रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Thursday, December 27, 2018

मिर्ज़ा ग़ालिब

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब‘ मर गया पर याद आता है,

आज संडे था न जाने क्या ख्याल आया दिल ने कहा चलो चचा ग़ालिब से मुलाकात की जाय
बल्लीमारन की गली कासीम जान में जाकर एक चाय वाले से पूछना पड़ा हवेली के बारे में

खैर हम उस हवेली के मुख्य द्वार तक
पहुँच गए जो खुला हुआ था. जहां १५० साल पहले उर्दू का
वह महान शायर रहा करता था.जहां १८६९ में ग़ालिब की मौत के बाद फ़ोन बूथ व अन्य
दुकाने खुल गईं थीं , लोगों ने अपना कब्जा कर लिया था.और आज
भी जिसके अधिकाँश हिस्से में यही सब काबिज है. 

सन २००० में भारतीय सरकार की
आँखें खुलीं और उन्होंने इस हवेली के कुछ हिस्से को कुछ कब्जाइयों से छुड़ा कर उस महान शायर की यादों के हवाले कर
दिया। आज उसी छोटे से हिस्से के बड़े से गेट पर चौकीदार  कम गाइड कम परिचर एक बुजुर्गवार बैठे हुए थे.

हमारे अन्दर घुसते ही वे पीछे
पीछे आ गए और जितना उन्हें उस हवेली के छोटे से हिस्से के बारे में मालूम था प्रेम
से बताने लगे.

उन्होंने ही बताया कि सरकार के इस
हिस्से को संग्रहालय के तौर पर हासिल करने के बाद भी कोई यहाँ नहीं आता था, वो तो कुछ वर्ष पहले गुलज़ार के यहाँ आने के बाद यह हवेली लोगों की निगाह
में आई और अब करीब १०० देसी , विदेशी यात्री यहाँ रोज ही आ
जाया करते हैं. 

हालाँकि उनकी इस बात पर उस समय
मेरा यकीन करना कठिन था, क्योंकि जहाँ पहुँचने में हमें इतनी परेशानी हुई थी. वहां
बिना किसी बोर्ड , दिशा निर्देश के कोई बाहरी व्यक्ति किस
प्रकार आ पाता होगा। और उस समय भी और जबतक हम वहां रहे
तब तक, हमारे अलावा वहां कोई भी नहीं आया था. पर शायद यह
बताने के पीछे उन सज्जन का एक और उद्देश्य था – वह शायद
बताना चाहते थे कि,  यूँ तो वह सरकार के कर्मचारी हैं
और निम्नतम तनख्वाह पर ग़ालिब की सेवा करते हैं पर आने जाने वाले यात्री ही कुछ
श्रद्धा भाव दे जाते हैं.

खैर हवेली में प्रवेश करते ही
सामने ग़ालिब की प्रतिमा दिखी जिसे गुलज़ार साहब ने वहां लगवाया है और साइड में
ग़ालिब अपनी बड़ी सी तस्वीर में से कहते जान पड़े –

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत है! कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं.

वाकई उस बड़ी सी हवेली के उस छोटे
से हिस्से में कुछ गिना चुना २-४ सामान ही पड़ा हुआ है।  वह फ़िराक़ और वह विसाल कहां,

वह शब-ओ- रोज़ -ओ-माह -ओ -साल कहाँ।

यहाँ तक कि उस बरामदे की छत को भी
अभी हाल में ही कबूतरों के आतंक से तंग आकर बनवाया गया है. कुछ दो चार बर्तन हैं।
 जो ग़ालिब के थे वे तो पिछले दिनों चोरी हो गए , अब उनकी नक़ल रख दी गई है।  कुछ दीवान हैं शायर के, एक चौपड़ , एक शतरंज, और
दीवारों पर शायर की कहानी कहती कुछ तस्वीरें। शायद बस यही रहे हों साथी उनके आखिरी दिनों में , और
शायद इसीलिए उन्होंने कहा –

