रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Wednesday, August 23, 2017

जनरेशन गैप आपसी ताल मेल ज़रूरी

अक्सर माता-पिता शिकायत करते हैं कि क्या करें आजकल के बच्चे तो माँ-बाप को कुछ समझते ही नहीं और अपनी सोच के आगे किसी को तवज्जो नहीं देते. दरअसल युवा होते बच्चों के साथ कई बार अभिभावक सही तरीके से ताल-मेल या कम्यूनिकेशन नहीं कर पाते और इसी वजह से पैदा होता है ‘जनरेशन गैप।’ इस गैप को मिटाने और परस्पर सामंजस्य बनाने के लिए बच्चों के साथ शुरू से ही तालमेल का मैप बना लेना जरुरी है-

सप्ताह में एक बार सब साथ हों– 🌼

माना कि बच्चों की पढ़ाई, पेरेंट्स का कामधंधा और घर के अन्य सदस्यों की अपनी अपनी व्यस्तताएं होती हैं लेकिन अपने परिवार में यह नियम बना लें कि सप्ताह में कम से कम एक बार पूरा परिवार इकट्ठा होगा औऱ उस दिन आप सभी जमकर चर्चा करेंगे. चाहे वह कोई पारिवारिक मुद्दा हो,सामाजिक हो या फिर राजनीतिक मुद्दा हो. आप कितनी ही व्यस्त क्यों न हों लेकिन एक घंटा तो उसके लिए निकाल ही सकती हैं। उसके साथ कुकिंग कीजिए या कोई मूवी देखने जाइए। उसके साथ अंताक्षरी, कैरम, चेस, लूडो खेलिए या फिर दोस्तों को घर बुलाकर डांस पार्टी कीजिए। इससे सबको न सिर्फ खुल कर बोलने का मौका मिलेगा बल्कि बातों ही बातों में मन की गहराईयों में दबी कोई बात या किन्हीं मुद्दों पर व्यक्तिगत सोच का अंदाजा भी लग जाएगा.समझदार माँ बाप बच्चे की भावनाओं को समझकर उसी के अनुरूप अपनी राय व आगे की रूपरेखा बना लेते हैं.

शाम को संवाद-🌼

कोशिश करें कि शाम का खाना घर के सारे सदस्य साथ साथ ही करें. किन्हीं कारणों से अइसा संभव न् हो तो घर पहुँचने के बाद बेटे-बेटी से बातचीत जरुर करें. उन्होंने दिन भर क्या किया आपने आज बाहर क्या किया या किन मुद्दों पर बातचीत सुनी आदि पर हलकी-फुलकी टिप्पणी दें और सुनें. आप चाहें तो किशोर बच्चों से जुड़ने के लिए इंटरनेट से कई सारे छोटे-छोटे गेम्स सर्च कर उन्हें हर रात आप बच्चों के साथ खेल सकते हैं. पेरेंट्स का बच्चे के साथ रेगुलर कम्यूनिकेशन जरूरी है। इससे आप दोनों एक दूसरे की मनोभावना को समझ सकते हैं और एक दूसरे की समस्या को समझने में आसानी रहती है। आमतौर पर बच्चे मां के साथ ज्यादा खुले होते हैं और मां से अपनी हर बात बिना झिझक और डर के कह पाते हैं। ऐसे माँ की जिम्मेदारी है कि समय मिलने पर उसके साथ आधा-एक घंटा उसके साथ बात करें। उसकी समस्याओं को समझें और समाधान भी दें.

न डांटें सबके सामने –🌼

कई अभिभावक बच्चों को जहां देखो बाजार में,स्कूल में, फैमिली फंक्शन में, मेहमानों के सामने, दोस्तों के सामने कहीं भी डांट देते हैं। इससे उनके मन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। सभी बच्चों को एक तरह की परवरिश नहीं दी जा सकती है। कुछ बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं. ये आपकी बात का बुरा मान कर कुछ भी कर सकते हैं. बात बच्चों को प्यार करने की हो या फिर सख्ती बरतने की, हर बच्चे का अलग तरह से ख्याल रखना होता है। इसलिए बच्चों को बेहतर इंसान बनाने के लिए आपका संयम बरतना जरूरी है।

