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Friday, September 18, 2015

आंतक का इलाज

हमारा देश अंतकवाद से लम्बे समय से झूज रहा हे कांग्रेस आंतक पर लगाम लगाने में नाकाम रही हे देश में मोदी के आने से उम्मीद जगी थी के अब शायद हमारा पड़ोसी बाज़ आ जायेगा मगर मोदी जी के आने के बाद पाक और ज्यादा हरकते कर रहा हे सीमा पर गोली बारी पहले से ज्यादा हो रही हे बात चीत से इस बात का हल निकलना मुश्किल हे आज हम दुनिया में दूसरी बड़ी ताकत के रूप में देखे जाते हें हमारे देश वासी चाहते हें जिस तरह से अमरीका ने पाक में लादेन को मर गिराया हम अपने दुश्मन दाऊद को पाक से खीच कर क्यों नही ला सकते हाफिज सईद जेसे दुश्मन को पाक में क्यों नही मार गिरते मोदी के आने से ये उम्मीद बन रही थी जो अब टूटती नज़र आ रही हे पूरी दुनिया को दिखाना होगा की भारत सच में बड़ी ताकत हे पाक को उसी के घर में घुस कर अपनी ताकत का अहसास करना अब ज़रूरी होता जा रहा हे  मोदी के बाद शायद देश वासियों को ऐसा लीडर कब नसीब होगा परमाणु बम की धमकी दे कर पाक हमे कब तक डराता रहेगा उसे उस की भाषा में जवाब देना जरूरी हे और भारत विश्व गुरु हे दुनिया को दिखाना होगा





                                                       रउफ अहमद सिद्दीकी संपादक जानता की खोज
                                                         मिडिया ग्रुप नॉएडा 

Saturday, July 25, 2015

चाँद पर घर

भले ही सौ साल तक धरती पर सभी लोगो को घर न मिले मगर  दस साल के अन्दर इन्सान चाँद पर घर बना लेगा अमेरिका अन्तरिक्ष एजेंसी नासा अगले पांच सात सालो में फिर से चाँद पर मानव भेज रही हे उसके बाद वहाँ इंसानों के रहने के लिए घर बनाएगी ताकि इन्सान चाँद पर रह सकें नासा ने अध्यन किया हे इस में चाँद पर जाने की योजना बना ली गयी हे नासा अगर ये योजना पर काम शुरू करती हे तो २०१७ तक रोबट चाँद पर पहुच जायगा ये २०१८ में चाँद पर हैड्रोजन की खोज करेगा २०२० में काम शुरू करेगा और २०२१ तक लोगो के रहने के लिए मकान बना देगा नासा ये सब काम अन्तरिक्ष के लिए मिले बजट से पूरा करेगा सवाल ये हे कि जहाँ दुनिया इतनी तरक्की कर रही हे हम रोटी कपडे और मकान के लिए अपनी पूरी ज़िन्दगी ख़त्म कर रहे हें हमारे देश में नहरू या राजीव के बाद खोज पर कुछ खास काम नही हुआ और जिस तरह से नस्ल वाद अंतकवाद ऊँच नीच बेरोजगारी हमारे देश में बढती जा रही हे उसके लिए हमे आज से ही ठोस कदम उठाने की ज़रुरत हे ताकि हमारी बदहाली और कमजोरी दूर हो सके 

