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Sunday, December 15, 2019

इस्लाम और योगा

योगा से ही होगा जीवन सफल।


इस्लाम में योगा का महत्व ।

योगा को धर्म और मजहब के चश्में से नहीं देखना चाहिए। योगा को विज्ञान और स्वास्थ्य के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए। धर्म और मजहब भी इंसानी जिंदगी को बेहतर बनाने का जरिया है। इसीलिए अवतारों अथवा पैगंबरों ने योगा को धर्म और मजहब के माध्यम से जोड़ा है। इसी काम को आध्यात्म गुरु, संतो ने भी आगे बढ़ाया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने जब 21 जून को विश्व योगा दिवस घोषित करना चाहा तो सभी देशों ने भी अपनी स्वीकार्यता दिखलाई। सनातन धर्म में योगा जहां स्वीकार्य है, वहीं इस्लाम ने तो इसे अंगीकार कर लिया है। इस्लाम में योगा का महत्व इतना अधिक है कि उसका सोना, जागना, खाना – पीना, उठना बैठना, घूमना फिरना हद तक पूजा पद्धति सलात अथवा नमाज़ सब योगा है। इंसान के जिस्म के हर हिस्से का योगा से ताल्लुक है। जिसका योग ठीक तो उसकी नमाज़ ठीक। जिसकी नमाज़ ठीक तो उसकी नीयत ठीक। जिसकी नीयत ठीक तो उसकी तकदीर ठीक। इसलिए योगा को तेरा मेरा के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए।

आइए जानते है नमाज़ में योगा के प्रयोग को। नमाज़ अदा करने से पूर्व इस्लाम के अनुयाई गुस्ल (स्नान) करते है। उनके स्नान करने के तरीके में भी योगा का समावेश है। इसीलिए डाक्टर कहते है इस्लाम के तरीके से स्नान करने वाले कभी फालिज या ब्रेन हेमरेज के शिकार नहीं होते। क्योंकि इस्लामिक तरीके के स्नान में सीधा शरीर पर पानी नहीं डालते, बल्कि पहले हांथों को कोहनी तक धोते है। फिर नापाकी के हिस्से को, जिसमे नाभि के नीचे का हिस्सा चारों ओर से सबसे अहम है को पानी से पाक करते है। फिर कुल्ली करते है उसके बाद नाक में नर्म हड्डी तक पानी पहुंचा कर साफ़ करते है। इसके बाद हथेली से कोहनी की ओर पानी डालते है। उसके बाद हथेली में पानी लेकर सर का मसा करते हुए गर्दन के पीछे से आगे को साफ़ करते हुए हांथों को फेरते है। तब शरीर पर पानी डालते है और इतना पानी डालते है कि पूरा शरीर भीग जाए। कोई हिस्सा सूखा न रहे। यह प्रक्रिया तीन बार करते है। तब आप साबुन शैम्पो आदि जो चाहे उसका उपयोग करे।

गुसल के बाद और नमाज़ से पहले वुजू करना होता है। यह योगा का अगला चरण होता है। इसमें हाथों की हथेलियों से लेकर कोहनियों तक, मुंह की कुल्ली से लेकर नाक में पानी देने तक, आंखो से लेकर सिर एवं गर्दन के मसे तक। पैरों के पंजों से लेकर टखनों तक सब योगा ही योगा। यह हालत है वूजू की। इसके बाद नमाज़ की शुरुआत होती है।

जिसमे सबसे पहले रुख का सही होना। पूरी दुनिया के मुसलमान सऊदी अरब के मक्का शहर में स्थापित काबा शरीफ की ओर रुख कर नमाज़ पढ़ते है। रुख दुरुस्त करने के बाद नीयत करते हुए हाथों की हथेली को सीधा रखते हुए कानों तक ले जाते है और नाभि के पास हाथ को बाँध लेते है।

