रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Tuesday, May 14, 2013

बाबू जी लघु कथा

रोज रात को २   बजे बाबू  जी जाग जाते थे और  कभी कलमा पढ़ते कभी अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते कभी दुआ मांगते  ये सिलसिला बरसों से चला आ रहा था वो जोर जोर से बोलते और मेरी नींद खुल जाती बहुत गुस्सा भी आता मगर    कुछ कहने की हिम्मत नही होती थी  फिर यही सुनते सुनते में सो  जाता था .....मगर अब  जब बाबू जी नही रहे     मगर  मेरी आँख अब भी रोज़ रात  को  २ बजे खुल जाती हे  रात का सन्नाटा  और ख़ामोशी चारो ओर होती हे मगर  सुबह तक  में  सो नही पता  

Sunday, May 12, 2013

लघु कथा


पिता  जी के देहांत के  बाद छोटे  भाई  के घर  जाना हुआ उनकी  बताई  बातो का उनकी यादो  का रात भर जिक्र होता रहा अगले दिन घर वापिस से पहले उस कमरे को देख कर जहाँ पिता जी रहते थे में बोला ...अब के कमरा खाली हो गया पिता जी तुम्हारी और तुम्हारे घर की चोकीदारी तो करते ही थे उनके होते कोई इस घर तो क्या गली में भी नही फटकता था ...भाई बोला ..नही भाई मेरे दोस्त ने एक जर्मन शेफर्ड डॉग गिफ्ट में दिया था जो अब बड़ा हो गया हे इस कमरे में वो ही रहेगा और यहाँ किसी को फटकने भी नही देगा में ये सुन कर सुन्न हो गया

Saturday, May 11, 2013

सियासत

सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल गलती है ?
ये सच है, हम भी कल तक जिन्दगी पर नाज़ करते थे
मगर अब जिन्दगी पटरी से उतरी रेल लगती है
गलत बाज़ार की जानिब चले आये हैं हम शायद
चलो, संसद में चलते वहाँ भी सेल लगती है कोई भी अंदरूनी गन्दगी बाहर नहीं होती
हमें तो इस हुकूमत की भी किडनी फेल लगाती है

Friday, May 10, 2013

गर्व से कहें वंदे मातरम


    र्क साहब ने वन्देमातरम पढने से इंकार किया। ये खबर पढ़कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। बड़े दुःख की बात  है,  कि हमारे मुस्लिम भाइयों को वन्दे मातरम के मायने का ही नहीं पता। जबकि इस्लाम में अपने मुल्क को मादर -ए- वतन कहा गया है। जिसका मतलब भी वन्दे मातरम ही है। हमें अपनी ज़मीन को माँ कहने में शर्म कैसी? हिन्दू भाई तो ज़मीन को सिर्फ माँ कहते हैं, लेकिन हम मुस्लिम भारत माता को असली माँ समझते हैं। हम जिंदा रहकर भी अपनी माँ की हिफाज़त करते हैं और मरने के बाद भी धरती माँ के आँचल में हमेशा के लिए सो जाते हैं,  जबकि हिन्दू भाई माँ के साथ रहते ज़रूर हैं,  लेकिन मरने के बाद उसकी गोद में सो नहीं सकते। मैं गर्व से कहता हूँ वन्दे मातरम और अपने सभीमुस्लिम  भाइयों से भी कहता हूँ, कि आप भी कहें वन्दे मातरम।  

रउफ अहमद सिददिकी 
संपादक, जनता की खोज, 
नॉएडा, उ. प्र.