Wednesday, June 3, 2015

पाक में औरतो को वोट डालने का हक़ छीना



बावजूद इसके कि मुल्क का आईना उन्हें एक बराबर नागरिक का दरजा देता है,पकिस्तान के कई इलाकों में आज भी औरतों का वोट देने का हक नहीं हैं। बीती सात मई को ऐसा ही एक वाकया पेश आया। खैबर पख्तूनख्वा सूबे में पीके 95 हल्के उपचुनाव में हैरान करने वाले तरीके से एक भी खातून को वोट डालने दिया गया , जबकि इस चुनावी क्षेत्र में 53,000 से अधिक औरतों के नाम चुनाव आयोग की लिस्ट में दर्ज हैं। मर्द सियासतादां इसे औरतों की अपनी मरजी बता रहे हैं। मगर औरतों के हक- हकूक के लिए लड़ने वालों और नेशनल कमिशन ऑन द स्टेटस ऑफ वुमेन ने जो सबूत जुटाए हैं , वे कुछ ओर ही कहानी कहते हैं। इन सबूतों के मुताबिक , सियासी जमातों ने आपस में एक तरह तक मुंहजबानी करार कर रखा है कि औरतों को वोट डालने दिया जाए। मौखिक इसलिए ताकि वैसी रुसवाई न हो, जैसी मई 2013 के आम इंतिखाब के बाद हुई थी । दरअसल, तब पीपीपी, एएनपी और पीटीआई जैसी तथाकथित उदार सियासी पार्टियों ने बकायदा एक लिखित करार किया था कि औरतें वोट नहीं डालेंगी और उस कारनामे के खुलासा हो गया था। इस तरह के समझौते देश की आला अदालत के फैसले की नाफरमानी हैं। अब हंगू में एक जिरगा ने यह हुक्म सुनाया है कि पंचायती इंतियाब में औरतें वोट नहीं डालेंगी। बहरहाल, पीके-95 हल्के के इंतिखाब के बारे में अब मुल्क के चुनाव आयोग को फैसला करना है। उसका यह फैसला काफी अहम हो गया है। इस चुनाव को रद्द किया जाना चाहिए और स्थानीय निकाय के इंतिखाब में औरतों की भागीदारी पक्की की जानी चाहिए , ताकि पूरे मुल्क में दो टूक व सख्त पैगाम जाए और सियासी जमातें भी यह जान लें कि वे अदालत और चुनाव आयोग के फैसलों से बंधी हुई हैं। जिस इंतिखाब में आधी आबादी को वोट डालने से महरूम कर दिया जाए, वह इंतिखाब हो नहीं सकता। उस मध्ययुग को फिर से जिंदा कर दिया जाए, जिसमें मुट्ठी भर चुनिंदा कबीलों को वोट डालने का अधिकार था, इस तरह के हालात को आगे जारी रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

Monday, April 6, 2015

मुसलमान सिर्फ वोट बैंक नही

देश आज़ाद हुए ६७ साल हो गये हें देश ने काफी तरक्की भी की कुछ ऐसे समाज भी हें जिनकी गरीबी और जिल्लत भी ख़त्म हो गयी .. मगर क्या वजह हे कि मुसलमान इस गरीबी और जिल्लत की ज़िन्दगी से बाहर नही निकल प् रहे हें .. अपने आप को सेकुलर कहने वाली कांग्रेस पार्टी सत्ता में ५५ साल राज कर चुकी मगर मुसलमानों के विकास के लिए कुछ नही कर सकी बल्कि मुसलमानों को बर्बाद करने में अपना पूरा सहयोग देती रही २५ करोड़ मुसलमान न देश भग्त बन सके न देश की तरक्की में इन का कोई सहयोग न राजनीती में इनका कोई वजूद ... आज़ादी की बाद अगर सब से ज्यादा नाश किसी ने मुसलमानों का किया हे तो वो कांग्रेस हे जिस ने मुसलमानों को कही का नही छोड़ा .. मगर जब मुसलमान ने कांग्रेस को छोड़ा तो ... आज कांग्रेस कहाँ हे देख सकते हें . आज कांग्रेस देश की सब से कमजोर पार्टी हो गयी  . सिर्फ दलित और मुसलमान के दम पर राज करने वाली कांग्रेस का हश्र सब के सामने हे ..दलितों ने अपना रहनुमा चुन लिया और वो देश की मुख्य धरा में आ खड़े हुए हें .. साडे चार साल तक मुसलमान वोट देने के लिए एक जगह बनता हे .. मगर चुनाव आते ही एक ऐसा माहोल तेयार किया जाता हे हे कि मुसलमान भावनाओ में बह कर या झूठे वादों पर एतबार करके अलग थलग हो जाता हे .. और नेता अपना काम कर जाते हें . मुस्लिक पर्सनल ला  बोर्ड हो या जमायते उल्माए हिन्द . मुसलमानों को राज्य मंत्री के बदले में नीलाम कर देते  हे . यह कोम आँख मीच कर अपने रहनुमाओ के साथ चलते जाते हें . और अपना भविष्य बर्बाद करते रहते हें .. सब से अच्छा तो ये हे कि मुसलमान एक तरफ हो कर वोट करें चाहे वो  बी जे पी  को ही वोट करें मगर एक जगह करें  ताकि मुसलमानों का कुछ वजूद बन सके और दिखा दें इस देश को २५ करोड़ मुसलमान जिनके ५० करोड़ हाथ हें देश की तरक्की में दिलो जान से लगे ..तभी ताकत और इज्ज़त मिलेगी                                          
                                                              रऊफ अहमद सिद्दीकी
                                                              संपादक   जनता की खोज  मिडिया ग्रुप नॉएडा 