चन्द तसवीरें-बुताँ चन्द हसीनों
के ख़ुतूत,

बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ
निकला ।

हालाँकि वहां उपस्थित उन सज्जन ने
बताया कि सरकार की तरफ से केस चल रहा है और उम्मीद है कि पूरी हवेली को हासिल करके
कायदे से ग़ालिब के हवाले किया जाएगा। क्योंकि ग़ालिब की अपनी सातों  संतानों
में से कोई जीवित नहीं रही अत: उस हवेली का कोई कानूनन वारिस अब नहीं है. लोगों ने
अनाधिकारिक तौर पर कब्जा किया हुआ है. हमने चाहा तो बहुत कि उसकी इस बात पर भरोसा
कर लें. तभी एक बोर्ड पर राल्फ़ रसल के ये शब्द दिखे –

“यदि ग़ालिब अंग्रेजी भाषा में लिखते, तो विश्व एवं इतिहास के महानतम कवि होते “

 मेरे मन में आया – यदि ग़ालिब भारत की जगह इंग्लैण्ड
में पैदा होते, तो वहां इनके नाम का पूरा एक शहर संरक्षित होता।
 भारत में उनके नाम की उनकी गली भी नहीं।

सरकार से तो उम्मीद क्या करनी एक
दरख्वास्त गुलज़ार साहब से ही करने का मन है, एक प्रतिमा हवेली
के अन्दर लगवाई, तो हवेली प्रकाश में आई,कम से कम एक बोर्ड और बल्लीमारान गली के बाहर लगवा दें तो वहां तक आने
वालों को भी कुछ सुविधा हो जाये.

हम उस हवेली से निकल आये उस गली
को पीछे छोड़ आये पर साथ रह गया चचा का यह शेर –

हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन 

खाक़ हो जायेंगे हम तुमको ख़बर
होते तक

Sunday, December 2, 2018

अगर दुआ से मसले हल होते तो,,

मेरे तब्लीगी मुस्लिम मित्रो,
दिल्ली में लाखों किसान जुटे, क्यों? जवाब साफ है किसानों के हक और इंसाफ के लिए।  ऐसे ही तमाम लोग मुल्क में जुटते हैं। गुजरात में दलितों, पाटीदारों ने हक के लिए जुट कर सरकार की नाक में दम कर दिया। भीमा कोरेगांव में दलितों की जुटान भी आपको याद होगी। अभी हाल में महाराष्ट्र में मराठों की एकजुटता ने आरक्षण की जंग जीत ली।
दूसरी तरफ बीते दिनों आप औरगाबाद में 30 लाख की तादाद में जुटे थे, अल्लाह से दुआ के ,जरिए मुसलमानों कि बहबूदी के लिए, आप यूपी में अभी जुटे हो सिर्फ दुआ के लिए। आप ऐसी तब्लीगों में जुटते हो दुआ, सिर्फ दुआ के लिए, लेकिन हिंदुस्तान में ऐसे दुआओं से आपको क्या हासिल हुआ, ये आप समझ सकते हैं।
दोस्तो अगर दुआओं से सारे मसले हाल होते तो पैगम्बर सल को जंग नहीं लड़नी पड़ती। अगर  तबलीग और दुआ ही हर प्राब्लम की हल होती तो इस्लाम ने आपको जिद्दो जहद की अवधारणा से परिचित ना कराया होता।  जिद्दोजहद का मतलब संगठित संघर्ष होता है।  अगर दुआ ही आपके हर ख्वाब की ताबीर होती तो कुरआन में इकरा (शिक्षा) पर आयत नाजिल न हुई होती। आप अल्लाह से दुआ करते और आपकी सारी दिक्कत खत्म हो जाती। आप इस बात को नहीं समझते, लेकिन भीम राव अम्बेडकर ने इसे समझा और कुरान के शिक्षित बनों, संगठित हो, संघर्ष का नारा दे कर दलितों के बेकार कर दिया, जिसे आप देख ही रहे हैं।
आपको बता दें कि डेढ़ साल पहले औरंगाबाद में तबलीग के जलसे में 4 से 6 सौ करोड़ रुपए खर्च हो गए। अभी पश्चिमी यूपी के जलसे में  सौ करोड़ खर्च हो रहे हैं। ज़रा सोचिए इस तरह के जलसों पर पिछले 20 सालों में खर्च तकरीबन 10 हजार करोड़ का आधा हिस्सा मॉर्डन एजुकेशन और टेक्निकल और मुस्लिम बच्चों के I.A.S और I.P.S की कोचिंग आदि पर खर्च होता तो आज मुस्लिम नौजवान कहां होता और मुस्लिम कौम कहां होती?
मेरा मानना है कि जब तब्लीगी जमाती हजरात गांव स्तर पर घूम घूम कर तबलीग करते हैं, मस्जिद-मस्जिद पहुंच कर इस्लाम का ज्ञान और दुआओं के महत्व का संदेश देते ही हैं तो ये जगह-जगह लाख से लेकर पैंतीस लाख की भीड़ जुटा कर अरबों रुपए की बरबादी की क्या तुक है। इसे जमावड़े को कम कर कुछ रकम बचा कर इकरा (शिक्षा) मूवमेंट को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन भाई लोग सिर्फ दुआ के बल पर दुनियां से आगे निकल जाने का ख्वाब दिखा कर मुसलमानों को बरगला रहे हैं। सोचिए तो ज़रा।
( कुछ भाई लोग मुझे गाली दें तो भी चलेगा, मगर एक बार इस पर सोंचें तो सही)