Thursday, May 9, 2013

झूँठ

आखिर तुम्हें झूँठ तो
बोलना ही था
और ....
बहाना भी बनाना था
क्योंकि ........
मैं तुम्हारी मजबूरी जो ठहरी |
और ....
तुम मेरी आदत और ज़रूरत |

शायद मेरी
आदत और ज़रूरत ,
आज तुम्हारी
मजबूरी भरी रिश्ते के आगे
फीकी पर गयी |

किसी दिन यह रिश्ता
भी दम तोड़ देगा
और ....
यादों के किसी किनारे
छिप भी जाएगा
लेकिन ...
यह भी सच है यह यादें
कभी मर नहीं पायेंगी

स्टिंग ऑपरेशन (लघु कथा)

शिकारी सिंह युवा एवं महत्वाकांक्षी पत्रकार था। जल्द से जल्द पैसा व शोहरत पाने की खातिर उसने स्टिंग ऑपरेशन का सहारा लेने का निश्चय किया और उसके स्टिंग ऑपरेशन के शिकार हो गये प्रतिशत ईमानदार व98 प्रतिशत बेइमान मंत्री फटीचर लाल। जब फटीचर लाल को इस बात का पता चला तो उन्होंने शिकारी सिंह को अपनी 2  प्रतिशत ईमानदारी का वास्ता दिया व स्टिंग ऑपरेशन को चैनल पर न चलाने का आग्रह किया तथा इसके एवज में एक करोड़ रुपये देने का वादा भी किया। शिकारी सिंह व फटीचर लाल के बीच होटल के गुप्त कमरे में यह सौदा चुपचाप तय हुआ। लेकिन हाय उन दोनों की बुरी किस्मत एक दूसरे युवा व महात्वाकांक्षी पत्रकार ने इस घटना का स्टिंग ऑपरेशन कर डाला। आजकल दोनोंशिकारी सिंह व फटीचर लालजेल में एक-दूसरे के कंधे पर सिर रखकर रोते रहते हैं।


लघुकथाकार: श्री सुमित प्रताप सिंह 

नई दिल्ली, भारत 

Wednesday, May 8, 2013

सरकार ने की युवाओं को ग़लत समझने की ऐतिहासिक ग़लती

सारा देश, कोई दस दिन से आक्रोशित था। घर-घर में बात हो रही थी। तीखी बात। हर कोई पूछता : आखिर सरकार को हो क्या गया है? वह हमारे 16 साल के बच्चों को सेक्स के लिए उकसाना क्यों चाहती है? 'भास्कर' ने देश में सबसे पहले 'संबंधों' की उम्र कम किए जाने के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। जन युद्ध। जिम्मेदारी निभाने के उद्देश्य से। अपने करोड़ों पाठकों के प्रति। समाज के प्रति। देश के प्रति।

प्रश्न केंद्र सरकार की महिलाओं की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाने में हो रही ग़लती का ही नहीं था। न ही इसका कि शादी की उम्र 18 रहते हुए भी वह संबंधों की उम्र 16 वर्ष कर 'विवाह पूर्व सेक्स' को मान्यता देने की भयंकर भूल क्यों कर रही है? प्रश्न इन सभी से कहीं बड़ा था। प्रश्न भारतीय समाज के 'फैमिली वेल्यू सिस्टम' को तोडऩे के प्रयास का था। यह हमारे बच्चों के बारे में था। जिस पर सिर्फ हमारा और हमारा ही अधिकार है। किन्तु बंद कमरों में कुछ मंत्री बैठकर फैसला कर रहे थे। कर चुके थे। धिक्कारा जाना था। सो धिक्कारा गया। 

किन्तु जब 'भास्कर' के माध्यम से राष्ट्रीय विरोध उभरा, तब भी केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूरी तरह आंखें बंद कर, अपनी मर्जी से यह फैसला ले लिया। तब देश सकते में आ गया। एक ही प्रश्न था - ऐसा क्या है इस समाज विरोधी प्रस्ताव में? क्या फायदा? क्या इतने चतुर राजनीतिज्ञ नहीं समझ पा रहे कि सारा देश ग़ुस्सा हो रहा है? नेता और सरकारें हर काम फायदे के लिए ही करते हैं। तो क्या इस बात में वे अपना फ़ायदा भूल गए? क्या है ऐसा? 