Thursday, April 2, 2015

यमन में बच्चो के दम पर लड़ाई


एक साल पहले यमन उन चंद देशो में एक था बाल संसद थी यह किशोरों का चुना हुआ एक संघठन था जो देश के निति और नेता को भी सलाह देता  था इस की ख़ास चिंता थी .. केसे सेना और हथियार बंद गुटों में बच्चो की भर्तियाँ रुके अब तेजी से साल २०१५ की तरफ देखते हें ...अब यमन की सरकार गिर चुकी हे इस की राजधानी पर विद्रोही हौती   लडाको का कब्ज़ा हो चूका हे जिहें ईरान का समर्थक प्राप्त था   . अब इस देश के जो की अरब मुल्को में सब से गरीब हे अफरा तफरी का माहोल हे सस्त्र सेना और अलकायदा समर्थित गुटों का यहाँ आंतक छाया हुआ हे और अब चुनी हुई सरकार की बहाली  के लिए अरब विदेशी सेना द्वारा जिसकी कमान सऊदी अरब के हाथ में हे और जिसे अम्रीका का समर्थक प्राप्त हे जमीनी आक्रमण की आशंका हे ... सयुक्त राष्ट्र के अनुसार हजारो किशोरों सेनिको को देख कर चढ़ाई करने वाली सेना को आश्चर्य चिकित नही होना चाहिए .. पिछले साल सासत्र सेना गुटों द्वारा बच्चो की भर्तियों में करीब पचास प्रतिशत की वृधि हुई हे ...ईरान और सऊदी अरब छादम उध में बटे हुए हें एक तिहाई से भी अधिक हौती लडाके १८ साल से भी कम हे मानवीय स्तिथि बद्तर होने से भर्ती होने के काम और तेजी से बढे हें .. यमन की दो तिहाई आबादी खाना पानी और दूसरी सहायताओ के इंतज़ार में हे यमन के मानवता वादी संकट अपने चरम पर हे किशोर सेनिको की संख्या में आई बढ़ोतरी एक तरह से सयुक्त राष्ट्र के लिए आघात हे इस संघठन ने दुनिया भर के किशोर सेनिको की संख्या घटाने में प्रगति प्राप्त की हे बीते मार्च इसमें चिल्ड्रन नोट सोल्जर अभियान की शुरआत की और अगले साल तक सेना में बच्चो की भर्ती पर रोक लगाना हे ... इराक    .. माली    .. आदि देशो के साथ यमन पर भी इस संघठन की नजर थी यह साफ हे कि यमन की कई और ज़रूरते हे पर उनकी सब से बड़ी ज़रूरत यह हे की ...बच्चो के हक़ की रक्षा हो बच्चे राष्ट्र का भविष्य होते हे न कि लड़ाके ...............................
                                                                                रऊफ अहमद सिद्दीकी
                                                                                संपादक  जनता की खोज   नॉएडा