ईश्वर का ध्यान करते हुए ईश्वर की तारीफ़ करते हुए पूरी दुनिया की बेहतरी की प्रार्थना करते है। इसके बाद ईश्वर की तारीफ़ करते हुए अर्द्ध चंद्राकार की स्थिति में जाते है जिसे रुकू कहते है। इस स्थिति में भी ईश्वर का गुणगान करते है। फिर सीधे खड़े होते हुए नतमस्तक यानि कि सिजदे में चले जाते है। सिजदे में जाकर भी दुनिया से ध्यान हटाकर सिर्फ ईश्वर की बड़ाई बयान करते है। यही प्रक्रिया दोहराते है। पांचो समय में कितनी बार प्रक्रिया दोहरानी है यह तय है। नमाज हो जाने के बाद उँगलियों पर ईश्वर की तारीफ़ में तस्बीह (जाप) पढ़ते है। एक ख़ास मुद्रा में हाथों को सीने के सामने उठाकर अपने और अपने परिवार सहित पूरी कायनात (श्रष्टि) के लिए दुआ मांगते है। फिर हथेलियों को पूरे चेहरे पर मलते है। इस पूरी प्रक्रिया के अन्दर योग और एक्यूप्रेसर का समावेश रहता है।

इसीलिए नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है।

 इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनोलिसस के नाम से जानते हैं। मांसपेशियों में होने वाली गति नमाज के दौरान बढ़ जाती है। इस वजह से मांसपेशियों में ऑक्सीजन और खुराक में कमी आ जाती है जिससे रक्त वाहिकाओं में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे रक्त आसानी से वापस हृदय में पहुंच जाता है और रक्त हृदय पर कुछ दबाव बनाता है जिससे हदय की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। इससे हृदय में रक्त प्रवाह में भी अधिकता आ जाती है।

पांचों वक्त की नमाज अदा करने से फ्रेक्चर के जोखिम कम हो जाते हैं। नमाज ना केवल हड्डियों के घनत्व को बढ़ाती है बल्कि जोड़ों में चिकनाई और उनके लचीलेपन में भी इजाफा करती है। बुढ़ापे में चमड़ी भी कमजोर हो जाती है और उसमें सल पड़ जाते हैं। शरीर की मरम्मत की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। साथ ही रोगों से लडऩे की क्षमता में भी कमी हो जाती है।

बुढ़ापे में शारीरिक गतिविधि कम होने से इन्सूलिन का स्तर भी कम हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंग अपने काम में कमी कर देते हैं।  इन्हीं कारणों के चलते बुढ़ापे में दुर्घटनाएं और रोग ज्यादा होते हैं। नमाज से मांसपेशियों में ताकत, खिंचाव की शक्ति और लचीलापन बढ़ता है। साथ ही सांस और रक्त प्रवाह में सुधार होता है। इस तरह हम देखते हैं कि नमाज अदा करते रहने से बुढ़ापे में जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। बुढ़ापे में कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं नमाज से सहनशक्ति,आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी होती हैं।

नमाज अदा करने से सांस क्रिया में भी सुधार होता है। नमाज के दौरान गहरी सांस लिए जाने से वाहिकाओं में हवा के लिए ज्यादा जगह हो जाती है। यही नहीं नमाज शरीर के वजन और केलोरी को नियंत्रित रखती है। अधिकाश लोग वाकिफ हैं कि कसरत हदय की कॉरोनरी बीमारी को रोकती है। यही नहीं कसरत डायबिटीज,सांस की बीमारियों,ब्लड प्रेशर में भी फायदेमंद होती है।

नमाज के दौरान की गई कसरत से मानसिक सुकून हासिल होता है। तनाव दूर होता है और व्यक्ति ऊर्जस्वित महसूस करता है। आत्मविश्वास और याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। नमाज में कुरआन पाक के दोहराने से याददाश्त मजबूत होती है। हम देखते हैं कि पांचों वक्त की फर्ज, सुन्नत, नफिल नमाज और रोजों के दौरान तरावीह के अनगिनत फायदे ईश्वर ने बन्दों के लिए रखे हैं।

