रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Tuesday, May 30, 2017

रोज़े में खजूर की अहमियत

माह ए रमजान का पाक महीना शुरू हो चुका है और आज चौथा रोजा है। यह माह दुनिया भर के मुसलमानों के लिए खास अहमियत रखता है। रमजान का महीना इस्लामिक कलैण्डर का नौवां महीना होता है। रमज़ान के पाक महीने को कुरान के महीने के नाम से भी जाना जाता है। रमजान का पाक महीना आ गया है। यह माह दुनिया भर के मुसलमानों के लिए खास अहमियत रखता है। रमजान का महीना इस्लामिक कलैण्डर का नौवां महीना होता है। माना जाता है कि इस महीने में की गई दुआ सचमुच अल्लाह के आशीर्वाद से बक्शी जाती है और सीधे जन्नत तक पहुंचाती है। मान्यता तो यह भी है कि इस समय नरक के द्वार बंद रहते हैं, जिसके पीछे शैतान बंधे होते हैं। रमजान के पाक महीने को कुरान के महीने के नाम से भी जाना जाता है। इस महीने के दौरान हर मुसलमान को ज्यादा से ज्यादा कुरान पढ़ने को कहा जाता है। कहते हैं इस महीने में की गई दुआ अल्लाह कबूल करता है। रमजान के दौरान हर मुसलमान रोज़े का पालन करता है और सूर्यास्त होने पर इफ्तार के साथ इसे तोड़ता है। रमजान का महीना वास्तव में हर मुसलमान के लिए अनुशासन आत्म-नियंत्रण बलिदान और सहानुभूति जगाने का महीना है। और रोजा इन्हीं पवित्र भावनाओं का प्रतीक है। रमजान के दौरान मुसलमान शराब और स्त्री के बारे में गलत विचार से दूर रहते हैं। रमजान के महीने में हर दिन रोजा रखने वाले मुस्लिम परिवार सुबह जल्दी उठ कर भोजन लेने हैं। जिसे सहरी कहा जाता है। सहरी सूरज उगने से पहले ली जाती है। इसे बाद पूरे दिन भूखे प्यासे और दुआओं में बने रहने के बाद सूर्यास्त पर पूरा परिवार इफ्तार करता है। मान्यता के अनुसार इफ्तार से पहले खजूर से अपना रोज़ा खोलना होता है। 

कहाँ जा रही है पत्रकारिता

नारद को पत्रकार के साथ-साथ मीडिया टीचर बताने वाले इस लेख के बीच में एक बॉक्स के अंदर एक नोट नुमा लेख और है. इस नोट को कुसुमलता केडिया ने लिखा है. कुसुमलता के ‘लेक्चर्स’ के कई वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं, जिनमें वो बताती हैं कि भारत में कभी सती प्रथा नहीं थीं क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई और इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी जैसी महिलाएं सती नहीं हुई. इसके साथ ही उनके दुनिया के इतिहास के बारे अपने ही मत हैं जिनको आप खुद सुनें तो बेहतर है.

इस लेख का जिक्र यहां इसलिये जरूरी है कि वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के पित्तृ संगठन की मुख्य पत्रिका में देश की सबसे बड़ी पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के कुलपति का लेख छपता है. इस लेख में वो तर्क से मीलों दूर जाकर एक खास तरह का एजेंडा पेश करते हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव और पत्रकारिता की गरिमा को बचाने के लिए स्टेटस पोस्ट करने वाले तमाम युवा, वरिष्ठ और अति वरिष्ठ पत्रकार इससे अनजान रहते हैं. क्या कहेंगे इस पर कि अगर कोई चीज दिल्ली की हद में नहीं घटती तो देश से उसका कोई सरोकार नहीं रहता.

किस तरफ जा रही है हिंदी पत्रकारिता

इस लेख के जिक्र की अगली वजह पर बात करने से पहले चलिए हिंदी पत्रकारिता और खास तौर पर हिंदी वेब पत्रकारिता पर सरसरी निगाह डाल लेते हैं.