यही वह प्रश्न है - जिसका उत्तर ढूंढना आवश्यक है। निश्चित ही देश ने सही कहा - नेता व सरकारें हर काम राजनीतिक फायदे के लिए ही करते हैं। यहां भी उन्होंने भारी फायदा देखा। उन्हें लगा - देश में 65 करोड़ युवा हैं, जो निरंतर खुल रहे हैं। बढ़ रहे हैं। मीडिया-टीवी-इंटरनेट-मोबाइल ने उन्हें दुनिया दिखा दी है। कम उम्र में। नेटवर्किंग। सोशल नेटवर्किंग। कई तरह की महत्वाकांक्षाएं। बढ़ती-खुलती इच्छाएं। बस, यहीं ग़लती हो गई मंत्रियों से। ग़लती नहीं, बल्कि ऐतिहासिक ग़लती। हमारे बच्चों- युवाओं को आंकने में। पहचानने में। मंत्रियों को लगा, विरोध तो बड़े बुजुर्ग कर रहे हैं। युवा तो खुले दिल से अपना लेंगे। नौजवानों को भरोसा हो जाएगा कि यही सरकार उन्हें और उनकी आवश्यकताओं को समझती है। व्यावहारिक ढंग से। बदलते समाज को पहचानती है। आधुनिक है। अल्ट्रा मॉडर्न युवा, अल्ट्रा मॉडर्न नेतृत्व ही तो चाहते हैं। यानी यहां कच्ची उम्र के करोड़ों युवाओं में साल- दो साल बाद करोड़ों वोटरों को ढूंढा जा रहा था। युवा वोटों की राजनीति थी यह। इन युवा वोटों की ही वजह है कि राष्ट्रीय दबाव के दौरान द्रमुक, वामपंथी और बसपा जैसे कुछ विपक्षी दल भी ललचाए थे। 

इसी कड़ी में सरकार ने संभवत: 18 से कम उम्र में अपराध करने को 'बचपना' मानना ही जारी रखा है। 

बस यहीं ग़लती हुई। भारतीय युवा, खुले जरूर हैं किन्तु उनकी आस्था पारिवारिक मूल्यों में ही हैं। निश्चित ही कम उम्र में दुनियादारी की समझ आने लगी है। जिस सोशल नेटवर्किंग को सरकार पहले भी $गलत समझते हुए दमन करना चाहती थी, उस पर युवा क्या कर रहे हैं, यह मंत्रियों को नहीं पता। परिवार के फोटो शेयर कर रहे हैं दोस्तों से। कैट, नेट, गेट, सेट की क्या तैयारियां चल रही हैं, यह लिख रहे हैं। सब-कुछ खुला है। काफी कुछ ग़लत भी हो रहा है। उसे रोकने के लिए परिवार चिंतित हैं और कुछ न कुछ कर रहे हैं। किंतु उसके लिए उन्हें सरकार की जरुरत नहीं है। कुल जमा, आज की नई पीढ़ी शिक्षा, सेहत और भविष्य को लेकर जितना काम कर रही है - उतना पहले कभी नहीं हुआ। 