पांचो वक्त की फर्ज, सुन्नत,नफिल नमाज और तरावीह अदा करने से केलोरी जलती है,वजन कम होता है, मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और जोड़ों में लचीलापन आता है, रक्त प्रवाह बढता है, हृदय और फेफड़ों अधिक क्रियाशील हो जाते है । शारीरिक और मानसिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है, दिल की बीमारियों में कमी आती है साथ ही आत्मनियंत्रण और स्वावलम्बन में बढ़ोतरी और तनाव व उदासीनता में कमी भी आती है।

सिर्फ इतना ही नहीं नमाज अदा करते रहने से ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढती है, चेहरे पर चमक,भूख में कमी और भरपूर चैन की नींद आती है। नमाज अदा करते रहने से बुढ़ापे की विभिन्न तरह की परेशानियों से ना केवल राहत मिलती है बल्कि हर एक परेशानी से जुझने की क्षमता पैदा होती है।

इसलिए योग को द्वेष से नहीं अपनत्व से देखा जाना चाहिए। धर्म चाहे कोई भी हो, लेकिन इसमें पूजन विधि जरूरी है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में एक शांत स्थान पर बैठकर, अपना आसन ग्रहण करके पूजा करने का नियम है। इसके अलावा सिख धर्म में यह जरूरी है कि जब भी आप पाठ करें आपका सिर ढका होना चाहिए। इसके अलावा इस्लाम के भी कुछ नियम हैं।

यहाँ एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि नेकी के लिए बुलाने वाला या प्रोत्साहित करने वाला भी पुण्य अथवा सवाब का हकदार होता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का योगा के प्रति प्रोत्साहन भी पुण्य के दायरे में आता है। इसलिए अपनाएं योग और भगाएं रोग।

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Saturday, August 17, 2019

जनसंख्या और मुसलमान

6 भाई बहन वाले प्रधानमंत्री जी ने कल लालकिले से देश की जनसंख्या नियंत्रण पर कुछ ज्ञान बाचा , उनकी सनक के आकलन पर यह संभव है कि आने वाले कल में पतियों को पत्नी से दूर रहने का आदेश "संभोगबंदी" के रूप रात 8 बजे अवतरित होकर सुनाया जा सकता है। जिससे जनसंख्या नियंत्रित की जा सके।

योगी 6 भाई बहन हैं , मोदी 6 भाई बहन , मोदी जी के चाचा नरसिंह दास के 8 बच्चे हैं , अटल बिहारी बाजपेयी के सात भाई बहन थे।आडवाणी 8 भाई बहन तोगाड़िया 9 भाई बहन लालू के 10 बच्चे नरसिम्हा राव के 10 बच्चे बाल ठाकरे 11 भाई बहन , डाक्टर अंबेडकर के 14 भाई बहन थे , तो मुलायम सिंह यादव भी 6 भाई बहन हैं , संघ प्रमुख मोहन भागवत के चार भाई बहन हैं , ममता बनर्जी 6 भाई बहन हैं , लिस्ट बहुत लंबी है।

यह कुछ महान लोगों के कर्म का परिणाम है जो आपके समक्ष इसलिए प्रस्तुत किया है कि आप जान लें कि अधिक बच्चे होने का आधार धर्म नहीं है बल्कि इसका आधार "अर्थ और शिक्षा" है। पर प्रधानमंत्री के उद्भोदन के बाद इस संदर्भ में भी मुसलमान आक्रमण पर आएगा।

दरअसल प्रधानमंत्री ने यूँ ही लालकिले से जनसंख्या नियंत्रण की बात नहीं की , दरअसल हिन्दूवादी न्यूज़ चैनल का हिन्दूवादी प्रमुख "सुरेश चौहाणके" ने जंतर मंतर पर 11 जुलाई 2019 को "जनसंख्या नियंत्रण" पर एक कार्यक्रम किया जिसमें सेना के पूर्व मेजर जनरल सिन्हा और सांसद गिरिराज सिंह समेत कई लोग एकत्रित हुए और मंच से केवल और केवल मुसलमानों को "चार शादी और चालिस बच्चे" के नाम पार उलहना देते रहे और यह चीखते चिल्लाते रहे कि मुसलमान जिस तरह से बच्चे पैदा कर रहे हैं उससे आने वाले कुछ वर्षों में इस देश में मुसलमान बहुसंख्यक और हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएगा। मोदी जी का लालकिले से दिया भाषण उसी क्रम का एक हिस्सा है।