समझें बच्चे की भावनाएँ–🌼

बच्चे की फीलिंग्स को समझें। पारिवारिक और अन्य जिम्मेदारियों के कारण हो सकता है आप थोड़ा तनाव में हों. लेकिन ऐसे में बच्चों से दूर ना रहें बल्कि यही वह समय है, जब आपको अपना तनाव भुलाकर बच्चे को स्नेह से गले लगाना चाहिए और मुस्कुराना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे से आपका स्नेह और प्रगाढ़ होगा, और आपका सारा तनाव भी पलभर में उड़न-छू हो जाएगा। साथ ही बच्चा भी आपकी भावनाओं को समझेगा. जैसे आप अपना सम्मान चाहती हैं, ठीक वैसे ही बच्चों का सम्मान भी करें और उनके सम्मान की रक्षा भी करें। बच्चों के विचारों को महत्व दें। घर अथवा परिवार के मामलों में उनकी राय को भी वरीयता दें और यदि वे अच्छी नहीं हैं तो कारण सहित बच्चों को बताएं कि उनकी राय में क्या कमी है। बच्चों की निजता का भी ध्यान रखें

इमोशंस कंट्रोल करें– 🌼

सबसे अहम बात, जो बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है आपकी भावनाओं की अभिव्यक्ति। समयाभाव के कारण हो सकता है आप अपने पति के सामीप्य अथवा साथ का अभाव महसूस करें, लेकिन जीवन की अन्य जरूरतों के साथ शारीरिक एवं मानसिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सही समय का अवसर तलाशें। बच्चों के सामने ऐसा व्यवहार न तो करें और न ही पति को करने दें, जो बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले। परिवार, आर्थिक स्थिति, रिश्तेदारों के व्यवहार अथवा कार्यालय की बातें बच्चों के सामने करने से बचें।

दूरी मिटाएं -🌼

बच्चा आपसे किसी बात पर या किसी आम बात पर जिद कर ले और रूठ जाए तो उसे मनाएं औऱ उससे बात करके दूरी मिटाने की हर संभव कोशिश करें। ऐसा करने से जिद छोड़ देंगे और आपसे अपनी बातें साझा करने लगेंगे। हो सकता है बच्चा आपसे कुछ ऐसे सवाल पूछे या किसी बातें कहे, जो बेतुकी हों, लेकिन आप उसकी हर बात को ध्यानसे सुनें और सोच-समझकर प्यार से जवाब दें। बच्चे अक्सर बढ़ती उम्र में शारीरिक परिवर्तन की वजह से उग्र हो जाते हैं। ऐसे में वे कई बार विद्रोही हरकतें करते हैं। उस समय बच्चों पर नजर रखना बहुत जरूरी होता है। आज कल के बच्चे अपने करियर को लेकर बचपन से ही बहुत संजीदा होते हैं, लेकिन पेरेंट्स उन पर अपनी मनमर्जी थोपते हैं। उनको जो बनने की इच्छा है, उसे बनने में मदद करें। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो वे आपके सामने तो अच्छा व्यवहार करेंगे लेकिन आपके पीठ पीछे वो ऐसी हरकतें करेंगे जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी.

उन्हें प्रोपर्टी नहीं जिम्मेदारी समझें–🌼

अक्सर मां-बाप के साथ ऐसे व्यवहार करते हैं कि वे जो बोलें बच्चे को वैसा ही करना होगा। जैसे वो उनकी प्रॉपर्टी हों। लेकिन यह गलत सोच है. आप बस यही मानिए कि आप उस बच्चे को दुनिया में लाने का एक जरिया मात्र हैं। हां, उस बच्चे को बेहतरीन इंसान बनाने का दारोमदार आप पर जरूर है। आप उसे पालते-पोसते और बड़ा होते हुए एक बेहतरीन इंसान बनाइए। उसे गलत और सही की पहचान कराइए। देखिए, उसकी गलतियों को सुधारिए। मत भूलिए कि वो देश का आने वाला कल है। आप जैसी परवरिश करेंगे, वह वैसा इंसान बनेंगे।

आप खुद आदर्श बनें–🌼

एक आम शिकायत है कि बच्चे बड़े बुजुर्गों की कद्र नहीं करते. घर के लोगों के  साथ उनका व्यवहार अच्छा नहीं है।ऐसे में आपको उनके सामने अच्छा उदाहरण बनना होगा. यदि आप घर में अपने सास-ससुर, या देवरानी-जेठानी अथवा बड़े भाई-बहनों के साथ बेहतर व्यवहार रखेंगे तो बाहर वे महिलाओं के साथ वैसे ही व्यवहार करेंगे और कल को जब आप उम्रदराज होंगे तो आपके साथ भी. इसलिए घर का माहौल बदलना बहुत जरूरी है. बच्चों के सामने लड़ाई-झगड़ा न करें। बचपन से ही उन्हें लोगों खासकर महिलाओं का आदर करना सिखाइए।

समस्या में साथ खड़ी हों-  🌼

कभी बच्चे किसी मुसीबत में पड़ जाएँ और घबरा जाएँ तो ऐसे में आप उनका साथ दें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। बच्चे को लगना चाहिए कि आप उनके साथ हैं। अच्छा करने पर उन्हें प्रोत्साहित करें और यदि बच्चे ने कुछ गलत कर दिया हो तो उसे डांटने के बजाय, उनकी गलती के परिणामों को समझाएं। इससे बच्चों की समझ भी बढ़ेगी और वे आपसे अपनी हर बात शेयर करेंगे। हो सके तो रोजाना सुबह अथवा शाम को बच्चों के साथ इधर-उधर घूमने निकलें। ।

शुरू से दें अच्छे संस्कार – 🌼

मां ही बच्चे को अच्छे संस्कार देती है। इसलिए हर वक्त टीवी मत देखते रहिए और उस समय को बच्चे के साथ निवेश कीजिए। कुछ पारंपरिक चीजें हैं, जिन्हें फॉलो करने में कोई बुराई नहीं। इन स्वस्थ पारंपरिक बातों और रिवाजों को बच्चे के साथ बांटें, हाँ ! उन्हें अंधविश्वास से दूर रखें। उन्हें नैतिक मूल्यों की जानकारी दें. इंसानियत का पाठ पढाएं. गरीबों, बेसहारा व बुजुर्गों की मदद करना सीखें.

अनुशासन भी जरूरी – 🌼

छूट देने के साथ कुछ नियम भी बनाएं ताकि बच्चा अपनी जिम्मेदारी समझे। आपको या किसी अन्य चीज को टेकन फॉर ग्रांटेड न समझे, इसके लिए थोड़ी सख्ती भी जरूरी है। हर चीज के लिए समय बांधना अच्छा है लेकिन बंधन ऐसा न हो कि उसकी सांस ही अटक जाए, इसका ध्यान भी आपको ही रखनाहै। उसे पिता की इज्जत करना सिखाएं। मां का फर्ज बनता है कि वह उन दोनों के बीच अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करें। बच्चे को समझाएं कि उसके पापा उनसे बहुत प्यार करते हैं। वह तभी गुस्सा करते हैं, जब उनके ऑफिस में कुछ गड़बड़ रहती है या उनका दिन अच्छा नहीं बीतता या फिर जब वह घर के नियमों व अनुशासन को भंग करता है.

दूसरों से तुलना न करें – 🌼

दूसरे बच्चों के साथ उसकी तुलना न करें। इससे बच्चा खुद को उपेक्षित महसूस करता है। फलां अपने मां-बाप की सारी बातें मानता है, अमुक अपनी क्लास में टॉप करता है, वह टीवी एक घंटे से ज्यादा नहीं देखता है। यह सब बेकार  की बातें हैं. आपके लिए दूसरे बच्चों से उसकी तुलना करने से अच्छा है कि आप अपने बच्चे में सकारात्मक चीजें देखें। हर बच्चा अलग तरह का होता है और उसका नजरिया भी। उसके नजरिए को देखने और समझने की कोशिश करें। संभव है कि वह बहुत अच्छी चित्रकारी करता हो, अच्छे से अपना खाना खाता हो, टीवी पर कार्यक्रम देखकर उससे डांस या गाना आसानी से सीख लेता हो। उससे व्यवहारिक अपेक्षाएं रखें ताकि उस पर अनचाहा दबाव न रहे। आप यदि रह सोचती हैं कि बच्चा पूरे दिन पढता रहे और टीवी बिल्कुल न देखें, मोबाइल पर गेम न खेले, तो यह संभव नहीं है।

Thursday, August 17, 2017

जान की दुश्मन बन रही है सेल्फी।

जान लेती ये सेल्फी। 

सेल्फी से जुड़ी एक दुखद घटना मन को विचलित करती है। यूपी के कानपुर में गंगा बैराज में कुछ छात्र मौज-मस्ती के लिए गए थे। सेल्फी का शौक और उसका क्रेज उनकी जिंदगी पर इस कदर भारी पड़ा कि इस चक्कर में सात लोगों की डूबकर मौत हो गई। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सेल्फी के चक्कर में कभी-कभी हमें इसकी बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ती हैं, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होता है। युवाओं में इसका क्रेज कुछ ज्यादा ही है जो अब जानलेवा साबित हो रहा है। इसी खबर को मैंने जब टीवी पर देखा तो एक न्यूज चैनल में हेडलाइन कुछ यूं थी - 'परफेक्ट सेल्फी के चक्कर में लील गई गंगा'।

सेल्फी का क्रेज दरअसल एक जानलेवा एडवेंचर साबित हो रहा है जहां मौज-मस्ती की चाह और कुछ नया कर गुजरने ख्वाहिश रखनेवाले (ज्यादातर युवाओं) को जान से हाथ धोना पड़ता है या अन्य दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है। यह अजीब विडंबना है कि महज एक सेल्फी का क्रेज युवाओं की जिंदगी को लील रहा है। अब सेल्फी स्टिक के जरिए युवा इस लेकर ज्यादा क्रेजी हो उठे है। सेल्फी से जुड़ा एक्सपेरिमेंट दरअसल जानलेवा साबित हो रहा है लेकिन ज्यादातर युवा इसे नजरअंदाज कर रहे है जिससे भयावह स्वरूप हम सामने देख रहे है, जो चिंतित करनेवाला है।

सेल्फी स्मार्टफोन की तकनीक की देन है जिसमें उसमें लगे कैमरा की अहम भूमिका होती है। अगर स्मार्टफोन है तभी सेल्फी ली जा सकती है। भारत की आबादी 125 करोड़ को पार कर चुकी है लेकिन देश में मोबाइल की संख्या उसका पीछा करती हुई दिख रही है। देश में इस वक्त कुल 105.92 करोड़ मोबाइल यूजर्स है। ऐसा लगता है कि कुछ साल में देश की आबादी से ज्यादा मोबाइल यूजर्स की संख्या हो जाएगी। क्योंकि ज्यादातर लोग एक से ज्यादा मोबाइल रखने लगे हैं। देश में 103.42 करोड़ वाई-फाई उपभोक्ता है जो वाई-फाई नेटवर्क का इस्तेमाल करते है। लगभग 16 करोड़ लोग ब्रॉडबैंड के जरिए इंटरनेट का प्रयोग करते है। यह कुछ आंकड़े है जिनसे यह पता चलता है कि देश में मोबाइल,स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल दिन-ब-दिन कितनी तेजी से बढ़ता चला जा रहा है।