सोचना वाली बात सिर्फ इतनी है
कि जंगे ख़दक याद कीजिए जब कुफ्फारे मक्का ने मदीने पर चढ़ाई की तब नबी(स०) ने दुआ की जगह प्रक्टिकल करके दिखाया और उन्होंने खुद कुदाल लेकर खुदाई की और हम नआऊज़ूबिल्लाह नबी के प्रक्टिकल अमल को छोड़ कर दुआओ से सारे मसले हल करने की कोशिश कर रहें हैं

Wednesday, September 26, 2018

मां बाप को सोचना होगा

(1) आज काफी लड़कियो के माँ बाप अपनी बेटियो की शादी मे बहूत विलंब कर रहे है ।उनको अपने बराबरी के रिश्ते पसंद नही आते और जो बड़े घर पसंद आते है उनको लड़की पसंद नही आती, शादी की सही उम्र 22 से 25 तक है पर आज के माँ बाप ने और अच्छा करते करते  उम्र 30 से 36 कर दी है जिससे उनकी बेटियो की खूबसूरती भी कम होती जाती है और बड़े लड़के से शादी होने के उपरांत वो लड़का उस लड़की को वो प्यार नही दे पाता जिसकी  हकदार वो लड़की है। समाज मे 30% डिवोर्स की वजह परिवारों  द्वारा यही बताई जा रही है। आज उमर छोटी हो चुकी है पहले की तरह 100+ या 80+ नही होती, अब तो केवल 65+ तक जीने को मिल पायेगा इसी वजह से आज लड़के उमर से पहले ही बूढ़े नजर आते है,सर गंजा हो जाता है।
    (2) आज ज्यादातर लड़की वाले लड़के वालो को वापस हाँ /ना का जवाब नही दे रहे है, संभवत कुछ लोग मंन मे आपको बुरा भला बोलते होंगे आप अपनी लाड़ली का घर बसाने निकले है, किसी का अपमान करना अच्छा नही होता कृपया आप लड़के वालो से सम्मान जनक जरूर बात करे।
     (3) कुंडली जिन्होंने मिला के रिश्ते किये आज उनके भी रिश्ते टूटे है फिर आप लोग क्यो कुंडली का जिक्र कर के रिश्ता ठुकरा देते है इतिहास गवाह है हमारे पूर्वजो जो ने शायद कभी कुंडली नही मिलायी और सकुशल अपनी शादी की 75 वी सालगिरह तक मनाई, आप कुंडली को माध्यम बनाके बच्चों को घर मे बिठा के रखे है उमर बढ़ती जा रही है, आता जाता हर यार दोस्त रिश्तेदार सवाल कर जाता है, कब कर रहे हो शादी आपसे 10 वर्ष कम आयु के लोगो को 8 साल के बच्चे भी हो गए ओर आप 32-35 मे शादी करेंगे तो आपके बच्चों की शादी के वक्त आप अपने ही बच्चों के दादा दादी नजर आएंगे।
   (4) आप घर कैसा भी चयन करे लड़की का भाग्य उसके पैदा होने से पहले ही भगवान ने लिख दिया है, भाग्य मे सुख लिखे है तो अंधेरे घर मे भी रोशनी कर देगी दुख लिखे है तो पैसे वाले भी डूब जाते है।
    (5) अंतिम मे बस इतना ही कहना है कि अपने बच्चों की उम्र बर्बाद ना करे, गयी उम्र लौट कर नही आती दुसरो को देख कर अपने लिए वैसा रिश्ता देखना मूर्खता है आप अपने बच्चों की बढ़ती उम्र के दुख को समझिए रिश्ता वो करिये, जिस लड़के वालो मे लालच ना हो, लड़का संस्कारी हो, जो आपकी बेटी को प्यार करे, उसकी इज्जत करे, उम्र बहूत छोटी है आप इतने जमीन जायदाद देख कर क्या कर लेंगे कौन अपने साथ एक तिनका भी ले जा पाया है। बच्चों की बाकी उम्र उनके जीवन साथी के साथ जीने दीजिये समय बहुत बलवान है आज की लडकिया पढ़ी लिखी है वो अपने परिवार के साथ कुछ अच्छा तो कर ही सकती है।