कभी कभी सोचता हूँ कि यह लोग कितने मुर्ख होते हैं या तथ्य और गणना समझने और सहने की शक्ति भगवा ज़हर के कारण समाप्त हो जाती है।

आईए पहले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि और मुसलमानों के इस देश में बहुसंख्यक होने का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं , फिर चार और चालिस की बात होगी।

2011 के संसेक्स के आधार पर यह सिद्ध हो चुका कि अन्य धर्म वालों के मुकाबले मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धी में तेज़ी से गिरावट आयी है। 1981-1991 के बीच जहाँ यह दर 32•9% की थी तो 1991-2001 में यह दर 29•3% और 2001-211 में यह दर और घटकर 24•6% हो गयी। तो यह इस कारण कि मुसलमानों में भी साक्षरता अब धीरे धीरे बढ़ रही है। यही कारण है कि देश के सबसे साक्षर प्रदेश केरल में मुसलमानों की जनसंख्या दर 12•9% तो बिहार जैसे प्रदेश में हिन्दुओं की जनसंख्या दर 24•6% है।

भगवा गिरोह के द्वारा मुसलमानों के इस देश में बहुसंख्यक हो जाने के डर को ऐसे समझिए कि कब और किन हालात में मुसलमान इस देश में बहुसंख्यक होगा ?

हिन्दू और मुसलमान के मौजूदा जनसंख्या दर से उस संख्या तक पहुँचने के लिए जहाँ हिन्दू मुस्लिम बराबर जनसंख्या के होंगे , गणना की जाय तो वह स्थीति आएगी , सन 2281 में अर्थात 270 साल बाद और तब भारत की जनसंख्या होगी 13000 करोड़ और तब इस देश में 6500 करोड़ हिन्दू और 6500 करोड़ मुसलमान होंगे।

सोचिए कि भारत में 13000 करोड़ हिन्दू मुसलमान की आबादी ? सर चकरा गया ना ? पर भक्त यह नहीं समझते।

अब आईए "चार और चालिस" पर

मुसलमानों की आबादी में महिलाओं का प्रतिशत 48.7 है जबकि पुरुष 51.2 फीसदी हैं। सोचने वाली बात यह है कि एक मुसलमान यदि 4 महिलाओं से विवाह करता है तो 75% मुसलमान अविवाहित रह जाएँगे क्युँकि उन 3 मुसलमानों के हिस्से की 3 और महिलाओं से उस 1 मुसलमान ने शादी कर ली।

मने इस देश में सिर्फ 25% मुस्लिम पुरुष ही विवाहित रहेंगे शेष 75% मुसलमान या तो कुँवारे हैं या संघियों की 4-4 बेटियों से लवजिहाद कर चुके हैं। खैर चलिए भक्तोलाजी के तर्क को मान भी लेते हैं कि देश में हर मुसलमान चार शादी और चालिस बच्चे पैदा करता है तो सोचिए कि वह बच्चे हैं कहाँ ? क्युँकि 2011 के संसेक्स के आँकड़े तो मुसलमानों की जनसंख्या दर घटती हुई दिखाकर 14 करोड़ पर समेट दे रही है।

भक्तोलाजी के अनुसार तो यदि 14 करोड़ मुसलमानों की पुरुष जनसंख्या 7 करोड़ में 50% भी पुरुष विवाहित हैं तो 3•5 करोड़ मुसलमान के 40 बच्चे अर्थात , इस देश में मुसलमानों कि आबादी 1,435,000,000 है।

तो क्या मुसलमानों की इतनी आबादी इस देश में है ?