हिंदी जर्नलिज़म की वेबसाइट्स को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं. (इसमें प्रोपेगैंडा वाले पोर्टल शामिल नहीं हैं). एक तरफ वो वेबसाइट्स हैं जो किसी प्रसिद्ध अखबार या टीवी चैनल का डिजिटल वर्ज़न है. इस खांचे में आने वाली हिंदी के तकरीबन सारे नाम कूड़ा परोस रहे हैं.

हिंदी अखबारों के डिजिटल वर्ज़न का कूड़ा तो सबको पता ही है. हिंदी के चैनलों के एक्सटेंशन का कचरा भी इससे अलग नहीं है. हिंदी के सबसे गंभीर चैनल की वेबसाइट को देखें. टैबलॉइड और शोर मचाने वाली पत्रकारिता, किसी भी तरह की ट्रोलिंग से दूरी बनाने वाले चैनल की वेबसाइट पर तकरीबन रोज ही अंतः वस्त्रों में छुट्टियां मनाती हिरोइनों की तस्वीरें देखने की गुजारिश दिख जाएगी.

इसके साथ-साथ मोबाइल पर खींची गई चुड़ैल की फोटो भी दिख जाएगी. पूछा जाना चाहिए कि क्या जर्नलिस्टिक एथिक्स का दायरा डिजिटल पर लागू नहीं होता.

वेबसाइट्स की दूसरी कैटेगरी में उन ई मैग्जीन को शामिल करना चाहिए जिनके पीछे कोई प्रतिष्ठित मीडिया हाउस नहीं है और जो निष्पक्ष पत्रकारिता की बात करती हैं. इस कैटेगरी में आने वाले ज्यादातर नाम पहले अंग्रेजी में शुरू हुए और बाद में हिंदी में आए. अपवादों को छोड़कर इन वेबसाइट्स की हिंदी और अंग्रेजी कॉन्टेंट की स्थिति में वही फर्क है, जो भारतीय क्रिकेट टीम और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लोकप्रियता में है.

तीसरी श्रेणी की वेबसाइट्स इंटरनेट पर ही शुरू हुईं और उनके पीछे किसी न किसी मीडिया संस्थान का हाथ है. इस कैटेगरी के पास सबसे बेहतर संसाधन होते हैं. एक एलीटनेस होती है कि हम टीवी जैसा कोई क्लीशे नहीं करेंगे. उससे अलग करेंगे. क्योंकि एक मोबाइल फोन और सेल्फी स्टिक के साथ बिना बड़े खर्चे के कहीं से भी रिपोर्टिंग और लाइव किया जा सकता है.

‘इतनी उथल-पुथल के बीच कश्मीर से कितने लाइव हुए?’ जिस सहारनपुर में 3 महीने पहले तमाम लोग चुनावी कवरेज के लिए पहुंचे थे, वहां अब कितने वैकल्पिक पत्रकारों को भेजा गया?

सवाल और भी हैं पर फिलहाल इतने ही काफी रहेंगे. वापस उसी नारदीय लेख पर आते हैं. हिंदी वेब में कितने ऐसे नए और कथित वरिष्ठ पत्रकार हैं जो क्राइम और कोर्ट की प्रोसिडिंग पर लेख लिख सकते हैं. कितने ऐसे लोग हैं जो ऑटोमोबाइल पर अच्छा काम कर रहे हैं. पॉपुलर साइंस और इंटरनेश्नल पॉलिटिक्स की तो बात ही छोड़ दीजिए, अति चर्चित विषय फेमिनिज्म के 3 काल खंडों पर आपने कैसा भी हिंदी आर्टिकल कब पढ़ा था. सायबर लॉ एक्सपर्ट की बात हटाइए, सिनेमा और संगीत पर लिखने का मन रखने वालों में कितने लोग हैं, जो रोचक किस्सों और चर्चित डायलॉग को छोड़कर ओमपुरी, किशोरी अमोनकर या महाश्वेता देवी के रचनात्मक काम की समीक्षा करते हुए ढंग की ऑर्बिच्युरी लिख पाए. एक आध अपवादों के नाम अगर आपके दिमाग में आ रहे हैं तो उनमें से ज्यादातर या तो कथित बेस्ट मीडिया स्कूल के सिस्टम से नहीं आए हैं. या करियर के ज्यादातर समय न्यूज रूम के बाहर रहें हैं.