Saturday, March 28, 2015

अंतकवाद के खिलाफ गुस्सा

आंतकवाद  के खिलाफ धीरे धीरे लोगो में गुस्सा बढ़ता जा रहा हे भले ही जंग में आंतकवाद दो धरी तलवार की तरह होता हे वो विरिधियों को कमज़ोर करता हे और खोफ़ जदा भी मगर ये विरोधियों को एक जुट होने का मोका भी देता हे ले०  मुनाज अल कसाबेह की हत्या से ये सवाल उठता हे कि क्या आंतकी संगठन आई एस आई एस के पास ( भारत से पचिम एशिया ) को लेकर किसी तरह का कोई प्लान हे खूंखार होना राजनीती नही होती क़त्ल राजनीती नही कहलाती पायलेट को पकड़ने के बाद आई एस आए एस नरमी दिखाती और उसे जिंदा छोड़ा होता तो जॉर्डन पर उसका क्या असर पड़ता इस पॉइंट पर ग़ोर करे तो साफ हे ये मोके का फायदा उठाने वाले और दोहरे बर्ताव वाले से ज्यादा अच्छा लगता नरमी बरतकर आंतक के खिलाफ जॉर्डन की लड़ाई को काफी हद तक कमज़ोर करना संभव होता इस में कोई शक नही कि जॉर्डन के समाज की अपनी कमजोरी हे वहां आंतकी सोच तेजी से फेल रही हे यह इस आधार पर कहा जा रहा हे इस संगठन में विदेशी लडाको का तीसरा सब से बड़ा हिस्सेदार यह देश हे  वहां बे रोजगारी वे सामाजिक बुराइयाँ ज्यादा हे लेकिन यह भी सच हे जॉर्डन की ख़ुफ़िया गिरी एक बड़ी दोलत भी हे पर माना जाता हे कि जॉर्डन ने इराक़ में अल कायदा के नेता अबू मुतब अल जरकावी के ठिकाने की खबर दी जिस के दम पर अमरीका ने उसे उसी के गढ़ में मार गिराया जॉर्डन और जिहादी सीरयाई विद्रोहियों को पनाह और सुविधा देता हे ले ० अल कसाबेह को बंधक बनाना आईएसआईएस के पास एक मोका था कि वो जॉर्डन के अंदरूनी बटवारे का फायदा उठाता जॉर्डन  ने दो इराकी जिहादियों को मोंत की सजा तामील करा दी दोनों भयंकर अपराध के दोषी थे और वहां मोंत की सजा की बंदिश को हटा दिया फिर भी बदले वाला रवैया इंसाफ नही होता वाशिगटन से लोटने के बाद सह का जिस तरह स्वागत हुआ हे उस से तो यह ज़ाहिर होता हे कि पायलट की हत्या से इस वख्त सरकार की आलोचना बंद हो गयी हें और आई एस आई एस के खिलाफ लोग लाम बंद हुए हें आंतक कितना भी सर उठा ले उसे एक दिन उसे झुकना ही पड़ेगा
                                       
                                                                            रऊफ अहमद सिद्दीकी
                                                                               संपादक जनता की खोज
                                                                               नॉएडा     www.jantakikhoj,com  