Tuesday, July 2, 2019

गर्म गोश्त का धंधा नोयडा में चर्म पर

देश के चुनिंदा शहरों की अगर बात करें नोएडा का नाम सबसे पहले लिया जाता नोएडा मे हर इंसान आने की हसरत रखता है और कम समय में नोएडा में ज्यादा पैसा बटोरने की भी लोगों के अंदर मानसिकता होती है लेकिन पैसा कमाने के लिए कुछ लोग इंसानियत को कितना शर्मसार कर देते हैं एक ऐसा ही मामला प्रकाश में आया

नोएडा के सेक्टर 18 में 2 दिन पूर्व गौतम बुध नगर पुलिस द्वारा छापेमारी की गई जिसमें दर्जनों स्पा पार्लर पर पुलिस ने रेड मारी इस छापेमारी के लिए गौतम बुध नगर के एसएसपी वैभव कृष्ण द्वारा 15 टीमों को गठित किया गया जिसके तहत नोएडा के सेक्टर 18 में पुलिस को बड़ी सफलता हासिल हुई

पुलिस ने एक स्पा पार्लर से आपत्तिजनक हालत में युवक व युवतियों को पकड़ा है छापेमारी के दौरान स्पा पार्लर के अंदर से बीयर की बोतलें वह कुछ आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद की है फिलहाल पकड़े गए युवक व युवतियों को पुलिस ने सलाखों के पीछे डाल दिया है जिस तरीके से गौतम बुध नगर जिले के एसएसपी वैभव किसने इस बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया उससे पुलिस विभाग के अलावा जिले के नागरिकों ने भी उनकी सराहना की।
लेकिन सवाल यह है किस जिले में दिल दहला देने वाला रैकेट अवैध तरीके से चलाया जा रहा है और पुलिस को इसका खबर नहीं
क्या पुलिस सब कुछ जानते हुए इस तरीके के कारनामे को नजरअंदाज कर रही है या फिर पुलिस इतनी कमजोर है किस शहर को इस तरीके से गंदा करने वाले लोगों से मुकाबला नहीं कर सकती यह तमाम सवाल ले शहर के नागरिक इन दिनों बेसब्री से उस पल का इंतजार कर रहे हैं जब शहर से पुलिस निडर होकर यह गंदगी साफ करेगी फिलहाल इस पूरे महकमे में कई पुलिस अधिकारी भी जांच के घेरे में हैं

Thursday, May 16, 2019

तालीम के लिए ये ज़रूरी है

अगर हम अपने दूसरे अल्पसंख्यक भाई जैसे सरदार, जैन और ईसाईयो की तरफ़ देखें तो पाएंगे की उन्होंने अपने हर तरफ़ स्कूल और कॉलेज खोल रखे हैं ।

फिर क्या वजह है मुसलमानो के इलाक़ों में ना तो अपने अच्छे स्कूल हैं और ना कॉलेज और ना अस्पताल।

*सवाल 1: मुसलमानो के पास ज़मीन नही जिससे स्कूल कॉलेज और अस्पताल खोले जा सकें ।*

उत्तर : पूरे भारत में रेलवे और DRDO के बाद वक़्फ़ के पास सबसे ज़्यादा ज़मीन है । लेकिन उसी वक़्फ़ की ज़मीन को हमारे मुसलमान नेता कोड़ियों के भाव बेचकर खा रहे हैं ।

*सवाल 2: मुसलमानो के पास पैसे नहीं हैं स्कूल खोलने के लिए ।*

जवाब : पूरे भारत में एक साल में क़रीब 40 हज़ार करोड़ ज़कात इकट्ठी होती है क्या आप हिसाब मांगते हैं जिसको अपनी ज़कात देतें हैं कि उसने कहा ख़र्च की ? सोचिये अगर एक ज़िले में उसका एक हज़ार करोड़ भी ख़र्च हो जाए तो कितने मदरसे,अस्पताल और स्कूल खुल जाएंगे ।