हिंदी वेब पत्रकारिता का एक पहलू और भी है जिसकी बात किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है. न्यूज रूम की भाषा में कहें तो, खबर अच्छी चलाने के लिए सेक्स करना (उस पर खबर करना) जरूरी है. खबरों में सेक्स दो तरह से होता है. एक फूहड़ तरीका है जिसमें उत्तेजक हेडिंग के साथ कुछ तस्वीरें और बातें लिख दी जाती हैं.

दूसरे तरीके में एंटी-पॉर्न बेचा जाता है. इसमें हिदी की सबसे गंभीर वेबसाइट्स पर भी आपको अच्छा खासा मैटर दिख जाएगा. बस उसमें कोई ज्यादा बदनाम हैं तो कोई कम. ऐंटी-पॉर्न के साथ समस्या ये भी है कि उसके कई प्रतिबंधित विषय ऐसे हैं जिन पर बात होनी ही चाहिए. मगर अक्सर इन विषयों के नाम पर कुछ और ही बेचा जाने लगता है.

यकीन मानिये किसी भी विषय पर लिखे गए लेख में स्तन, योनि और लिंग जैसे शब्द आम बोलचाल इस्तेमाल से ज्यादा आ रहे हैं तो इसका मतलब है कि वहां पढ़ने वाले को ‘कुछ और’ ही बेचा जा रहा है.

Saturday, May 27, 2017

औरते और रमजान।

औरत बेचारी सबसे पहले उठे सहरी बनाये सबसे आखिर में खाये। फिर रोज़ा रखे दोपहर में बच्चों के लिए पकाये, फिर चार बज़े से अपने शौहर और ससुराल वालों के लिए इफ्तारी बनाने के लिए जुट जाती है। पकौड़े,  पौड़ी, चिकन, चने और ना जाने क्या क्या और फिर भी यही टेन्शन की पता नहीं शौहर ,बाप या ससुर को पसंद आते हैं या नहीं, शौहर का ग़ुस्सा अफ्तारी से पहले बर्दाश्त करे, फिर अज़ान के वक़्त तक पकौड़े तलती रहे की मियां को बासी पकौड़े पसंद नहीं। सब रोज़ा खोल लें तो वह चुपके से आ कर रोज़ा खोल लेती है। और तमाम घर वालों को पूरी अफ्तारी खिलाने और शर्बत पिलाने की खातिर दारी करती रहती है, और कोई इफ्तारी ऐसी नहीं होती जिसमें कोई उसकी तारीफ कर दे, बल्कि पकौड़े और शर्बत में तो हमेशा शिकायत ही मिलती है, शौहर, भाई, अब्बा इफ्तारी में रोटी सालन खा कर दिन का खाना खत्म नहीं करती है, बल्कि तराविह के बाद असल खाना खाया जाता है, फिर यह औरत तमाम दस्तरख्वांन समेट कर अगले खाने की तैयारी करने लगती है, सारे घर का काम खत्म करके आधी रात हो जाती है, ओह हाँ उसे सुबह तीन बज़े उठना भी तो है, अलार्म याद से रखना होगा वरना अगर आँख नहीं खुली और घर वालों का बगैर सहरी का रोज़ा हो गया तो, सारा दिन उसे घर वालों का गुस्सा बर्दाश्त करना होगा।

गुज़ारिश है  मुसलमान बनो अबकी बार घर की ख्वातीन जो भी रिश्ता है माँ , बहन , बीबी या बेटी उनका भी रमजान में खयाल रखें, क्यू की वह भी आप ही की तरह इंसान है।
#आप_सभी_घर_की_ओरतो_ख्याल_रखे_और_खुद_भी_नेकिया_भलाई_फलाः_कामयाबी_हासिल_कर ले और घर की ओरतो को भी  इस बाबरकत महीने में कमाई करने दे नेकियों की
ओरत ही रोनक  ओरत ही बहार ह  इज़्ज़त करो उनके हक़ का सम्मान दो अल्लाह आपको सम्मान देगा  आप मोहब्बत  तो करो वो बेगररज  मोहब्बत देगी  जान  लगा देगी.