Monday, September 17, 2018

भिखारियों की गिनती में आ चुके मुसलमान


सोशल मीडिया पर आठ सालों में कई अनुभव हुए हैं, उनमे एक अनुभव ये भी हुआ है कि इस प्लेटफॉर्म पर मौजूद मुसलमानो की बड़ी तादाद अभी भी एक महदूद दायरे में चक्कर काट रही है, तालीम की बात की जाये तो उन्हें मदरसों पर खतरा मंडराता नज़र आने लगता है, कईयों को दुनियावी तालीम बदकारी और मज़हब से दूर ले जाने वाली बुराई लगती है, उस पर अगर मुस्लिम औरतों की तालीम की बात की जाये तो हज़ार तर्कों के साथ ना नुकुर और अगर मगर वालों की भीड़ आ खड़ी होती है !

इतिहास में पीछे जाकर देखे तो पता चलता है कि मुसलमानों ने इस्‍लाम और इस्‍लामी नज़रिये का गहरा मुताला किया, वो तालीम के बारे में बिल्‍कुल साफ नज़रिया रखते थे, तालीम ही उनके नज़रियें को विस्‍तार देती थी, जिससे उनकी अक़ली (बौद्धिक) कुव्‍वत बढ़ जाती थी, और उन्‍हे दूसरों का टीचर (अध्‍यापक) बनाती थी ! इसका नतीजा ये हुआ कि वो अपने वक़्त की सुपरपावर बन गऐ जिन्‍होंने ने साइंस और तालीम के क्षेत्र में बहुत बडी़ तादाद में योगदान दिया !

मगर आज का मुसलमान तालीम से दूर होता जा रहा है, उसकी प्राथमिकताओं में तालीम शायद सबसे निचले पायदान पर है, एक बार कहीं पढ़ा था कि "मुसलमानों को कभी कोई युनिवर्सिटी, स्कूल या कॉलेज माँगते हुए नहीं देखा, कभी न ही वो अपने इलाक़े में अस्पताल के लिए आंदोलन चलाते हैं और न ही बिजली पानी के लिए, उन्हें चाहिए तो बस एक चीज़. लाउडस्पीकर पर मस्जिद से अज़ान देने की इजाज़त, ये इजाज़त छीन लेने भर की खबर पर सड़कों पर निकल आते हैं !!"