*सवाल 3: जब वक़्फ़ बोर्ड के पास इतनी ज़मीन है तो वक़्फ़ बोर्ड अस्पताल या स्कूल क्यों नही खोलता जिस इलाक़े में मुसलमान पिछड़े हुए हैं ?*

जवाब : जिस तरह हरयाणा वक़्फ़ बोर्ड ने Mewat Engineering College खोला और उसको ख़ुद चला रहा है ठीक उसी तरह बाक़ी राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड मुस्लिम इलाक़ों में स्कूल कॉलेज खोलकर उनको ख़ुद चला सकते हैं मगर ऐसा नही हो रहा।उनको अपने वजूद का ख़तरा महसूस होता है।

इसके लिए सरकार या अपने नेताओं के भरोसे बैठने की बजाए हम लोगों को ख़ुद पहल करनी होगी। अगर हम लोगो ने अपने तालीमी इदारे क़ायम नही किये तो हमारी आने वाली पीढ़ियां मज़दूरी करेंगी।

रउफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज

Tuesday, May 7, 2019

ज़कात क्या है और किसे देनी है

बराय मेहरबानी पूरा पढ़े।
क्या *जकात,फितरा,इमदाद, खैरात* हर उस मुसलमान को दी जाए? जो फर्जी मदरसों और मस्जिदों के सफीर बनकर मुसलमानों के पास आते हैं और लाखों रुपये बतौर चन्दा इक्कठा करने के बाद कभी उन लोगों को हिसाब किताब नहीं देते, जो अपनी खुन पसीने की कमाई में से कुछ रुपया अपना फर्ज समझकर फितरा, जकात, इमदाद, खैरात के रुप में  इस उम्मीद के साथ देते हैं कि उनकी नेक कमाई जरुरतमंद लोगों के पास जा रही है।
दोस्तों, थोड़ा अन्दाजा लगाईये। हकूमत के मुताबिक मुसलमान मुल्क में 25 करोड़ हैं और गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 30 करोड़ से भी ज्यादा। यदि मान लिया जाए कि एक मुसलमान एक साल में 100 रुपये फितरा, जकात, इमदाद, खैरात के रुप में ऐसे लोगों को देता है। तो ये लोग मुल्क के मुसलमानों से 2500-3000  करोड़ रुपये हर साल चंदे के रुप में उगाही करते है और विदेशों से चंदे की उगाही रही अलग और इनके ठाठ बाट जग जाहिर है
फिर आप खुद ही अन्दाजा लगा सकते हैं कि इतनी भारी रकम को यदि एक सिस्टम के तहत इकठ्ठा किया जाए और उससे जरुरतमंद लोगों के लिए, स्कूल, अस्पताल और कॉलेज वगैरा कायम किये जाए, तो उससे कौम और वतन को कितना फायदा हो सकता है। मगर मुसलमान है कि बिना सोचे समझे जो भी मुसलमान चंदे की गरज से कापी लेकर उनके दर पर आ जाता है, उससे सवाब समझकर अपनी नेक कमाई का हिस्सा, ये जाने बिना थमा देता है कि उसका सही इस्तेमाल हो भी रहा है या नहीं।

*ज़कात_क्या_है ?*
#और_किसको_देनी_चाहिये ?
ज़कात क्या है ? और किसको देनी चाहिये ?
रमज़ान के अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। तो ज़कात क्या है ?

*कुरआन मजीद में अल्लाह ने फ़र्माया है :
“ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।”
और ज़कात किसे देनी चाहिए इसपर हम इस पोस्ट में मुख़्तसर सा बयांन करने की कोशिश कर रहे है.