Wednesday, March 25, 2015

फरखंदा के क़त्ल के बाद

इस्लाम के नाम पर कुछ कट्टरपंथी मुल्ला दुनिया में खौफ  कायम करना चाहते हें इसी कड़ी में अफगानिस्तान काबुल में एक २७ साल की औरत फरखंदा  को न सिर्फ पीट पीट कर मार डाला गया बल्के उसकी लाश को भी आग लगा दी गयी  फरखंदा पर इलज़ाम था कि उसने कुरान शरीफ को जला दिया था मगर उसके परिवार वाले इस इलज़ाम को गलत बताते हें जब की कुछ लोगो का कहना हे कि वो मानसिक रूप से कमजोर थी सच्चाई जो भी हो मगर उसे ऐसी मोंत नही मिलनी चाहिए थी भीड़ ने जिस तरह उसे मजहब के नाम पर मोंत के घाट उतरा उसकी वो हक़ दार बिलकुल भी नही थी फरखंदा को ऐसे लोगो के समूह ने मारा हे जो खुद को पुलिस .  वकील . जज .. भी समझते हें सजा भी खुद ही सुनाते हें और उसे लागु भी खुद ही करते हें फरखंदा को अपनी सफाई तक देने का मोका मिला जिस तरह उसे मारा गया हे उसके परिवार वाले इस जखम को ज़िन्दगी भर भुला नही पाएंगे अफगानिस्तान में इस तरह की घटना आम  बात हो चुकी हें . लेकिन रात कितनी भी काली क्यों न हो सुबह ज़रूर होती हे . इस खोफ़ और जुल्म के बीच कुछ उम्मीद की किरण भी हें , इस अन्याय से लड़ने और ताकत की कुछ आवाजे अब उभरने लगी हें . औरत ही ऐसे ज़ुल्म की शिकार क्यों होती हे फरखंदा के मामले में एक ख़ास चीज ये हुई कि औरते घर की दहलीज से बाहर निकली . उसका जनाज़ा लेकर गयी . और खुद उसे दफ़न भी किया इतना ही नही इस मोके पर . खुल कर बोली भी . सरकार से कानून का शासन लागु करने और अवाम को सुरक्षा देने के लिए कहा इन औरतो ने साफ कर दिया . की ये बदतर हालत की हकदार नही हें . अफगानिस्तान में तालिबान के शासन काल में और उसके बाद . युद्ध के दोरान औरते अन्याय की सबसे ज्यादा शिकार हुई हें . लेकिन ताज़ा घटनाओ से यह बात तो साफ हे कि . अब ये औरते खामोश बैठने वाली नही हें . ये उस देश के लिए एक नई मिसाल हे जहाँ हमने कई तरह के जुल्म को देखा हे . औरते अब इंसाफ के लिए निकल पड़ी हें और इसमें कोई शक नही कि वो कामयाब भी होंगी . खुदा भी उनकी मदद करता हे जो अपनी मदद खुद करने की हिम्मत  रखता हो .........//                                            
                                                                        रऊफ अहमद सिद्दीकी
                                                                        एडिटर जनता की खोज
                                                                       न्यूज पेपर व मैगज़ीन  नॉएडा 