दिल्ली की नृशंस वारदात के बाद देश में अभूतपूर्व जागरूकता आई है। युवाओं का सबसे बड़ा योगदान रहा है उसमें। उन्हीं युवाओं ने सड़कों पर उतरकर महिलाओं की सुरक्षा के कठोर कानून बनाने पर विवश किया था। उन्हीं युवाओं ने 'संबंधों' की उम्र घटाने को भी पुरजोर नकार दिया है। विरोधी राजनीतिक पार्टियां इसे समझकर सरकार को सीधे रास्ते पर लाईं हैं। 'भास्कर' ने देश की भावना के अनुरूप ही अपनी जिम्मेदारी निभाई है। भारत के सबसे बड़े समाचार पत्र सबसे बड़े और सर्वाधिक सराहे जाने वाले समाचार पत्र समूह के रूप में 'भास्कर' के अपने विज़न में तय किया है कि वह सामाजिक-आर्थिक बदलावों का माध्यम बनेगा। इसमें स्पष्ट है कि समाज पर थोपे जाने वाले ग़लत और जनहित-विरोधी बदलावों के विरुद्ध खुलकर आवाज़ उठाना और जागरूकता पैदा करना। राजनीतिज्ञ, चाहे किसी दल या विचारधारा के हों, अपनी सुविधा और लाभ-शुभ के लिए ऐसे ग़लत बदलाव हम पर थोप सकते हैं। इसलिए हमें, हम आम भारतीय नागरिकों को ही, आंखें खुली रखनी होंगी। भास्कर हमेशा जगाता रहेगा।

गलियों के ये गैंग.

पिछले दिनों एक समाचार पत्र में छपी खबर के मुताबिक एक 16 साल के लड़के को 15 हूडी लड़कों ने चाकू से गोदकर बेरहमी से सरे आम सड़क


 पर मार डाला . वह बच्चा छोड़ दो  , ऐसा मत करो की गुहार लगाता रहा और वे उसे चाकू से मारते रहे। यह इस साल का लन्दन में होने वाला पहला नाबालिक लड़के का खून है जबकि पिछले साल 17 वर्षीय एक युवक को ऐसे ही चाकू से वार करके मृत अवस्था में सड़क पर छोड़ दिया गया था। रिकॉर्ड के मुताबिक सन 2005 से अब तक लन्दन में 146 नवयुवकों की हत्या हो चुकी है।  
जहां लन्दन पुलिस के सामने यह गैंग प्रमुख चुनौती बने हुए हैं वहीँ लन्दन में रहने वाले नवयुवकों के माता - पिता के लिए यह हमेशा एक खौफ का विषय रहा है। इन गैंगों  के सदस्य इलाके के आधार पर होते है सामान्यत: एक ही स्कूल केएक ही इलाके में आसपास में रहने वाले लड़के आपस में एक गैंग बना लिया करते हैं और एक साथ ही घूमते  फिरते और बाकी गतिविधियाँ करते हैं।  

ऐसा नहीं है कि सारे ही गैंग आपराधिक प्रवृति के होते हैं। इनमें से कुछ गैंग्स सिर्फ दोस्तों के साथ घूमने  - फिरने तक सीमित भी होते हैं



परन्तु अधिकांशत: सड़क पर हल्ला गुल्ला करनागंदगी फैलाना लोगों को डराना , शो ऑफ करना इनकी सामन्य गतिविधियाँ होती हैकुछ के पास चाकू और गन जैसे खतरनाक हथियार भी होते हैं जिनका इस्तेमाल ये शो ऑफ के अलावा छोटी मोटी लूटपाट और कभी कभी गंभीर अपराध को अंजाम देने के लिए भी करते हैं। इन गैंगों के सदस्य किसी भी अन्य नवयुवकों जैसे ही होते हैं -महंगे ट्रेक सूटखिसकती हुई जींस और हुड वाली जेकेट या टोपीरास्तों में शोर मचाते, मस्ती करतेऔर धुंआ उड़ाते और अपने साथियों को अलग ही स्ट्रीट नामों से जोर जोर से पुकारते हुए इन्हें देखा जा सकता है। इनके गैंग्स के भी अलग अलग नाम होते हैं।कुछ ऐसे ही गैंग सदस्यों से बात करने पर, ख़बरों के माध्यम से सामने आया कि इन गैंगों में शामिल होने के जो  कारण हैं वो अमूनन बहुत ही सामान्य से होते हैं - जैसे कुछ खास करने को नहीं है तो यही गैंग बना लोघर में माता पिता व्यस्त हैं, ध्यान रखने वाला कोई नहीं तो अकेलेपन को हटाने के लिए शामिल हो गए या फिर दूसरे  लड़कों की गुंडा गर्दी या छेड़ छाड़ से बचने के लिए किसी गैंग का हिस्सा बन गए और इस तरह वे अपने आप को सुरक्षित महसूस करते है कि कोई उनसे अब कुछ नहीं कह सकता। ऐसे में किसी भी नवयुवक के लिए इनकी जीवन शैली की तथाकथित कूलनेस से प्रभावित होकर इनके साथ शामिल हो जाना मुश्किल नहीं होता।परन्तु एक बार शामिल होकरगलती समझ आ जाने पर भी इससे निकलना उनके लिए असंभव होता है इसके लिए उन्हें जान से मारने की धमकी तक मिलती है और इसे अंजाम भी दिया जा सकता है।
2007 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले लन्दन में ही करीब 169 (करीब 5000 सदस्य ) अलग अलग ऐसे गैंग्स हैं जिनमें से एक चौथाई हत्या जैसे गंभीर मामलों में शामिल है

