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Tuesday, May 7, 2019

ज़कात क्या है और किसे देनी है

बराय मेहरबानी पूरा पढ़े।
क्या *जकात,फितरा,इमदाद, खैरात* हर उस मुसलमान को दी जाए? जो फर्जी मदरसों और मस्जिदों के सफीर बनकर मुसलमानों के पास आते हैं और लाखों रुपये बतौर चन्दा इक्कठा करने के बाद कभी उन लोगों को हिसाब किताब नहीं देते, जो अपनी खुन पसीने की कमाई में से कुछ रुपया अपना फर्ज समझकर फितरा, जकात, इमदाद, खैरात के रुप में  इस उम्मीद के साथ देते हैं कि उनकी नेक कमाई जरुरतमंद लोगों के पास जा रही है।
दोस्तों, थोड़ा अन्दाजा लगाईये। हकूमत के मुताबिक मुसलमान मुल्क में 25 करोड़ हैं और गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 30 करोड़ से भी ज्यादा। यदि मान लिया जाए कि एक मुसलमान एक साल में 100 रुपये फितरा, जकात, इमदाद, खैरात के रुप में ऐसे लोगों को देता है। तो ये लोग मुल्क के मुसलमानों से 2500-3000  करोड़ रुपये हर साल चंदे के रुप में उगाही करते है और विदेशों से चंदे की उगाही रही अलग और इनके ठाठ बाट जग जाहिर है
फिर आप खुद ही अन्दाजा लगा सकते हैं कि इतनी भारी रकम को यदि एक सिस्टम के तहत इकठ्ठा किया जाए और उससे जरुरतमंद लोगों के लिए, स्कूल, अस्पताल और कॉलेज वगैरा कायम किये जाए, तो उससे कौम और वतन को कितना फायदा हो सकता है। मगर मुसलमान है कि बिना सोचे समझे जो भी मुसलमान चंदे की गरज से कापी लेकर उनके दर पर आ जाता है, उससे सवाब समझकर अपनी नेक कमाई का हिस्सा, ये जाने बिना थमा देता है कि उसका सही इस्तेमाल हो भी रहा है या नहीं।

*ज़कात_क्या_है ?*
#और_किसको_देनी_चाहिये ?
ज़कात क्या है ? और किसको देनी चाहिये ?
रमज़ान के अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। तो ज़कात क्या है ?

*कुरआन मजीद में अल्लाह ने फ़र्माया है :
“ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।”
और ज़कात किसे देनी चाहिए इसपर हम इस पोस्ट में मुख़्तसर सा बयांन करने की कोशिश कर रहे है.

✦ ज़कात क्या है ?
अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरियत ने तय किया उसका मुसलमान फकीर (जरूरतमंद) को मालिक बना देना शरीयत में ज़कात कहलाता है’
✦ ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो…वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।

१. सबसे पहले ज़कात का हकदार है : “फ़कीर”:
फ़कीर कौन है? – फ़कीर वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो इस शख्स की आप ज़कात 11,000/- रुपये से मदद कर सकते है।

२. दुसरा नंबर आता है “मिस्कीन” का:
“मिस्कीन” कौन है? मिस्कीन वो शख्स है जो फ़कीर से थोडा अमीर है। ये वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 15,000/- सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से ज़्यादा है तो आप इस शख्स की आप ज़कात के 5,000/- रुपये से उसकी मदद कर सकते है।

३. तीसरा नंबर आता है “तारिके कल्ब” का:
“तारिके कल्ब” कौन है? “तारिके कल्ब” उन लोगों को कहते है जो ज़कात की वसुली करते है और उसको बांटते है। ये लोग आमतौर पर उन देशों में होते है जहां इस्लामिक हुकुमत या कानुन लागु होता है। हिन्दुस्तानं में भी ऐसे तारिके कल्ब है जो मदरसों और स्कु्लों वगैरह के लिये ज़कात इकट्ठा करते है। इन लोगो की तनख्खाह ज़कात के जमा किये गये पैसे से दी जा सकती है।

४. चौथे नंबर आता है “गर्दन को छुडानें में”:
पहले के वक्त में गुलाम और बांदिया रखी जाती थी जो बहुत बडा गुनाह था। अल्लाह की नज़र में हर इंसान का दर्ज़ा बराबर है इसलिये मुसलमानों को हुक्म दिया गया की अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऎसे गुलामो छुडाने में करो। उनको खरीदों और उनको आज़ाद कर दों। आज के दौर में गुलाम तो नही होते लेकिन आप लोग अब भी इस काम को अंजाम दे सकते है।

अगर कोई मुसलमान पर किसी ऐसे इंसान का कर्ज़ है जो जिस्मानी और दिमागी तौर पर काफ़ी परेशान करता है, या जेलों में जो बेकसूर और मासूम मुसलमान बाज़ शर्रपसंदों के फितनो के सबब फंसे हुए है आप ऐसे मुसलमानो की भी ज़कात के पैसे से मदद कर सकते है और उनकी गर्दन को उनपर होने वाले जुल्मो से छुडा सकते हैं।

५. पांचवा नंबर आता है “कर्ज़दारों” का:
आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते है। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते है और अगर आपको लगता है की ये इंसान आपसे पैसा लेने के बाद अपना कर्ज़ नही चुकायेगा बल्कि उस पैसे को अपने ऊपर इस्तेमाल कर लेगा तो आप उस इंसान के पास जायें जिससे उसने कर्ज़ लिया है और खुद अपने हाथ से कर्ज़ की रकम की अदायगी करें।

६. छ्ठां नंबर आता है “अल्लाह की राह में”:
“अल्लाह की राह” का नाम आते ही लोग उसे “जिहाद” से जोड लेते है। यहां अल्लाह की राह से मुराद (मतलब) सिर्फ़ जिहाद से नही है। अल्लाह की राह में “जिहाद” के अलावा भी बहुत सी चीज़ें है जैसे : बहुत-सी ऐसी जगहें है जहां के मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दुर है तो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।
अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते है जो पढना चाहता है लेकिन पैसे की कमी की वजह से नही पढ सकता, और आपको लगता है की ये बच्चा सोसाईटी और मुआशरे के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा तो आप उस बच्चे की पढाई और परवरिश ज़कात के पैसे से कर सकते है।

7. और आखिर में “मुसाफ़िर की मदद”:
मान लीजिये आपके पास काफ़ी पैसा है और आप कहीं सफ़र पर जाते है लेकिन अपने शहर से बाहर जाने के बाद आपकी जेब कट जाती है और आपके पास इतने पैसे भी नही हों के आप अपने घर लौट सकें तो एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है की वो आपकी मदद अपने ज़कात के पैसे से करे और अपने घर तक आने का किराया वगैरह दें।

ये सारे वो जाइज़ तरीके है जिस तरह से आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है। अल्लाह आप सभी को अपनी कमाई से ज़कात निकालकर उसको पाक करने की तौफ़ीक दें ! और अल्लाह तआला हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये।
आमीन ..

रऊफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज

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