Tuesday, March 24, 2015

हाशिम पुरा कत्लेआम का जिमेदार कोन

२१ मार्च २०१५ को तीस  हजारी कोर्ट ने एक ऐसा फ़ेसला सुनाया जिससे लोगो का विश्वाश कानून से उठता हुआ नज़र आने लगा मेरठ हाशिम पुरा २२ मई १९८७ को दंगा भड़का जिस में मुसलमानों की दुश्मन पी ए सी को लगाया गया पी ए सी ने तलाशी के नाम पर ६४४ मुसलमानों को गिरफ्तार किया जिसमे १५० हाशिम पुरा के थे इनमे जो युवा थे करीब ५० लोगो को पी ए सी ने ट्रक नं यु आर पी १४९३ पर बिठाया ट्रक में इन लोगो के आलावा पी ए सी के १९ जवान थे २२ मई की ये रात हाशिम पुरा के इन नोजवानो के लिए सब से भयानक साबित हुई पी ए सी के जवानों ने इन युवाओ को एक एक करके ट्रक से उतार कर गोली मार दी और इन्हें गंग नहर में फेक दिया इस के अलावा पिटाई से भी ८ लोगो की मोत हो गयी इस घटना का दर्द और खोफ़ हाशिम पुरा में आज भी दिखाई देता हे घर घर में हाशिम पुरा कांड  की ऐसी यादे हें जो रोगटे खड़े कर देने वाली हें कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी कातिलो को बरी कर दिया जिससे पूरा देश सकते में हे इंसाफ की उम्मीद में इतने सालो का इंतज़ार निराश करने वाला हे या यूँ कहे  की इंसाफ से भरोसा उठाने वाला हे फ़ेसला आने के बाद लोगो ने प्रदेश सरकार और स्थानीय  पुलिस को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया हे अदालत को पांच चश्मदीद गवाहों और तमाम सबूत काफी नही लगे लोगो ने २८ साल केस लदा गवाह और सबूत दिए चंदा करके केस लड़ा मगर सरकार और प्रशासन ने इनके केस को इतना कमजोर कर दिया ४२ लोगो की हत्या करने वाले पी ए सी के कातिलो को कोर्ट ने बरी कर दिया अगर पूर्व पी एम चन्द्र शेखर अपने आवास पर प्रेस वार्ता करके ये खुलासा न करते तो शायद इस घटना का किसी को पता भी न चलता इस कांड में जिंदा बचा नासिर जिसने बताया उसके अलावा उस्मान नईम बाबू मुजीब को भी गोली मरी थी मगर किस्मत से ये लीग बच गये थे इतने साबुत भी कातिलो को सज़ा दिलाने में कम क्यों पड़े . एक बात और इस फेसले के बाद देश के किसी भी नेता या बुद्धिजीवी ने इस के खिलाफ कुछ भी कहने की जेहमत नही उठाई ज़ुल्म कितना भी बड़ा क्यों न हो मजलूम की हिफाज़त अल्लाह करता हे और एक दिन उसे सजा जरूर मिलती हे अभी मुसलमानों का भरोसा कानून से पूरी तरह उठा नही हे फिर से जालिमो को सजा दिलाने की कोशिश की जायगी . मुसलमानों को उम्मीद का दामन नही छोड़ना चाहिए  अल्लाह सब्र करने वालो के साथ हे  . अपने आप को मुसलमानों का रहनुमा कहने वाली समाजवादी पार्टी में अगर थोड़ी सी भी इंसानियत हे तो इस केस की फिर से तफ्शीश कराए और मुसलमानों के ज़ख्मो पर मरहम लगाये .. और देश के सब से बहतरीन प्रधानमंत्री मोदी जी इस केस में सच्चाई का साथ दे और इंसाफ परस्त पी एम के रूप में मुस्लमान भी उन पर दिल से भरोसा कर सके ./
                                                                         रऊफ अहमद सिद्दीकी
                                                                              एडिटर जनता की खोज नॉएडा
                                                                                 

