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Wednesday, May 10, 2017

मेट्रो का सफर थोड़ा महँगा

दिल्ली मेट्रो का किराया बढ़ा तो लोगों को दर्द हुआ, लेकिन जान लें विदेशी कर्ज से हो रहे विकास कि कडवी तस्वीर यही है . मेट्रो में भयंकर भीड़ होती है, बगैर टिकट कोई चल नहीं सकता, मेट्रो अपनी जमीं जायदाद, दूकान, विज्ञापन से भी अच्छा कमाता है , फिर भी उसका घाटा हजारो करोड़ में है . असल में यह अंतर्राष्ट्रीय लोबिंग, क़र्ज़ दिलवाने, उस पर करोडो का कमीशन खाने और विकास के भ्रम कि धुंधली तस्वीर है . दिल्ली मेट्रो के लिए जापानी क़र्ज़ हमारे सर पर हा जिसका भयंकर ब्याज चुकाना पड़ता है , एक बात और जान लें भले ही सडक पर कुछ भीड़ कम हो लेकिन मेट्रो के कारान वायु प्रदुषण कतई कम नहीं होता, उसको चलाने के लिए लगने वाली बिजली, उसके चलने से घर्षण , निर्माण सभी कुछ मिला कर पर्यावरण को उतना ही नुक्सान पहुंचा रहे है जितना सड़क पर चलने वाले वाहन .
यही नहीं मेट्रो के अधिकाँश कर्मचारी ठेके पर है और नाकाफी वेतन, कड़ी सेवा शर्तें और शोषण के किस्से भी आम हैं
एक विकास का झुन झुना बजाया गया , मेट्रो के नाम पर, विदेशी कर्ज के लिय लोबिंग करने वालों ने खुद कमाया, नातों कि झोली भरी और फिर मेट्रो के नाम पर रियल एस्टेट मार्केट से उगाही की .
अब मेट्रो कि भीड़ कपडा फाड़  है , मेट्रो स्टेशन के बाहर स्थानीय संचालन करने वाले वाहोनो कि अराजकता है  और ऊपर से किराया बढ़ गया , हमारी आने वाली कई पुश्तें इस विकास के कर्ज का ब्याज चुकाती रहेंगी , विकास कि अवधारणा को समझे, समेक्ति विकास वाही जो आपकी चादर के लायक पैर फैलाने कि गुंजाईश रखे

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