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Sunday, December 2, 2018

अगर दुआ से मसले हल होते तो,,

मेरे तब्लीगी मुस्लिम मित्रो,
दिल्ली में लाखों किसान जुटे, क्यों? जवाब साफ है किसानों के हक और इंसाफ के लिए।  ऐसे ही तमाम लोग मुल्क में जुटते हैं। गुजरात में दलितों, पाटीदारों ने हक के लिए जुट कर सरकार की नाक में दम कर दिया। भीमा कोरेगांव में दलितों की जुटान भी आपको याद होगी। अभी हाल में महाराष्ट्र में मराठों की एकजुटता ने आरक्षण की जंग जीत ली।
दूसरी तरफ बीते दिनों आप औरगाबाद में 30 लाख की तादाद में जुटे थे, अल्लाह से दुआ के ,जरिए मुसलमानों कि बहबूदी के लिए, आप यूपी में अभी जुटे हो सिर्फ दुआ के लिए। आप ऐसी तब्लीगों में जुटते हो दुआ, सिर्फ दुआ के लिए, लेकिन हिंदुस्तान में ऐसे दुआओं से आपको क्या हासिल हुआ, ये आप समझ सकते हैं।
दोस्तो अगर दुआओं से सारे मसले हाल होते तो पैगम्बर सल को जंग नहीं लड़नी पड़ती। अगर  तबलीग और दुआ ही हर प्राब्लम की हल होती तो इस्लाम ने आपको जिद्दो जहद की अवधारणा से परिचित ना कराया होता।  जिद्दोजहद का मतलब संगठित संघर्ष होता है।  अगर दुआ ही आपके हर ख्वाब की ताबीर होती तो कुरआन में इकरा (शिक्षा) पर आयत नाजिल न हुई होती। आप अल्लाह से दुआ करते और आपकी सारी दिक्कत खत्म हो जाती। आप इस बात को नहीं समझते, लेकिन भीम राव अम्बेडकर ने इसे समझा और कुरान के शिक्षित बनों, संगठित हो, संघर्ष का नारा दे कर दलितों के बेकार कर दिया, जिसे आप देख ही रहे हैं।
आपको बता दें कि डेढ़ साल पहले औरंगाबाद में तबलीग के जलसे में 4 से 6 सौ करोड़ रुपए खर्च हो गए। अभी पश्चिमी यूपी के जलसे में  सौ करोड़ खर्च हो रहे हैं। ज़रा सोचिए इस तरह के जलसों पर पिछले 20 सालों में खर्च तकरीबन 10 हजार करोड़ का आधा हिस्सा मॉर्डन एजुकेशन और टेक्निकल और मुस्लिम बच्चों के I.A.S और I.P.S की कोचिंग आदि पर खर्च होता तो आज मुस्लिम नौजवान कहां होता और मुस्लिम कौम कहां होती?
मेरा मानना है कि जब तब्लीगी जमाती हजरात गांव स्तर पर घूम घूम कर तबलीग करते हैं, मस्जिद-मस्जिद पहुंच कर इस्लाम का ज्ञान और दुआओं के महत्व का संदेश देते ही हैं तो ये जगह-जगह लाख से लेकर पैंतीस लाख की भीड़ जुटा कर अरबों रुपए की बरबादी की क्या तुक है। इसे जमावड़े को कम कर कुछ रकम बचा कर इकरा (शिक्षा) मूवमेंट को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन भाई लोग सिर्फ दुआ के बल पर दुनियां से आगे निकल जाने का ख्वाब दिखा कर मुसलमानों को बरगला रहे हैं। सोचिए तो ज़रा।
( कुछ भाई लोग मुझे गाली दें तो भी चलेगा, मगर एक बार इस पर सोंचें तो सही)

सोचना वाली बात सिर्फ इतनी है
कि जंगे ख़दक याद कीजिए जब कुफ्फारे मक्का ने मदीने पर चढ़ाई की तब नबी(स०) ने दुआ की जगह प्रक्टिकल करके दिखाया और उन्होंने खुद कुदाल लेकर खुदाई की और हम नआऊज़ूबिल्लाह नबी के प्रक्टिकल अमल को छोड़ कर दुआओ से सारे मसले हल करने की कोशिश कर रहें हैं

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