Thursday, February 26, 2015

मुसलमानों को लीडर नही फ़रिश्ता चाहिए

इस में शक नही के आज़ादी के बाद से लेकर आज तक मुसलमानों को ऐसा कोई नेता नही मिला जिसे वो अपना सच्चा हम दर्द या लीडर मान सके मोलाना आज़ाद एक मात्र ऐसे नेता थे जो मुसमानो के आलावा हिन्दू भी जिन्हें अपना लीडर मानते थे मगर क्या वजह हे की उनके बाद मुसलमानों को कोई रहनुमा नही मिला कांग्रेस में कई मुस्लिम लीडर आये मगर उन्होंने अपने जाती फायदे के लिए इस कोम को बेच दिया कांग्रेस ने देखा ये लोग धार्मिक नेता ( उलमा ) के पीछे आंख बंद करके चलते हें तो मदनी साहब को बिना अल्क्शन लड़े एम पी का दर्जा दे दिया इस शर्त पर आप आख कान बंद करके हमारी हाँ में हाँ मिलते रहोगे .. वो सोचते रहे हमेशा हम मंत्री ही रहेंगे मगर उसके बाद उन्हें उतार फेक दिया गया .. मगर अब कहाँ हे वो कोम को बेचने वाले  इंडिया में दलित समाज फर्श से अर्श पर पहुच गया सिर्फ इमानदार नेताओ के बल पर जिहोने उन्हें नारा दिया शिक्षित बनो . संघर्ष . करो . संगठित रहो . मगर मुसलमान नेता और उल्माओ के शिकार होते रहे जिस का नतीजा हे की आज शाही इमाम किसी पार्टी को समर्थक देने की बात करता हे तो पार्टी समर्थक लेने से इंकार करती हे क्योंकि इमाम साहब कभी कांग्रेस को तो कभी बी जे पी  कभी समाजवादी कभी बी अस पी को समर्थक के नाम पर इस कोम को नीलम करते आ रहे हें इमाम साहब ने अपने परिवार का तो फायदा किया मगर मुसलमानों की तरक्की के लिए कुछ नही कर पाए .. अब बात आज के मुस्लिम लीडरो की नकवी साहब जो बी जे पी के बड़े लीडर हें वो ये बात अच्छी तरह से समझ ले की वो किसी क़ाबलियत की वजह से नही बल्कि मुसलमान होने की वजह से मंत्री बनते आये हें शाहनवाज़ हुसेन भी इसी वजह से पार्टी में हें लग्ज़री ज़िन्दगी गुज़रो और खामोश रहो ... सलमान खुर्शीद . नसीमुद्दीन सिद्दीकी . आज़म खान . इन्हें भी मुसलमानों की दुर्गति से कुछ लेना देना नही . हर मुसलमान अपने आप को तुर्रमखां  समझता हे सात सो सालो तक हुकूमत  का नशा अभी तक ये कोम उतार नही पाई , अगर मुसलमान उल्माओ को ही अपना नेता मानता हे तो उन्हें राज निति में आ जाना चाहिए ताकि पूरी कोम एक प्लेटफार्म पर आ सके क्योंकि उल्माओ की एक आवाज़ पर लाखो लोग रामलीला मैदान में आ सकते हें जमाते उलमा हिन्द देवबंद में बे शुमार लोगो को एक जगह बुला सकती हे तो समझ लेना चाहिए ये कोम उल्माओ को लीडर मानती हे उल्माओ को अपने अन्दर बहतरीन क्वालटी की लीडर शिप विकसित करनी होगी तभी इस दबी कुचली कोम का कुछ भला होगा इस कोम को एक प्लेटफार्म पर आना होगा पार्टी चाहे कोई भी हो सभी एक को चुने तब कही जाकर इज्ज़त मिलेगी शिक्षा पर ध्यान दें पढ़े लिखे लोग राजनीती में आयें देश और समाज को सही दिशा दे सकें नेता भी इन्सान हें फ़रिश्ते नही  चाहे वो नेता हो या उलमा ईमानदारी दिखाएँ                      रऊफ अहमद सिद्दीकी                                                                                                                                    एडिटर जनता की खोज  नॉएडा

Wednesday, February 4, 2015

क्या इस्लाम इतना कमजोर हे

क्या इस्लाम इतना कमज़ोर हे की कोई लाऊड इस्पिकर उतारे को बोल दे तो इस्लाम खतरे में कोई घर वापसी कराए तो इस्लाम खतरे में कही  दंगे हो तो खतरा अम्रीका में टावर गिरे तो ..शर्ले अब्दों पत्रिका ने मोहम्मद साहब का कर्टून छाप दिया तो १२ पत्रकारों को मोत के घाट उतार दिया ...किस ने दी ये सज़ा एक ऐसा गिरोह जो इस्लाम के नाम पर मासूम बच्चो को भी मरने से नही डरता कार्टून छापा पत्रिका ने जिस की १५००० हजार पत्रिका छपती थी हादसे के बाद लाखो में छपी करोड़ो रूपये कमाए ..किस की वजह से आप समझ सकते हे क्या हम ऐसे लोगे के बहकावे में आ गये जो सिर्फ कातिल हे जिन का इस्लाम से कुछ लेना देना नही उन्हें हुकूमत करने के लिए हर वो काम करना हे जो उन्हें राज गद्दी तक पहुचाये ...आप एक बात पर ध्यान दे क्या कोई मुस्लमान ये कह सकता हे की मोहम्मद साहब की कोई तस्वीर दुनिया में हे ..अगर नही तो फिर हमे कार्टून से क्या लेना देना मुसलमानों को अपनी खुद की तरक्की समाज वे देश की तरक्की के बारे में सोचना होगा जितने वफा दार हम दीन के हे उतने ही देश के भी हो .कोई भी हमारी भावनाओ को भड़का कर दीन के नाम पर हमारा शोषण न कर सके कुछ लोगो का सिर्फ ये ही काम हे के इस कोम को शिक्षा से दूर रखा जाये जो ये हमेशा मजदूर रहे ..मगर हमारे धर्म के ठेकेदार सिर्फ चंदा लेते रहेंगे मदरसों में सिफ हाफिज ...मोलाना बनाते रहेंगे डॉक्टर इन्जीनर नही इस कोम को जागना होगा भेड़ बकरियों की तरह पीछे चलने की आदत छोडनी होगी दुनिया सितारों पर पहुच गयी और हम ..ये मानने को तय्यार नही के कोई वहां तक पहुच भी सकता हे इस लेख को जो भी ...खास तोर से मुस्लमान ...पड़े ..तो एक मिनट के लिए सोचे कहाँ जा रही हे ये कोम ..जो भी जिस फिल्ड में हे इस कोम को तालीम दिलाने की कोशिश करे दिल से करे ...........

                                                                      रउफ अहमद सिद्दीकी नॉएडा .............

Saturday, January 3, 2015

जहाँ सांप बिच्छु नही डसते

दिल्ली से करीब १३० की  मी  की दूरी पर मुरदा बाद के पास एक शहर हे जिसका नाम हे अमरोहा यहाँ शाह विलायत के नाम से मजार हे जहाँ पर दूर दूर से लोग मन्नत मांगने आते हें और उनकी मुराद पूरी भी होती हे यहाँ के खादिम मो ० अनीस बताते हें की शाह विलायत सरकार जिनका नाम शर्फुद्दीन हे ईरान से सन १२७२ में यहाँ तशरीफ़ लाये इनके पीर ने इन्हें हुक्म दिया था की आप जाओ और दुनया के लोगो की परेशानी को दूर करो उन्हें फायदा पहुचाओ आप ने फरमाया कहाँ जाऊ और क्या करूं पीर ने उन्हें करामत दी और फरमाया आप को उस जगह रुकना हे जहाँ आप को खाने में बाढ़ की रोटी रहू मछली और आम खाने में मिले सरकार जब यहाँ आये इस जगह का नाम अजीत पुर था घना जंगल था एक औरत खेत में रोटी लेकर जा रही थी आप ने फरमाया कहाँ जा रही हो माई बूढी औरत ने कहा अपने बेटे के लिए खाना ले जा रही थी मगर अब इस खाने को आप ही खा लीजिये सरकार ने देखा तो हेरान रहे गये क्योंकि उस खाने में वो ही तीनो चीज़ थी बाढ़ की रोटी रहू मछली ओर आम आप समझ गये की मुझे यही रुकना हे वहां पर एक फकीर रहते थे उन्होंने कहा यहाँ ५२ बीघे में जंगल के सिवा कुछ नही हे बस सांप और बिच्छु हे आप ने कहा कितने भी सांप बिच्छु हो मगर मेरे इलाके में किसी को नही काठेंगे .. उस दिन के बाद उस इलाके में सांप बिच्छु किसी को नही डसते अगर उस इलाके के आलावा कोई जहरीला कीड़ा किसी को काट लेता हे और वो ५२ बीघा के अन्दर आ जाए तो जहर उतर जाता हे और उस खाने की वजह से उस शहर का नाम अमरोहा पड़ा अगर किसी के मस्से हो तो वहां एक झाड़ू चढ़ा दो मस्से ख़त्म हो जाते हें ये ही शाह विलायत की करामत हे .......                                                                                                                                                       रउफ सिद्दीकी नॉएडा