो जाएगा कि यही सरकार उन्हें
और उनकी आवश्यकताओं को समझती है। व्यावहारिक ढंग से। बदलते समाज को पहचानती
है। आधुनिक है। अल्ट्रा मॉडर्न युवा, अल्ट्रा मॉडर्न नेतृत्व ही तो चाहते
हैं। यानी यहां कच्ची उम्र के करोड़ों युवाओं में साल- दो साल बाद करोड़ों
वोटरों को ढूंढा जा रहा था। युवा वोटों की राजनीति थी यह। इन युवा वोटों की
ही वजह है कि राष्ट्रीय दबाव के दौरान द्रमुक, वामपंथी और बसपा जैसे कुछ
विपक्षी दल भी ललचाए थे।
इसी कड़ी में सरकार ने संभवत: 18 से कम उम्र में अपराध करने को 'बचपना' मानना ही जारी रखा है।
बस
यहीं ग़लती हुई। भारतीय युवा, खुले जरूर हैं किन्तु उनकी आस्था पारिवारिक
मूल्यों में ही हैं। निश्चित ही कम उम्र में दुनियादारी की समझ आने लगी है।
जिस सोशल नेटवर्किंग को सरकार पहले भी $गलत समझते हुए दमन करना चाहती थी,
उस पर युवा क्या कर रहे हैं, यह मंत्रियों को नहीं पता। परिवार के फोटो
शेयर कर रहे हैं दोस्तों से। कैट, नेट, गेट, सेट की क्या तैयारियां चल रही
हैं, यह लिख रहे हैं। सब-कुछ खुला है। काफी कुछ ग़लत भी हो रहा है। उसे
रोकने के लिए परिवार चिंतित हैं और कुछ न कुछ कर रहे हैं। किंतु उसके लिए
उन्हें सरकार की जरुरत नहीं है। कुल जमा, आज की नई पीढ़ी शिक्षा, सेहत और
भविष्य को लेकर जितना काम कर रही है - उतना पहले कभी नहीं हुआ।
दिल्ली
की नृशंस वारदात के बाद देश में अभूतपूर्व जागरूकता आई है। युवाओं का सबसे
बड़ा योगदान रहा है उसमें। उन्हीं युवाओं ने सड़कों पर उतरकर महिलाओं की
सुरक्षा के कठोर कानून बनाने पर विवश किया था। उन्हीं युवाओं ने 'संबंधों'
की उम्र घटाने को भी पुरजोर नकार दिया है। विरोधी राजनीतिक पार्टियां इसे
समझकर सरकार को सीधे रास्ते पर लाईं हैं। 'भास्कर' ने देश की भावना के
अनुरूप ही अपनी जिम्मेदारी निभाई है। भारत के सबसे बड़े समाचार पत्र सबसे
बड़े और सर्वाधिक सराहे जाने वाले समाचार पत्र समूह के रूप में 'भास्कर' के
अपने विज़न में तय किया है कि वह सामाजिक-आर्थिक बदलावों का माध्यम बनेगा।
इसमें स्पष्ट है कि समाज पर थोपे जाने वाले ग़लत और जनहित-विरोधी बदलावों
के विरुद्ध खुलकर आवाज़ उठाना और जागरूकता पैदा करना। राजनीतिज्ञ, चाहे
किसी दल या विचारधारा के हों, अपनी सुविधा और लाभ-शुभ के लिए ऐसे ग़लत
बदलाव हम पर थोप सकते हैं। इसलिए हमें, हम आम भारतीय नागरिकों को ही, आंखें
खुली रखनी होंगी। भास्कर हमेशा जगाता रहेगा।
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