Wednesday, May 24, 2017

भाग्य।

भाग्य। 

एक व्यक्ति जीवन से हर प्रकार से निराश था । लोग उसे मनहूस के नाम से बुलाते थे ।
एक ज्ञानी पंडित ने उसे बताया कि तेरा भाग्य फलां पर्वत पर सोया हुआ है , तू उसे जाकर जगा ले तो भाग्य तेरे साथ हो जाएगा । बस ! फिर क्या था वो चल पड़ा अपना सोया भाग्य जगाने ।
रास्ते में जंगल पड़ा तो एक शेर उसे खाने को लपका , वो बोला भाई ! मुझे मत खाओ , मैं अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा हूँ ।
शेर ने कहा कि तुम्हारा भाग्य जाग जाये तो मेरी एक समस्या है , उसका समाधान पूछते लाना । मेरी समस्या ये है कि मैं कितना भी खाऊं … मेरा पेट भरता ही नहीं है , हर समय पेट भूख की ज्वाला से जलता रहता है ।*
मनहूस ने कहा– ठीक है । आगे जाने पर एक किसान के घर उसने रात बिताई । बातों बातों में पता चलने पर कि वो अपना सोया भाग्य जगाने जा रहा है ,
किसान ने कहा कि मेरा भी एक सवाल है .. अपने भाग्य से पूछकर उसका समाधान लेते आना … मेरे खेत में , मैं कितनी भी मेहनत कर लूँ . पैदावार अच्छी होती ही नहीं । मेरी शादी योग्य एक कन्या है, उसका विवाह इन परिस्थितियों में मैं कैसे कर पाऊंगा ?

मनहूस बोला — ठीक है । और आगे जाने पर वो एक राजा के घर मेहमान बना । रात्री भोज के उपरान्त राजा ने ये जानने पर कि वो अपने भाग्य को जगाने जा रहा है , उससे कहा कि मेरी परेशानी का हल भी अपने भाग्य से पूछते आना । मेरी परेशानी ये है कि कितनी भी समझदारी से राज्य चलाऊं… मेरे राज्य में अराजकता का बोलबाला ही बना रहता है ।
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मनहूस ने उससे भी कहा — ठीक है । अब वो पर्वत के पास पहुँच चुका था । वहां पर उसने अपने सोये भाग्य को झिंझोड़ कर जगाया— उठो ! उठो ! मैं तुम्हें जगाने आया हूँ । उसके भाग्य ने एक अंगडाई ली और उसके साथ चल दिया ।
उसका भाग्य बोला — अब मैं तुम्हारे साथ हरदम रहूँगा ।
अब वो मनहूस न रह गया था बल्कि भाग्यशाली व्यक्ति बन गया था और अपने भाग्य की बदौलत वो सारे सवालों के जवाब जानता था ।
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वापसी यात्रा में वो उसी राजा का मेहमान बना और राजा की परेशानी का हल बताते हुए वो बोला — चूँकि तुम एक स्त्री हो और पुरुष वेश में रहकर राज – काज संभालती हो , इसीलिए राज्य में अराजकता का बोलबाला है । तुम किसी योग्य पुरुष के साथ विवाह कर लो , दोनों मिलकर राज्य भार संभालो तो तुम्हारे राज्य में शांति स्थापित हो जाएगी ।
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रानी बोली — तुम्हीं मुझ से ब्याह कर लो और यहीं रह जाओ ।
भाग्यशाली बन चुका वो मनहूस इन्कार करते हुए बोला — नहीं नहीं ! मेरा तो भाग्य जाग चुका है । तुम किसी और से विवाह कर लो । तब रानी ने अपने मंत्री से विवाह किया और सुखपूर्वक राज्य चलाने लगी |
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कुछ दिन राजकीय मेहमान बनने के बाद उसने वहां से विदा ली ।
चलते चलते वो किसान के घर पहुंचा और उसके सवाल के जवाब में बताया कि तुम्हारे खेत में सात कलश हीरे जवाहरात के गड़े हैं , उस खजाने को निकाल लेने पर तुम्हारी जमीन उपजाऊ हो जाएगी और उस धन से तुम अपनी बेटी का ब्याह भी धूमधाम से कर सकोगे ।
किसान ने अनुग्रहित होते हुए उससे कहा कि मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूँ , तुम ही मेरी बेटी के साथ ब्याह कर लो ।पर भाग्यशाली बन चुका वह व्यक्ति बोला कि नहीं !नहीं ! मेरा तो भाग्योदय हो चुका है , तुम कहीं और अपनी सुन्दर कन्या का विवाह करो । किसान ने उचित वर देखकर अपनी कन्या का विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा ।
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कुछ दिन किसान की मेहमाननवाजी भोगने के बाद वो जंगल में पहुंचा और शेर से उसकी समस्या के समाधानस्वरुप कहा कि यदि तुम किसी बड़े मूर्ख को खा लोगे तो तुम्हारी ये क्षुधा शांत हो जाएगी ।