मैंने एक बार मौलाना डॉ. कल्बे सादिक साहब के बयान वाली एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें उन्होंने  कहा कि "मस्जिदों और इमामबाड़ों में ग्रेनाइट चमकाने से कौम की तरक्की नहीं होने वाली। इससे बेहतर है कि स्कूल और कॉलेजों को बढ़ावा दिया जाए !" इस पोस्ट पर भी मुसलमानो ने जमकर लठैती की थी, उनका इस बयान पर नजरिया एक तरफ़ा था, कल्बे सादिक साहब का कहने का मतलब यही था कि भले ही मस्जिदों और इमामबाड़ों को ग्रेनाइट से चमकाईये मगर साथ ही तालीम को प्राथमिकता के तौर पर लिया जाना चाहिए, आगे बढ़ने और तरक़्क़ी करने के लिए तालीम ही एक ज़रिया है ! स्कूल-कॉलेज भी बनाएं ताकि कौम के साथ सबको इसका लाभ पहुंचे,कौम तरक्की करे और अच्छा समाज बन सके !

मगर अभी भी हमारी प्राथमिकताएं नहीं बदली हैं, ना ही सोच ना ही नज़रिया, ये एक कड़वी सच्चाई है, कल परसों की ही बात है, जैकी चेन को हज कराने के एक फोटो को जानबूझ कर शेयर किया था, और उस फोटो पर मुसलमानो की प्रतिक्रिया सामने रखी थी, और साथ ही एक पोस्ट भारतीय मूल की मुस्लिम औरत हलीमा याकूब के सिंगापुर की राष्ट्रपति बनने की खबर शेयर की थी, मगर प्रतिक्रिया बहुत ही ढंडी थी, जैकी चेन के उस फोटो की दलील इसलिए दे रहा हूँ कि ये और इस जैसी बहुत सी पोस्ट्स , जैसे किसी बड़े गैर मुस्लिम सेलेब्रिटी के इस्लाम क़ुबूल कर लेने की झूठी खबर, चाँद से किसी मस्जिद को देखकर इस्लाम क़ुबूल कर लेने की खबर, और इन झूठी ख़बरों पर तारीफ करते टूट पड़ना, उन्हें हज़ारों की तादाद में शेयर करना, एक बड़ी मिसाल है हमारी प्राथमिकताओं की !

कभी जब तालीम के क्षेत्र में पिछड़ने की बात महसूस होती है तो इस्लामी इतिहास की किताबें खोल कर अतीत की उपलब्धियों का बखान करने लगते हैं, इससे क्या साबित होता है ? यही न कि आपका अतीत सुनहरा था, आपने उसका क्या हाल किया ? ये बताइये कि आपका वर्तमान क्या है, और मुस्तक़बिल के लिए तालीम-ओ-तरक़्क़ी के लिए आप क्या जद्दो जहद कर रहे हो ?

इतिहास की पोटली खोल कर रखने की मनाही नहीं है, नयी नस्ल के लिए ये ज़रूरी भी है, मगर साथ ही वर्तमान में नयी इबारत लिखने की कोशिशें भी जारी रखना चाहिए, तभी मुस्तक़बिल रोशन हो सकेगा, सिर्फ इतिहास की पोटली ही हमें निहाल नहीं करने वाली !

इस बात पर शायर बिरजीस राशिद आरफी साहब का ये शेर याद आ जाता है :-

वो अपनी मुफ़लिसी जब भी छुपाने लगता है !
.
तो बाप - दादा के क़िस्से सुनाने लगता है  !!

जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार बताया गया है कि देश के कुल 3.7 लाख भिखारियों में से हर चौथा भिखारी मुसलमान है, यानी प्रतिशत के हिसाब से सबसे बड़ा प्रतिशत मुसलमान भिखारियों का हुआ !

मुल्क में वोटर लिस्ट में मौजूद भीड़ से नहीं बल्कि पढ़ लिख कर ओहदों पर पहुँचने वाली भीड़ के तौर पर गिनती बढ़ाइये

Sunday, September 16, 2018

खुदा का बनाया बहतरीन व अद्धभुत शाहकार है इंसान


*जबरदस्त फेफड़े*
हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हवा को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे.