हालाँकि मेट पुलिस के अनुसार सितम्बर 2012 में आई रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले वर्ष अप्रैल से ऐसे अपराधों में लगभग34% की कमी देखी गई है, 1500 से ज्यादा ऐसे गैंग सदस्य गिरफ्तार किये गए हैं जो आपराधिक मामलों में शामिल थेऐसे गैंग्स से निबटने के लिए अलग से खास यूनिट बनाई गई है 

इनके ऑफिसर, बच्चों को इन गैंग्स में शामिल होने से रोकने के लिए स्कूलों में जाकर कार्यक्रम चला रहे हैं। जहाँ बात चीत के जरिये बच्चों को इस तरफ आकर्षित होने से रोके जाने की कोशिश की जाती है।बच्चों को बताया जाता है कि  कोई उन्हें किसी गैंग में शामिल करने की कोशिश करे या जबरदस्ती करे तो कैसे इससे बचा जा सकें।
परन्तु यह समस्या युवा होते बच्चों के माता पिता या अविभावकों के लिए एक डर का कारण तो है ही। खासकर एशिया मूल के लोगों के लिए एक अजीब सी असमंजस की स्थिति रहती है। सामान्यत: लोग लड़की के पालन पोषण के लिए, उसकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहते हैं परन्तु लन्दन में रहने वाले एशियाई माता पिता के लिए लड़के को बड़ा करना उससे भी बड़ी चुनौती  है। वह चाहते हैं उनका बेटा भी बाहर की दुनिया से रू ब रू होघूमे फिरेदोस्त बनाए काम करे और अनुकूल माहौल में अपने आपको ढालना सीखे। परन्तु एक डर में हमेशा जीते रहते हैं कि अनजाने में ही अपने हमउम्रों के साथ उनकी तरह कूल बनने के चक्कर में या उनके उकसाए जाने पर कहीं किसी आपराधिक गैंग का हिस्सा न बन जाए या फिर उनसे कोई दुश्मनी ही न मोल ले बैठे। 
वहीँ उसे अधिक सुरक्षा या अपने में सिमित रखने पर अंदेशा रहता है कि वह स्कूल में बाकी साथियों के सामने हीन भावना का शिकार न हो जायेसाथियों के मखौल उड़ाने की वजह से उनका अच्छा भला पढने लिखने वाला बच्चा कहीं गलत रास्ते का चुनाव न कर ले। बेशक कोई गैंग आपराधिक या नुकसानदेह न हो परन्तु उनका रहन सहन और चाल चलन एशियाई अभिभावकों को कभी रास नहीं आ सकता


Friday, May 3, 2013

जख्म

क्या कहूँ दोस्तों के बारे में  मेरी ज़िन्दगी के फूल हें ये लोग 

  • जब भी देते हें ज़ख्म देते  हें कितने  बा उसूल हें ये  लोग

Wednesday, May 1, 2013

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