शेर ने उसकी बड़ी आवभगत की और यात्रा का पूरा हाल जाना । सारी बात पता चलने के बाद शेर ने कहा कि भाग्योदय होने के बाद इतने अच्छे और बड़े दो मौके गंवाने वाले ऐ इंसान ! तुझसे बड़ा मूर्ख और कौन होगा ? तुझे खाकर ही मेरी भूख शांत होगी और इस तरह वो इंसान शेर का शिकार बनकर मृत्यु को प्राप्त हुआ ।
यदि आपके पास सही मौका परखने का विवेक और अवसर को पकड़ लेने का ज्ञान नहीं है तो भाग्य भी आपके साथ आकर आपका कुछ भला नहीं कर सकता है।
       

Tuesday, May 23, 2017

तीन तलाक़

इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की एक बेंच एक साथ तीन तलाक़ के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है. बुधवार को सुनवाई का पांचवां दिन है.

एक ही समय में तीन तलाक़ भारत के मुसलमानों से जुड़ी एक विवादित प्रथा है. इसके बारे में लोगों के पास सही जानकारी भी कम ही है.

इससे जुड़े कुछ सवालों के जवाब

कितना प्रचलित है तीन तलाक़?

आम तौर पर ये समझा जाता है कि भारत के मुसलमानों में एक साथ तीन तलाक़ एक गंभीर समस्या है. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने एक संस्था के कराए सर्वे का हवाले देते हुए लिखा है कि भारत के मुसलमानों में ज़बानी तीन तलाक़ के मामले दाल में नमक के बराबर हैं.

फूलवती के मुकदमे ने कैसे खोला 'तीन तलाक़' का पिटारा?

तीन तलाक़ पर सुनवाई कर रहे ये 'पंच परमेश्वर'

सर्वे में 20,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया था. ज़ुबानी तीन तलाक़ की संख्या एक प्रतिशत से भी कम पाई गई. लेकिन मुस्लिम समुदाय की शादीशुदा महिलाओं के अनुसार इस प्रथा से मुस्लिम महिलाओं में असुरक्षा का एहसास काफ़ी है. महिलाओं का बहुमत ज़ुबानी तीन तलाक़ ख़त्म करने के पक्ष में

पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे इस्लामी देशों में तीन तलाक़ पर पाबंदी है. ज़बानी तीन तलाक़ का चलन दुनिया में भारतीय मुसलमानों के बीच ही है और वो भी हनफ़ी विचारधारा को मानने वालों के बीच.

इस्लाम की चार ख़ास विचारधाराओं में से भारत में हनफ़ी धारा को मानने वालों का बहुमत है. हनफ़ी धारा के मानने वालों के बीच तीन तलाक़ सही है. बाक़ी तीन धाराओं में "एक ही सांस में तीन बार तलाक़" को एक ही माना जाएगा. शादी ख़त्म करने के लिए कुछ महीनों के अंतराल में अलग-अलग समय में दो बार तलाक़ देना होगा.

लेकिन इस पर इस्लामी विद्वानों के बीच सहमति नहीं है. कुछ विद्वानों के अनुसार तो एक बार में तीन तलाक़ एक दम से ग़ैर इस्लामी है और ये क़ुरान के ख़िलाफ़ है. उनके अनुसार क़ुरान के सूरह बक़रा में तीन तलाक़ के बारे में जो बताया गया है, उससे साफ़ ज़ाहिर है कि एक ही समय पर, एक ही सांस में तीन बार तलाक़ कहना इस मुक़द्दस किताब के ख़िलाफ़ है

तीन तलाक़ क्या है?