✦ ज़कात क्या है ?
अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरियत ने तय किया उसका मुसलमान फकीर (जरूरतमंद) को मालिक बना देना शरीयत में ज़कात कहलाता है’
✦ ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो…वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।

१. सबसे पहले ज़कात का हकदार है : “फ़कीर”:
फ़कीर कौन है? – फ़कीर वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो इस शख्स की आप ज़कात 11,000/- रुपये से मदद कर सकते है।

२. दुसरा नंबर आता है “मिस्कीन” का:
“मिस्कीन” कौन है? मिस्कीन वो शख्स है जो फ़कीर से थोडा अमीर है। ये वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 15,000/- सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से ज़्यादा है तो आप इस शख्स की आप ज़कात के 5,000/- रुपये से उसकी मदद कर सकते है।

३. तीसरा नंबर आता है “तारिके कल्ब” का:
“तारिके कल्ब” कौन है? “तारिके कल्ब” उन लोगों को कहते है जो ज़कात की वसुली करते है और उसको बांटते है। ये लोग आमतौर पर उन देशों में होते है जहां इस्लामिक हुकुमत या कानुन लागु होता है। हिन्दुस्तानं में भी ऐसे तारिके कल्ब है जो मदरसों और स्कु्लों वगैरह के लिये ज़कात इकट्ठा करते है। इन लोगो की तनख्खाह ज़कात के जमा किये गये पैसे से दी जा सकती है।

४. चौथे नंबर आता है “गर्दन को छुडानें में”:
पहले के वक्त में गुलाम और बांदिया रखी जाती थी जो बहुत बडा गुनाह था। अल्लाह की नज़र में हर इंसान का दर्ज़ा बराबर है इसलिये मुसलमानों को हुक्म दिया गया की अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऎसे गुलामो छुडाने में करो। उनको खरीदों और उनको आज़ाद कर दों। आज के दौर में गुलाम तो नही होते लेकिन आप लोग अब भी इस काम को अंजाम दे सकते है।

अगर कोई मुसलमान पर किसी ऐसे इंसान का कर्ज़ है जो जिस्मानी और दिमागी तौर पर काफ़ी परेशान करता है, या जेलों में जो बेकसूर और मासूम मुसलमान बाज़ शर्रपसंदों के फितनो के सबब फंसे हुए है आप ऐसे मुसलमानो की भी ज़कात के पैसे से मदद कर सकते है और उनकी गर्दन को उनपर होने वाले जुल्मो से छुडा सकते हैं।

५. पांचवा नंबर आता है “कर्ज़दारों” का:
आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते है। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते है और अगर आपको लगता है की ये इंसान आपसे पैसा लेने के बाद अपना कर्ज़ नही चुकायेगा बल्कि उस पैसे को अपने ऊपर इस्तेमाल कर लेगा तो आप उस इंसान के पास जायें जिससे उसने कर्ज़ लिया है और खुद अपने हाथ से कर्ज़ की रकम की अदायगी करें।

६. छ्ठां नंबर आता है “अल्लाह की राह में”:
“अल्लाह की राह” का नाम आते ही लोग उसे “जिहाद” से जोड लेते है। यहां अल्लाह की राह से मुराद (मतलब) सिर्फ़ जिहाद से नही है। अल्लाह की राह में “जिहाद” के अलावा भी बहुत सी चीज़ें है जैसे : बहुत-सी ऐसी जगहें है जहां के मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दुर है तो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।
अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते है जो पढना चाहता है लेकिन पैसे की कमी की वजह से नही पढ सकता, और आपको लगता है की ये बच्चा सोसाईटी और मुआशरे के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा तो आप उस बच्चे की पढाई और परवरिश ज़कात के पैसे से कर सकते है।

7. और आखिर में “मुसाफ़िर की मदद”:
मान लीजिये आपके पास काफ़ी पैसा है और आप कहीं सफ़र पर जाते है लेकिन अपने शहर से बाहर जाने के बाद आपकी जेब कट जाती है और आपके पास इतने पैसे भी नही हों के आप अपने घर लौट सकें तो एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है की वो आपकी मदद अपने ज़कात के पैसे से करे और अपने घर तक आने का किराया वगैरह दें।

ये सारे वो जाइज़ तरीके है जिस तरह से आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है। अल्लाह आप सभी को अपनी कमाई से ज़कात निकालकर उसको पाक करने की तौफ़ीक दें ! और अल्लाह तआला हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये।
आमीन ..

रऊफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज