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Saturday, May 20, 2017

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

एक बात आप लिख कर रख लो 27 मई को लालू की रैली है उसमें कांग्रेस टीएमसी सपा बसपा और लगभग सभी स्वघोषित सेक्युलर पार्टियों को बुलाया गया है उसके बाद का परिणाम जो आयेगा वो वो इस प्रकार होगा- महागठबंधन बन जायेगा और नारा दिया जायेगा मोदी हटाओ देश बचाओ इस मुहीम में सबसे आगे मुस्लिम समाज के लोग होंगे जो बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना का रोल निभाएंगे और जमकर मोदी के खिलाफ मुहिम चलाई जाएगी उसके बाद आरएसएस और बीजेपी के तरफ से दूसरा मुहिम शुरू होगा उसका प्रचार कुछ इस तरह होगा हिन्दू विरोधी सभी पार्टियां ने एक जुट होकर मोदी को हराना चाहती है जिसमे मुल्ले भी उनका साथ दे रहें है आप हिंदू समाज के लोग हिदुत्व के रक्षा के लिए 2019 में बीजेपी को वोट करें
अंतिम परिणाम मोदी सरकार के हज़ारो बुराई को दरकिनार कर के बहुसंख्यिक वर्ग मोदी को वोट देगा और 2019 में बीजेपी फिर से सत्ता में आएगी
ये पोस्ट पढ़कर आप मुझे बीजेपी समर्थक घोषित कर सकते है पर यही हकीकत  है और बीजेपी यही चाहती है कि मुस्लिम बीजेपी का जमकर विरोध करें जिससे बहुसंख्यिक समाज को एक किया जा सके इस समस्या का एक ही समाधान है मुस्लिम समुदाय बिलकुल खामोश रहे किसी भी मुहीम का हिस्सा नही बने  फिर देखये बीजेपी कैसे सत्ता से बाहर होती है
क्यों की हमें आज भी अरब जाकर या पंचर बना कर कामना है कल भी यही काम करना है इस पोस्ट को ज्यादा अच्छे तरह से समझाने के लिए इसमे का पोस्ट जोड़ रहा हूँ उसको भी पढ़िये और अक्ल से काम लीजये👇
तुम अपनी कमियों और नाकामियों का विश्लेषण क्यूँ नहीं करते। आख़िर क्यूँ अपनी तमाम नाकामियों का इल्ज़ाम दूसरे पे लगा देते हो। दूसरे तुम्हारी विफलता ही चाहते हैं। कोई सामने आकर इसे स्वीकार करता है तो कोई परदे के पीछे से इसके लिए ज़मीने त्यार करता है। मगर तुम ख़ुद तुम्हारे लिए क्या करते हो?

तुम्हारी पहली विफलता ये है की तुम्हें सबने मिल कर भजपा का अकेला दुश्मन बना डाला। जबकि भाजपा से सीधे सीधे तुम्हारी कोई शत्रुता नहीं। क्यूँकि तुम उनके मोक़ाबले में कोई पलिटिकल पार्टी लेकर मैदान में नहीं हो। भाजपा के असल विरोधी तो ये दूसरी पलिटिकल पार्टियाँ है जो उन्हें सत्ता से दूर रखने के लिए तरह तरह के हरबे इस्तेमाल करती हैं। और इन हरबों में पहले हरबा ये है की ये तुम्हें आगे कर देती है। और तुम भी इसे अपना फ़र्ज़-ए-मनसबी समझ कर मैदान में कूद पड़ते हो। और नतीजा क्या निकलता है? दुश्मनी तुम से पैदा हो जाती है और वो लोग जिन्होंने तुम्हें इस्तेमाल किया ख़ुद बग़ल-गीर हो जाते हैं।

तुमने देखा तो होगा, अभी UP के चुनाव के बाद का दृश्य --- मुस्कुराहट बिखेरते अखिलेश को, गले मिलते और सरगोशियाँ करते मुलायम को। तुम ने सुना तो होगा राम गोपाल यादव को ये कहते कि "हम CM का बड़ा सम्मान करते हैं और हम उन्हें वक़्त देना चाहते हैं।"
तो वो तो हार कर भी जीत गए। और तुम जीत कर भी हार जाते हो --- और हार कर तो हारते ही हो।

मुसलमानो, इस सत्ता की लड़ाई में तुम कहीं नहीं हो। मगर फिर भी शत्रु तुमने ही पाल रखे हैं। और जो सत्ता कि रेस में हैं वो सब एक ही महफ़िल में रंग जमा रहे हैं। और जिनकी की जंग तुम लड़ने के लिए मैदान में उतर आते हो उनकी जीत में भी तुम्हारी जीत नहीं होती।

संघ ने दलितों को इस्तेमाल क्या और इन ग़ैर-भाजपा राजनीतिक दलों ने तुम्हें बाली का बकरा बनाया।

तो अब उतार फेको ये ना दिखने वाला ग़ुलामी का पट्टा अपने गालों से ---- सर जोड़ कर बैठ जाओ और अपनी नाकामियों का विश्लेषण करो। सारी पलिटिकल पार्टीओं को एक खाने में रखो और मुद्दों पे उनका समर्थन और विरोध करो। पलिटिक्ली ख़ुद को मैदान में लाओ। अगर दीन तुम्हारे दिलों में रहेगा तो कोई तुम्हारी शिनाख़्त  मिटा नहीं सकता।

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