इस्लाम में तलाक़ देने के लिए तीन बार तलाक़ देना होता है. आम तौर से तीन तलाक़ अलग-अलग समय पर देना चाहिए ताकि अगर ग़ुस्से में तलाक़ कहा गया हो तो पति-पत्नी का रिश्ता टूटे नहीं.

अगर तीन बार "तलाक़, तलाक़, तलाक़" कहा गया हो, तब भी इसे एक ही तलाक़ माना जाएगा. लेकिन भारत के मुसलमानों के बीच अगर एक ही समय में जब मर्द अपनी पत्नी को एक ही सांस में तीन बार तलाक़ देता है तो इसे तीन तलाक़ मान लेते हैं और तलाक़ हो जाता है.

ज़बानी तीन तलाक़

कुछ लोग लिखित रूप से तलाक़ देते हैं. मुद्दा लिखित रूप से तीन तलाक़ देने का नहीं है. मुद्दा है ज़बानी एक बार में, एक ही सांस में तीन बार तलाक़ देने का है.

ट्रिपल तलाक़ पर मोदी के सात वचन

तीन तलाक़ से तलाक़ चाहती हैं मुस्लिम महिलाएं

ज़्यादातर भारतीय मुसलमानों के बीच अगर एक मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को एक ही सांस में तीन बार ज़बानी तलाक़ कहता है तो उसकी शादी ख़त्म हो जाती है.

बाद में उसे पछतावा हो तो इसका कुछ नहीं किया जा सकता.

हाँ, अपनी पत्नी को दोबारा हासिल करने के लिए और उससे निकाह करने के लिए उसकी पत्नी को किसी दूसरे मर्द से शादी करनी होती है और फिर यदि वो 'खुला' या तलाक़ के ज़रिए अलग हो जाते हैं तो वो अपने पहले पति से दोबारा शादी कर सकती है. इसे हलाला कहते हैं. ये प्रथा अब ख़त्म होती जा रही है.

मामला सुप्रीम कोर्ट में कैसे गया?

कुछ पीड़ित मुस्लिम महिलाओं और मुस्लिम महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने ज़बानी तीन तलाक़ को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

उनके मुक़दमे की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की एक बेंच बनाई है जिसमें सभी अलग-अलग धर्मों से हैं.

जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई, आरएफ़ नरीमन पारसी, यूयू ललित हिन्दू, अब्दुल नज़ीर मुस्लिम हैं और इस बेंच की अध्यक्षता कर रहे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, जो सिख हैं. समझा जा रहा है कि गुरुवार को सुनवाई ख़त्म हो सकती है.

Saturday, May 20, 2017

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

एक बात आप लिख कर रख लो 27 मई को लालू की रैली है उसमें कांग्रेस टीएमसी सपा बसपा और लगभग सभी स्वघोषित सेक्युलर पार्टियों को बुलाया गया है उसके बाद का परिणाम जो आयेगा वो वो इस प्रकार होगा- महागठबंधन बन जायेगा और नारा दिया जायेगा मोदी हटाओ देश बचाओ इस मुहीम में सबसे आगे मुस्लिम समाज के लोग होंगे जो बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना का रोल निभाएंगे और जमकर मोदी के खिलाफ मुहिम चलाई जाएगी उसके बाद आरएसएस और बीजेपी के तरफ से दूसरा मुहिम शुरू होगा उसका प्रचार कुछ इस तरह होगा हिन्दू विरोधी सभी पार्टियां ने एक जुट होकर मोदी को हराना चाहती है जिसमे मुल्ले भी उनका साथ दे रहें है आप हिंदू समाज के लोग हिदुत्व के रक्षा के लिए 2019 में बीजेपी को वोट करें
अंतिम परिणाम मोदी सरकार के हज़ारो बुराई को दरकिनार कर के बहुसंख्यिक वर्ग मोदी को वोट देगा और 2019 में बीजेपी फिर से सत्ता में आएगी
ये पोस्ट पढ़कर आप मुझे बीजेपी समर्थक घोषित कर सकते है पर यही हकीकत  है और बीजेपी यही चाहती है कि मुस्लिम बीजेपी का जमकर विरोध करें जिससे बहुसंख्यिक समाज को एक किया जा सके इस समस्या का एक ही समाधान है मुस्लिम समुदाय बिलकुल खामोश रहे किसी भी मुहीम का हिस्सा नही बने  फिर देखये बीजेपी कैसे सत्ता से बाहर होती है
क्यों की हमें आज भी अरब जाकर या पंचर बना कर कामना है कल भी यही काम करना है इस पोस्ट को ज्यादा अच्छे तरह से समझाने के लिए इसमे का पोस्ट जोड़ रहा हूँ उसको भी पढ़िये और अक्ल से काम लीजये👇
तुम अपनी कमियों और नाकामियों का विश्लेषण क्यूँ नहीं करते। आख़िर क्यूँ अपनी तमाम नाकामियों का इल्ज़ाम दूसरे पे लगा देते हो। दूसरे तुम्हारी विफलता ही चाहते हैं। कोई सामने आकर इसे स्वीकार करता है तो कोई परदे के पीछे से इसके लिए ज़मीने त्यार करता है। मगर तुम ख़ुद तुम्हारे लिए क्या करते हो?

तुम्हारी पहली विफलता ये है की तुम्हें सबने मिल कर भजपा का अकेला दुश्मन बना डाला। जबकि भाजपा से सीधे सीधे तुम्हारी कोई शत्रुता नहीं। क्यूँकि तुम उनके मोक़ाबले में कोई पलिटिकल पार्टी लेकर मैदान में नहीं हो। भाजपा के असल विरोधी तो ये दूसरी पलिटिकल पार्टियाँ है जो उन्हें सत्ता से दूर रखने के लिए तरह तरह के हरबे इस्तेमाल करती हैं। और इन हरबों में पहले हरबा ये है की ये तुम्हें आगे कर देती है। और तुम भी इसे अपना फ़र्ज़-ए-मनसबी समझ कर मैदान में कूद पड़ते हो। और नतीजा क्या निकलता है? दुश्मनी तुम से पैदा हो जाती है और वो लोग जिन्होंने तुम्हें इस्तेमाल किया ख़ुद बग़ल-गीर हो जाते हैं।

तुमने देखा तो होगा, अभी UP के चुनाव के बाद का दृश्य --- मुस्कुराहट बिखेरते अखिलेश को, गले मिलते और सरगोशियाँ करते मुलायम को। तुम ने सुना तो होगा राम गोपाल यादव को ये कहते कि "हम CM का बड़ा सम्मान करते हैं और हम उन्हें वक़्त देना चाहते हैं।"
तो वो तो हार कर भी जीत गए। और तुम जीत कर भी हार जाते हो --- और हार कर तो हारते ही हो।

मुसलमानो, इस सत्ता की लड़ाई में तुम कहीं नहीं हो। मगर फिर भी शत्रु तुमने ही पाल रखे हैं। और जो सत्ता कि रेस में हैं वो सब एक ही महफ़िल में रंग जमा रहे हैं। और जिनकी की जंग तुम लड़ने के लिए मैदान में उतर आते हो उनकी जीत में भी तुम्हारी जीत नहीं होती।

संघ ने दलितों को इस्तेमाल क्या और इन ग़ैर-भाजपा राजनीतिक दलों ने तुम्हें बाली का बकरा बनाया।

तो अब उतार फेको ये ना दिखने वाला ग़ुलामी का पट्टा अपने गालों से ---- सर जोड़ कर बैठ जाओ और अपनी नाकामियों का विश्लेषण करो। सारी पलिटिकल पार्टीओं को एक खाने में रखो और मुद्दों पे उनका समर्थन और विरोध करो। पलिटिक्ली ख़ुद को मैदान में लाओ। अगर दीन तुम्हारे दिलों में रहेगा तो कोई तुम्हारी शिनाख़्त  मिटा नहीं सकता।