*ऐसी और कोई फैक्ट्री नहीं*
हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है. हर वक्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं.

*लाखों किलोमीटर की यात्रा*
इंसान का खून हर दिन शरीर में 1,92,000 किलोमीटर का सफर करता है. हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है.

*धड़कन, धड़कन*
एक स्वस्थ इंसान का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पम्पिंग प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है.
*सारे कैमरे और दूरबीनें फेल*
इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके.

*नाक में एंयर कंडीशनर*
हमारी नाक में प्राकृतिक एयर कंडीशनर होता है. यह गर्म हवा को ठंडा और ठंडी हवा को गर्म कर फेफड़ों तक पहुंचाता है.

*400 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार*
तंत्रिका तंत्र 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से शरीर के बाकी हिस्सों तक जरूरी निर्देश पहुंचाता है. इंसानी मस्तिष्क में 100 अरब से ज्यादा तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं.

*जबरदस्त मिश्रण*
शरीर में 70 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा बड़ी मात्रा में कार्बन, जिंक, कोबाल्ट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फेट, निकिल और सिलिकॉन होता है.

*बेजोड़छींक छींकतेसमय बाहर निकले वाली हवा की रफ्तार 166 से 300 किलोमीटर प्रतिघंटा हो सकती है. आंखें खोलकर छींक मारना नामुमकिन है.

*बैक्टीरिया का गोदाम*
इंसान के वजन का 10 फीसदी हिस्सा, शरीर में मौजूद बैक्टीरिया की वजह से होता है. एक वर्ग इंच त्वचा में 3.2 करोड़ बैक्टीरिया होते है
*ईएनटी की विचित्र दुनिया*
आंखें बचपन में ही पूरी तरह विकसित हो जाती हैं. बाद में उनमें कोई विकास नहीं होता. वहीं नाक और कान पूरी जिंदगी विकसित होते रहते हैं. कान लाखों आवाजों में अंतर पहचान सकते हैं. कान 1,000 से 50,000 हर्ट्ज के बीच की ध्वनि तरंगे सुनते हैं.

*दांत संभाल के*
इंसान के दांत चट्टान की तरह मजबूत होते हैं. लेकिन शरीर के दूसरे हिस्से अपनी मरम्मत खुद कर लेते हैं, वहीं दांत बीमार होने पर खुद को दुरुस्त नहीं कर पाते.

*मुंह में नमी*
इंसान के मुंह में हर दिन 1.7 लीटर लार बनती है. लार खाने को पचाने के साथ ही जीभ में मौजूद 10,000 से ज्यादा स्वाद ग्रंथियों को नम बनाए रखती है.

*झपकती पलकें*
वैज्ञानिकों को लगता है कि पलकें आंखों से पसीना बाहर निकालने और उनमें नमी बनाए रखने के लिए झपकती है. महिलाएं पुरुषों की तुलना में दोगुनी बार पलके झपकती हैं.

*नाखून भी कमाल के*
अंगूठे का नाखून सबसे धीमी रफ्तार से बढ़ता है. वहीं मध्यमा या मिडिल फिंगर का नाखून सबसे तेजी से बढ़ता है.

*तेज रफ्तार दाढ़ी*
पुरुषों में दाढ़ी के बाल सबसे तेजी से बढ़ते हैं. अगर कोई शख्स पूरी जिंदगी शेविंग न करे तो दाढ़ी 30 फुट लंबी हो सकती है.

*खाने का अंबार*
एक इंसान आम तौर पर जिंदगी के पांच साल खाना खाने में गुजार देता है. हम ताउम्र अपने वजन से 7,000 गुना ज्यादा भोजन खा चुके होते हैं.

*बाल गिरने से परेशान*
एक स्वस्थ इंसान के सिर से हर दिन 80 बाल झड़ते हैं.

*सपनों की दुनिया*
इंसान दुनिया में आने से पहले ही यानी मां के गर्भ में ही सपने देखना शुरू कर देता है. बच्चे का विकास वसंत में तेजी से होता है.
*नींद का महत्व*
नींद के दौरान इंसान की ऊर्जा जलती है. दिमाग अहम सूचनाओं को स्टोर करता है. शरीर को आराम मिलता है और रिपेयरिंग का काम भी होता है. नींद के ही दौरान शारीरिक विकास के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स निकलते हैं.

Saturday, August 4, 2018

अब भा ज पा को सिर्फ हिंदुत्व का सहारा

अभी तक भा ज पा  हर बार चुनाव जीतने के तीन ही संकल्प  लेकर वोटरों को आकर्षित करती रही है  - राम मंदिर,  समान आचार संहिता और धारा 370 .अब दूसरी बार भा ज पा की सरकार बनी है और अपने शासन के चार साल पूरे भी  कर चुकी है लेकिन ये संकल्प  न कभी पूरे हुए  और न हो  सकते हैं ।जनता की नज़र में ये मुद्दे अब अपना महत्व खो चुके हैं ।न नौ मन तेल हो पा रहा है और न राधा के नाचने की कोई संभावना है ।भा ज पा हमेशा हिन्दू और हिन्दुत्व के नाम पर वोट माँगती आई है ।कार्य प्रदर्शन , जन कल्याण और सफल प्रशासन के मुद्दे कांग्रेस के हैं अतः भा ज पा इनकी बात ही नहीं करती ।

चार साल में बहुत पानी यमुना में बह चुका ।  2019 का चुनाव करीब आ रहा है ।फिर चार राज्यों के विधान सभा चुनाव तो एकदम सिर पर आ पहुँचे ।भा ज पा किन मुद्दों पर वोट माँगे  ? नोट बन्दी पर ? जी एस टी पर ? किसानों की बदहाली पर ? पेट्रोल की कीमतों पर ? देश की पूँजी के पलायन पर ? तमाम कारण ऐसे पैदा हो गये हैं जिनके लिये अब नये बहाने काम नहीं आ रहे हैं ।पलटवार की भी कोई सीमा होती है ।कहाँ तक किये जाएँ  ? भा ज पा का प्रचार तंत्र उसकी गिरती हुई साख को बचाने में जी जान से लगा हुआ है पर बात बन नहीं पा रही है ।

भा ज पा के पास ले दे कर अब  हिन्दुत्व का ही सहारा बचा  है -

एक भरोसो , एक बल,  एक आस बिस्वास ।

वही हिन्दुत्व उसका तारणहार है ।वही संकट मोचन है ।भा ज पा अपने पारंपरिक हिन्दू वोटरों को एक नये मोहपाश में बाँध रही है ।आसाम में एन सी अार के मुताबिक चालीस लाख लोग वहाँ के नागरिकों में शामिल नहीं पाये गये हैं ।इनमें से अधिकांश बंगलादेशी घुसपैठिये मुसलमान हैं ।अब इन सबको खदेड़ कर भगा दिया जायेगा ।अब पूरे देश में असली नागरिकों का पंजीकरण कराया जाएगा ।तब इतने ही मुसलमान और पकड़ में आएँगे ।इन सब को यहाँ से बोरिया बिस्तर समेट कर जाना होगा ।हिन्दुओं के संतोष के लिये यह एक राम बाण है ।बहुत दिनों से उनको समझाया जा रहा है कि मुसलमान चार शादियाँ करते हैं ।आठ बच्चे पैदा करते हैं ।इनको हटाया नहीं गया तो कुछ दिनों में ये बहुमत में आ जायेंगे  ।ऊपर से ये बंगलादेशी घुस पैठिये मुँह उठाए चले आए हैं ।इनको यहाँ रहने का कोई हक नहीं है ।भारत को मुस्लिम मुक्त करना है ।

आव्रजन  की समस्या सभी देशों में है ।लोग किसी न किसी बहाने विकसित देशों में प्रवेश कर जाते हैं फिर जैसे तैसे ग्रीन कार्ड बनवा कर वहाँ की नागरिकता हासिल कर लेते हैं ।अमेरिका भी अवैध रूप से वहाँ रह रहे भारतीयों को वापस भेजने की बात करता है किन्तु यह हो नहीं पाता ।मैक्सिको से तो वहाँ इतने लोग चले आते हैं कि अब ट्रंप मैक्सिको की सीमा पर दीवार खड़ी करने जा रहे हैं ।हम भी कह रहे हैं कि इन बंगला देशियों को वापस भेज देंगे किन्तु क्या यह इतना आसान है  ? जो सैंतालिस साल से यहाँ बसे हुए हैं , जो इतने साल से टैक्स दे रहे हैं , वोट डाल रहे हैं उनको वापस भेजना संभव नहीं ।राजीव गाँधी ने  1985 में आसाम  समझौता किया था । तब जो 1971 की समय सीमा तय की थी उस पर तब के तभी अमल किया जा सकता था ।किन्तु तीन करोड़  व्यक्तियों की नागरिकता प्रमाणित करना एक बेहद पेचीदा काम था जो समय से पूरा नहीं हो पाया और तैंतीस साल निकल गये । हो तो अब भी नहीं पाया है पर सरकार को एक मुद्दा मिल गया ।सोचने वाली बात है कि आज के दिन सन 71 के आव्रजन की सीमा तय करना सर्वथा अनुचित और अमानवीय है ।यह सीमा पाँच से सात साल की होनी चाहिये थी  ।जो बहुत पहले से बसे हुए हैं उनको ग्रीन कार्ड जैसी नागरिकता देने की बात सोची जा सकती है ।या कोई और रास्ता निकाला जा सकता है पर देश निकाला  दे देना इस  समस्या का समाधान नहीं।इस तरह तो हम समस्या के समाधान के नाम पर तमाम नयी समस्याओं को आमंत्रित कर लेंगे ।

इतनी बड़ी संख्या में लोग यहाँ हमला करने या लूट पाट करने नहीं आए हैं ।सब के सब रोजगार और जीवन यापन के साधनों की तलाश में ही आते रहे हैं ।इनका आना वैसे ही लेना चाहिये  जैसे भारतीय नागरिक अमेरिका या कैनेडा में अवैध तरीके से घुस जाते हैं ।वहाँ भी इसका घोर विरोध होता है पर झगड़ा मानवीय स्तर का है ।हमारे देश में  इसे विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक मसला माना जा रहा है ।इसे सांप्रदायिक  रंग देकर उसका राजनैतिक लाभ उठाने से सरकार को रोका नहीं जा सकता है ।

आसाम के चुनाव में  प्रधान मंत्री ने यह तुरुप चाल चली थी कि हम बंगलादेशी घुसपैठियों को यहाँ से निकाल बाहर करेंगे ।अब चार राज्यों के चुनाव में भी हिन्दू वोटरों का इस वायदे पर भरोसा बना रहा तो इसका बहुत बड़ा लाभ सत्ता पक्ष को मिलेगा ।जो भी इसका विरोध करेगा वह देश द्रोही कहलाएगा ।समझने वाले तो समझ रहे हैं कि यह वैसा ही अधूरा संकल्प है जो  पूरा तो नहीं होगा किन्तु वोट दिलाने वाली कामधेनु बना रहेगा  ।नागरिकों की पहचान का काम अभी भी मुकम्मल तौर पर नहीं हो पाया है पर चुनाव जिताने के लिये संजीवनी ऊर्जा रखता है  राम मंदिर कहाँ बन पाया   ? समान आचार संहिता कहाँ लागू हुई ? धारा 370कहाँ हटी   ? पर वोट तो वायदों पर ही मिलता  है।पिछले वायदे तो पन्द्रह लाख के वायदों की तरह खोटे निकल गये ।इस नये वायदे में नयी चमक दमक है ।नया भरोसा है ।सरकार को इसकी सख्त जरूरत है ।सरकार का लक्ष्य बस  इतना ही है । जैसे भी संभव हो ,  सत्ता मिले और मिलने के बाद किसी भी कीमत पर बनी रहे ।फिर और क्या चाहिये  ?