94 मिलियन सेल्फी प्रतिदिन दुनिया में क्लिक होते हैं। सेल्फी यानी खुद की फोटो खींचना। भारत ही नहीं पूरे देश में इसके प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ी है लेकिन युवाओं में इसका क्रेज सर चढ़कर बोलता है। युवाओं के अलावा शायद ही कोई ऐसा वर्ग होगा जो इसके क्रेज से अछूता हो। वर्ष 2013 में 'सेल्फी', ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द इयर बना जो इसके क्रेज की दास्तां बयां करता है। अगर देखा जाए तो इसका चलन पिछले तीन से चार साल में ज्यादा बढ़ा है। स्मार्टफोन कल्चर के दौर में इसे सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला। क्योंकि सेल्फी लेना फ्रंट कैमरे से मुमकिन होता है। गूगल के सर्वे से पता चलता है कि स्मार्टफोन के इस दौर में आज के युवक-युवतियां जो पूरे दिन में रोजाना औसतन 11 घंटे अपने फोन पर बिताते हैं वे पूरे दिन में एक-दो नहीं बल्कि 14-14 सेल्फी लेते हैं। 

सेल्फी का क्रेज कितना जानलेवा साबित हो रहा है, यह हम देख रहे है। लेकिन लोगों की स्मार्टफोन से बढ़ती अनावश्यक आसक्ति चिंतित करनेवाली है। एक सर्वे के मुताबिक पुरुष 20 सेकेंड से ज्यादा समय तक भी अपने मोबाइल फोन या स्मार्टफोन से दूर नहीं रह पाते। दूसरी तरफ महिलाओं की स्थिति इस मामले में पुरुषों से थोड़ी बेहतर है। महिलाएं अपने करीब से मोबाइल की दूरी 57 सेकेंड से ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाती है। मतलब साफ है कि पुरुषों को अगर 20 सेकेंड और महिलाओं को 57 सेकेंड में मोबाइल की गैर-मौजूदगी उन्हें बैचन करती है।

दूसरी तरफ भारत अब भी 'सेल्फी डेथ कंट्री' में शुमार होता है जहां रिपोर्ट के मुताबिक सेल्फी के दौरान सबसे ज्यादा मौतें होती है। 'द वाशिंगटन पोस्ट' ने चंद महीने पहले अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया था कि साल 2015 में भारत में कई लोगों ने खतरनाक तरीके से सेल्फी लेने की कोशिश की। इस वजह से उनकी जान चली गई।  दुनियाभर में सेल्फी के चक्कर में 27 लोगों की जान गई जिनमें 15 से ज्यादा मौतें सिर्फ भारत में हुईं। यह आंकड़ा चिंतित करनेवाला है।

ज्यादातर ये देखा गया है कि लोग या फिर युवा खतरनाक जगहों पर और खतरनाक स्थिति में सेल्फी के दीवाने होते है। एक ऐसी स्थिति जिस जगह सेल्फी की चाहत एक दुर्घटना को जन्म देती है और यह मौत का भी कारण बन सकती है। युवाओं को इस तरह की सेल्फी लेने और फिर उसे व्हाट्सएप पर भेजने या सोशल साइट पर अपलोड करने की जल्दी होती है। यही जल्दी एक लापरवाही में तब्दील होती है जिससे लोग अपनी जिंदगी की अपने हाथों बलि दे रहे हैं। जनवरी 2016 में सेल्फी लेने के चक्कर में मुंबई में पुलिस ने 16 पिकनिक स्पॉट को 'नो सेल्‍फी जोन्स' जोन बनाया। मकसद यही था कि फिर सेल्फी के चक्कर में किसी की जिंदगी नहीं जाए। इन्हीं सब चीजों को ध्यान में रखते हुए पिछले साल नासिक कुंभ मेले के दौरान कुछ जगहों पर भी 'नो सेल्फी जोन्स' बनाए गए थे। पिकनिक स्पॉट, समंदर की लहरों, ऊंची चट्टानों, नदी की जलधारा युवाओं को सेल्फी लेने के लिए आकर्षित करती है और यही दीवानगी जानलेवा साबित हो रही है।

सेल्फी का शौक अपनी गलती और लापरवाही से एक तरफ जानलेवा साबित हो रहा है तो दूसरी तरफ स्मार्टफोन के इस्तेमाल के और भी कई नुकसान है जिसका सीधा संबंध हमारे सेहत से है। त्वचा विशेषज्ञों के मुताबिक चेहरे पर लगातार स्मार्टफोन की लाइट और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है। इससे चेहरे की झुर्रियां भी बढ़ सकती हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि व्यक्ति जिस साइड से स्मार्टफोन यूज करता है उसका वह हिस्सा दूसरे हिस्से की बजाय ज्यादा प्रभावित होता है। मिसाल के तौर पर अगर कोई व्यक्ति बाई तरफ से मोबाइल से बातचीत करने का आदि है तो उसके इस हिस्से में त्वचा संबंधी और श्रवण शक्ति संबंधी तकलीफें बढ़ सकती है।

हालियां सर्वे में यह बात सामने आई है कि ज्यादा सेल्फी लेने के भी नुकसान है। जानकारों के मुताबिक फोन की स्क्रीन की नीली रोशनी भी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है। रोशनी का मैगनेटिक प्रभाव होता है जो त्वचा पर असर डालने के साथ चेहरे के रंग को भी प्रभावित करता है। कुछ विशेषज्ञों यह भी मानना है कि मोबाइल फोन की विद्युतचुंबकीय तरंगें डीएनए को नुकसान पहुंचाकर त्वचा की उम्र बढ़ा देती है। ये त्वचा की खुद को सुधारने की क्षमता को खत्म कर देती है। लिहाजा आम मॉस्चेराइजर्स और तेल इन पर काम नहीं कर पाते और इससे त्वचा को ज्यादा नुकसान होता है।

सेल्फी जानलेवा साबित हो रही है तो उसके लिए सावधानी बरतना जरूरी है। पहला सिर्फ सेल्फी की आस में ऐसे 'जानलेवा एवडेंचर' से बचा जाए जहां जान का खतरा हो, किसी दुर्घटना का अंदेशा हो। इसके लिए जरूरी है कि चलती ट्रेन, चलती गाड़ी ,पहाड़ों और छत पर सेल्फी खींचने से बचना चाहिए। ऐसी जगहों पर ज्यादातर ये देखा गया है कि 'परफेक्ट' सेल्फी पिक्चर के चक्कर में दुर्घटना हो जाती है जिसका हमें कतई अंदाजा नहीं होता। सेल्फी का शौक या क्रेज बुरा नहीं कहा जा सकता लेकिन यह उस हद तक नहीं होना चाहिए जहां जिंदगी सुरक्षित नहीं रह जाती और मुश्किलों में घिर जाती है। समंदर की लहरों या पहाड़ की ऊंची चट्टानों के अलावा बागानों के फूल या फिर घर में कमरे के अंदर भी सेल्फी ली जा सकती है। सेल्फी की 'अति' पर नियंत्रण रखने की जरूरत है। ख्वाहिशों या क्रेज के समंदर में ऐसा भंवर हर्गिज ना हो जिससे आपकी जिंदगी पर किसी भी प्रकार का खतरा मंडराता हो। जिंदगी अनमोल है, इसे सेल्फी जैसे क्रेज से खत्म करना कहां की समझदारी है?

रउफ अहमद सिद्दीकी नॉएडा

Friday, August 11, 2017

आखिर क्यों बदनाम हो रहा है मिडिया

देश में आज मीडिया पूरी तरह बदनाम हो रहा है या हो चूका है लेकिन जनता को यह जानना जरुरी है कि यह सब क्यों हो रहा है...
चलिए, हम एक छोटी सी कोशिश करते है आपको बताने कि.....
जरुरी नहीं है कि आप इसे माने लेकिन इस पर एक बार विचार जरूर करे......

देश में 2 तरह के मीडिया का अधिक चलन है इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (न्यूज़ चेनल) और प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र). पहले तो आप यह तय कर ले कि किस प्रकार के मीडिया में क्या बताया जा रहा है. पहले हम आपको इलेक्ट्रॉनिक मीडिया  कि सच्चाई बताया जा रही है.
1. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बड़े 18  चैनल जिनको आप देखते है मुकेश अम्बानी द्वारा ख़रीदे जा चुके है, इसलिए आपको बीजेपी ओर पीएम मोदी के समर्थन के ही समाचार दिखाए जाते है यहाँ तक की कई भाजपा नेता भी मीडिया से पूरी तरह बाहर है.

2. कुछ न्यूज़  चैनल के मालिक भाजपा कि ओर से राज्यसभा में सांसद है पीएम मोदी और भाजपा के फायदे और समर्थन के ही समाचार दिखाते है.

3. कुछ न्यूज़ चैनलो ने सच्चाई दिखानी चाही तो उनके प्रसारण पर ही रोक लगाने की कार्यवाही की गई. और कुछ को लाइसेंस ही निरस्त करने की धमकी दी गई. जिसके बाद उन्होंने अपने घुटने सरकार के सामने टेक दिए.

4. इन सबके अलावा अगर  चैनल थोड़ी बहुत भी सच्चाई दिखाता है तो उसके विज्ञापन बंद कर दिए जाते है या फिर कम टीआरपी का सार्टिफेकेट जारी कर दिया जाता है जिससे उक्त चैनल को आर्थिक नुकसान होता है.

5. एक  चैनल के मालिक पीएम मोदी के मीडिया सलाहकार भी है.

6. मोदी भक्ति के चलते ज़ी न्यूज़ से कई पत्रकारों चैनल को अलविदा कह दिया है.
अब बारी आती है प्रिंट मीडिया (समाचार पत्र) कि

1. देश के सभी बड़े समाचार पत्र मजीठिया वेज बोर्ड में फसे हुए है जिसके अनुसार हर समाचार पत्र के ऊपर (800 से 3900 करोड़ रुपये) की देनदारी है यह रकम समाचार पत्रो को अपने कर्मचारियों को देना है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सरकार ने बड़े समाचार पत्रो पर दवाब बनाया हुआ है. जिस कारण वो पीएम और बीजेपी के समर्थन में समाचार छापना मजबूरी है. मजीठिया के चलते दिल्ली से प्रकाशित देश का बड़ा हिंदी अखबार हिंदुस्तान को मुकेश अम्बानी द्वारा 5000 हजार करोड़ में ख़रीदा जा चूका है. इसके बाद कई और समाचार पत्रो को भी बड़े कारोबारी द्वारा जल्द ही ख़रीदा जायेगा.

2. राजस्थान से प्रकाशित बड़े हिंदी अखबार राजस्थान पत्रिका ने कुछ कोशिश की तो केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने उनके विज्ञापन पर रोक लगा दी. जिसको लेकर राजस्थान पत्रिका ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.

3. देश के सभी समाचार पत्रो पर केंद्र सरकार ने सख्ती दिखाते हुए कई कड़े नियम लाद दिए जिससे 9000 समाचार पत्रो में से केबल 2000 समाचार पत्र ही बचे है, बाकी या तो बंद हो चुके है या फिर आर्थिक संकट का दंश झेल रहे है.

4. देश भर के समाचार पत्रो से अब तक 2 लाख लोगो का रोजगार समाप्त हो चूका है. और भी करीब 1 लाख लोगो की नोकरियो पर तलवार लटक रही है. छोटे समाचार पत्रो को मैनेज करना मोदी सरकार के लिए टेडी खीर थी इसलिए उन्होंने सूचना प्रसारण के माध्यम से एक बार में छोटे समाचार पत्रो या तो ख़त्म कर दिया या फिर दबा दिया.

5.. केंद्र सरकार ने अपने समर्थक बड़े समाचार पत्रो को प्रीमियम दर पर कई गुना विज्ञापन प्रदान कर रही है और देश के 6000 समाचार पत्रो को पिछले 6 माह में केवल एक विज्ञापन दिया गया है.

ये तो केवल कुछ बाते ही है जो आपके समक्ष प्रदर्शित की गई है. इससे भी आगे बहुत कुछ है. मीडिया पर इस तरह का दबाब इमरजेंसी के समय भी नहीं था. अगर समाचार पत्र समाप्त हो गए तो आम आदमी की पहुँच इस चौथे स्तम्भ से भी दूर होती जायगी. जनता केबल वही पढेगी, वही देखेगी जो सरकार और बड़े उद्योग घराने दिखाना चाहेंगे. तय आपको करना है की आप क्या चाहते है. दुनिया का  सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश का मीडिया चंगुल में फंस गया है. जो पिछले 70 सालो में स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ.