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Monday, November 27, 2017

शिवानी जीवन परिचय

ब्रह्म कुमारी शिवानी की जीवनी

परिचय

शिवानी वर्मा जिनको हम लोग ब्रह्म कुमारी शिवानी के नाम से जानते है। वह एक आध्यात्मिक टीचर और पररक वक्ता है.  साल 1995 से ब्रह्म कुमारी शिवानी विश्व आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के सदस्य रही है।

जीवनी

ब्रह्म कुमारी शिवानी सार्वजनिक सेमिनारों में और टीवी के माध्यम से प्रेरक पाठ्यक्रम संचालित करती है।  सन  2008 के बाद उसने भारत में और भारतीय दर्शाकों के मध्य टीवी शृंखला " Awakening  With Brahm Kumari " में अग्रणी भूमिका निभाई है। वह इस समय "संस्कार चैनल" पर प्रसारित है।

ब्रह्म कुमारी शिवानी का जन्म 19 मार्च 1972 को पुणे शहर में हुआ। उनके माता पिता धार्मिक थे। इनको सिस्टर शिवानी के नाम से भी जानते है। सन 1994 में सिस्टर शिवानी ने पुणे यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई की। इसके  दो साल बाद वह भारती विद्यापीठ इंजीनियरिंग कॉलेज में  के पद पर रही।

जब  उसने अपने माता और पिता से ब्रह्म कुमारी में जाने की बात बोली तब उसकी शादी विशाल वर्मा से करा दी। तब उनकी उम्र 23 साल की थी तो वह स्वयं ब्रह्म कुमारी कार्यशालाओं में जाने के लिए तैयार हो गयी।

आरम्भ में उसने सोनी टीवी के लिए दिल्ली में ब्रह्म कुमारी टेलीविजन प्रस्तुतियों के पीछे काम करने के बाद सन 2007 में शिक्षकों की अनुपलब्धा के कारण उसे दर्शाकों को स्वयं का प्रश्न पूछने को कहा गया था।  टीवी कर्यक्रम  " Awakening  With Brahm Kumari " नामक कार्यक्रम का नेतृत्व किया। वहां सिस्टर शिवानी का इंटरव्यू को - होस्ट
कणप्रिया ने लिया था। इसे वीमेन ऑफ़ द डिकेड अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया गया। 

ब्रह्म कुमारी शिवानी के कुछ विचार इस प्रकार है; -

1 . जब मैं को हम में बदल दिया जाता है तो कमजोरी भी तंदुरस्ती में बदल जाती है।

2 . किसी को दिया हुआ प्यार या ख़ुशी हमेशा लौट कर  वापस आती है संयोग से हम उस व्यक्ति से आशा भी करते है।

3 . आपकी मुस्कान आपके चेहरे पर भगवान् के हस्ताक्षर है , उसे अपने आँसुओं से धुलने या क्रोध से मिटने ना दे. 

4 .  खुश रहने का मतलब यह नहीं है की सब कुछ ठीक है। इसका मतलब यह है कि  आपने अपने दुखों से ऊपर   उठकर जीना सीख  लिया है।

Tuesday, November 21, 2017

पुरषो का मान सम्मान

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस की शुरुआत 1999 में त्रिनिदाद एवं टोबागो से हुई थी. तब से प्रत्येक वर्ष 19 नवम्बर को ”अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस” दुनिया के 30 से अधिक देशों में मनाया जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसे मान्यता देते हुए इसकी आवश्यकता को बल दिया और पुरजोर सराहना एवं सहायता दी है.

कई बार हमारे देश में भी पुरुषों के अधिकारों की रक्षा के लिए आयोग बनाने, मंत्रालय के गठन की आवाजें उठी हैं. लेकिन यह आवाजें जंतर-मंतर से आगे ना जा सकी. यह मांग इसलिए भी उठी कि हमारे देश में महिलाओं-बच्चों, जानवरों, पेड़-पौधों तक के लिए अलग से मंत्रालय, न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) आयोग (कमीशन) और विभिन्न तरह के बोर्ड बने हैं. लेकिन पुरुषों के अधिकारों की बात करने के नाम पर कुछ नहीं हैं. हमारे देश में पुरुषों के अधिकार सामान्य मानावाधिकारों में ही निहित हैं. यहां महिलाओं की तुलना में आत्महत्या करने वालों में पुरुषों का आकंड़ा भी कहीं ज्यादा है.

भारत में महिलाओं के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग इतना ज्यादा है कि इस पर खुद सुप्रीम कोर्ट चिंता जता चुका है. भारत में हर कोई महिलाओं के अधिकारों को लेकर लड़ रहा है लेकिन कोई पुरुषों की इज्ज़त और आत्म-सम्मान के बारे में बात नहीं करता. ऐसे पुरुषों के लिए कानून कहां है, जो महिलाओं द्वारा झूठे केस में फंसा दिये जाते हैं. भारत में दहेज प्रताड़ना के खिलाफ कानून की धारा 498 A को लेकर लगातार बहस होती है. इसी धारा के तहत पुरुषों पर सबसे ज्यादा अत्याचार होता है

रऊफ अहमद सिद्दीकी नोयडा

Monday, November 20, 2017

पद्मावती हकीकत या कल्पना

पद्मावती एक काल्पनिक पात्र है या सच्चाई इस बात को लेकर काफी बहस छिड़ी हुई है चूंकि इतिहास मेरे पसंद के  विषयों में से एक है इसलिए मैनें नेट पर उपलब्ध सामग्री और मेरे खुद की लाइब्रेरी में उपलब्ध इतिहास की किताबो में से ये निष्कर्ष निकाला है कि रानी पद्मावती जिन्हें पद्मिनी भी कहते है इनके अस्तित्व में होने का कालघटनाक्रम चित्तौड़ में मिल रहा है । इस बात को हम नकार नही सकते लेकिन  अलाउद्दीन खिलजी जिसने अपने वृद्ध चाचा जो इनके ससुर भी थे, जलालुद्दीन  खिलजी इनकी हत्या की और इनके सिर के टपकते लहू के सामने खुद का राज्याभिषेक कराया। इस अलाउद्दीन ने क्या वाकई पद्मावती को पाने के लिए 1303 में  चितौड़ पर हमला किया था? ये पक्का नही मालूम लेकिन हमला किया चितौड़ पर विजय पाई ये सच है । इसके पहले उसने 1301 में रणथंभौर भी जीता और बाद में 1305 में मांडू भी जीता।
रानी पद्मावती का महल उसका जौहर कुंड सभी के प्रमाण मिल रहे है। इनके पति रतनसिंह मात्र एक साल ईसवी 1302 से 1303 तक राजा रहे । बाद में ये अलाउद्दीन खिलजी के हाथों पराजित हुए। अब सवाल ये है मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत का काल ईसवी 1520-25 से 1540 के बीच का समय है यानि पद्मावती और पद्मावत रचना के बीच दो सौ साल से ज़्यादा लम्बी अवधि का अंतराल है जो मुहम्मद जायसी को सवालों के घेरे में खड़ा करती है।अब सवाल ये है बरसो बाद मलिक मुहम्मद जायसी को अलाउद्दीन खिलजी रतनसिंह सिंह पद्मावती के बारे में लिखने की प्रेरणा कैसे मिली। कुछ तो प्रमाण जायसी को मिला होगा तब तो वो आगे बढ़ा है । जायसी को अचानक कोई सपना तो नही आया था कि दो सदी से पहले की घटना को महाभारत काल के संजय की दृष्टि से देखे और उनकी कथा को लिख दे। जायसी ने कैसे इसे लिखा इस बात को समझने के लिए हमे अलाउदीन खिलजी की अगली पीढ़ियों की तरफ बढ़ना होगा जिसमे इस वंश के आखिर में खुसरो खां का वध गाजी मलिक यानी गयासुद्दीन तुगलक ने किया। खिलजी वंश में अंतिम व्यक्ति खुसरो खां जो कुतुबुद्दीन मुबारक शाह का प्रधानमंत्री था ये कुतुबुद्दीन मुबारक शाह को मारकर भी खिलजी वंश का शासन चला ही नही पाया और इसी बरस यानि सन 1320 में इसे गाजी मलिक तुरंत मार कर गद्दी पर बैठ गए। और तुगलक वंश की नींव रख दी।
गाजी मलिक यानि गयासुद्दीन तुगलक का काल  1325 तक है ।उसके बाद मोहम्मद बिन तुगलक आया । यही मोहम्मद बिन तुगलक ही वो कड़ी है जिसके काल मे पद्मावती रतनसिंह और अलाउद्दीन की गाथा गायन के रूप में ज़िन्दा थी मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा विद्वान था वो बहुत बड़ा  कला प्रेमी था संगीत से गहरा लगाव था यहां उसके काल में लगभग 1200 गायक थे वो गणित चिकित्सा, दर्शन शास्त्र व अन्य विषयों का विद्वान था ये बात और है उसने दो निर्णय युक्तिपूर्ण नही लिए इसलिए उसे सनकी राजा या मूर्ख बुद्धिमान कहा जाता है पहला उसने अपनी राजधानी का नाम बदलकर दौलताबाद बदला दूसरा मुद्रा के सम्बंध में था l जो उसकी सनक को घोषित करता था।लेकिन ये सच है मुहम्मद बिन तुग़लक़ संगीत का बहुत बड़ा प्रेमी था। इसके बाद उसका चचेरा भाई फिरोज़ शाह तुगलक जो बाद में गद्दी पर बैठा ये तुगलक भी संगीत प्रेमी था है  ये राजा जब सिंहासन पर बैठते तो, जन-साधारण के लिए 21 दिनों तक लगातार  संगीत गोष्ठी का प्रबन्ध किया जाता था।
खुद अलाउद्दीन खिलजी के समय संगीत बहुत ज़्यादा पोषित सम्पन्न विस्तारित था  उसके बाद तुगलक वंश में  गयासुद्दीन तुगलक को छोड़कर संगीत का अस्तित्व आगे बढ़ रहा था ये संगीत ही इस बाद का प्रमाण है कि अलाउद्दीन पद्मावती और रतन सिंह की दासता गान में उपलब्ध थी वरना मुहम्मद जायसी को लिखने के लिये ये सबूत कहाँ से मिलते। यहाँ हमें ये प्रमाण मिल रहे है कि संगीत गायक उस समय भक्ति, राजा महाराजा की वीरता, उनकी प्रेम कथाओं या अन्य चर्चित प्रेमकथाएँ या प्रकृति के चित्रण का गायन में अनुसरण करते थे। तुगलक वंश सन 1414 तक था । अब इस क्षेत्र में और आगे बढ़े तो सैयद वंश आया है जिसने बहुत ज़्यादा उपलब्धि हासिल नही की । ये वंश 1451 तक चला फिर बहलोल लोधी ने लोधी वंश की स्थापना की। लोधी वंश में संगीत बहुत ज़्यादा सक्रिय रहा है, यानि अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती की गाथा को आगे बढ़ने का पूरा अवसर मिला 1526 में बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराकर मुग़ल वंश की नींव रख दी। मुहम्मद जायसी की रचना के प्रमाण सन लगभगसन 1520 -25से लेकर 1540 के बीच के समय के मिल रहे है और मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत में शेरशाह सूरी की तारीफ भी हुई है यानि जायसी आरंभ से शेरशाह के साथ रहा और शेरशाह सूरी बाबर के साथ रहा है। सूरी 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई बाबर की सेना में एक सैनिक था 1530 तक बाबर का शासन था फिर उसके बेटे हुमायूँ का शासनकाल आया। अब सन 1540 की बात करे जब पद्मावत की रचना अस्तित्व में आई। उस समय शेरशाह सूरी के साथ मुहम्मद जायसी की उपस्थिति मिल रही है साथ ही उसके शेरशाह सूरी के प्रति वफ़ादार होने के प्रमाण भी मिल रहे है। इस पद्मावत के भीतर शेरशाह सूरी की प्रशंसा भी शामिल है।कुछ विद्वान प्रमाण के आधार पर ये माने कि पद्मावत का लेखन कार्य 1540 के बहुत  पहले  हो चुका था तो सही लगता है। मोहम्मद जायसी भी शेरशाह सूरी का वफादार था वरना एकदम से सन1540 में शेरशाह सूरी का दिल्ली सल्तनत पर बैठना और जायसी का पद्मावत तुरंत लिख लेना सम्भव नही है।साथ ही इस बात के प्रमाण भी मिल रहे है शेरशाह सूरी की नज़र दिल्ली पर सिहांसन पर घात लगाने की बरसों पहले से थी वो बस हुमायूँ के लापरवाह होने का इंतज़ार कर रहा था और ये बात जायसी भी जानते था तभी तो वह अपनी रचना पद्मावत  का श्रेय  शेरशाह के शासन काल को देना चाहते थे।यानी ये निश्चित था 1540 से पहले से पद्ममावत लिखी जा रही थी या लिखी जा चुकी थी बस मुगलवंश के पतन का अवसर तलाशा जा रहा था। जायसी अपनी कृति पद्मावत मुग़लो को भी समर्पित कर सकता था पर वो तो सूरी का वफादार था। शेरशाह सूरी की ताकत 1537 से उजागर होने लगी थी। 1540 में उसने  हुमायूँ को हराया दिल्ली छोड़ने को मजबूर कर दिया। और 1540 में शेरशाह सूरी और मलिक मुहम्मद  जायसी दोनों पर्दे के पीछे से निकलकर एकदम सामने आ गए और 1540 में पद्मावत कृति पर  प्रमाणिकता की मुहर लग गयी ।
यहां एक और शब्द है मलिक,,, अलाउद्दीन खिलजी  के समय मलिक काफूर साथ था। इन मलिकों को अलाउद्दीन अपने चाचा को मौत के घाट उतारने के लिए लाया था। उसके समय मलिक सैनिक या सेनापति को कहते थे।
खिलजी वंश के बाद तुगलक वंश आया और इसका संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक का नाम पहले गाजी मलिक ही तो था। मुहम्मद जायसी भी मलिक थे यानि मलिक पहले से ही किसी प्रभावी राजा के साथ चल रहे थे। इस आधार पर ये भी तो हो सकता है ये पद्मावत किसी अन्य मलिक की रचना रही हो और शेरशाह सूरी के वफादार होने के कारण 1540 में इसने इस कृति से मूल मलिक को हटाकर अपना नाम दे दिया  या उसकी कृति के आधार पर पद्मावत लिख ली ।क्योकि 1542 में मुहम्मद जायसी की मृत्यु हो चुकी है औरउसके नाम 21 रचनाओं का उल्लेख है ।लेकिन जायसी पद्मावत से प्रसिद्ध हुआ क्यो?पहले से प्रसिद्ध क्यो नही हुआ ।21 रचनाओं में उसने अगर 1540 के पहले भी लिखा हो तो उसके प्रसिद्धि के प्रमाण पद्मावत से पहले क्यो नही मिल रहे है,,यदि हम दिल्ली सल्तनत के इतिहास पर नज़र डालें तो तुगलक वंश के फिरोज शाह तुगलक के समय घूस ख़ोरी और भ्रष्टाचारी शुरू हो चुकी थी।तो हो सकता है शेरशाह सूरी के समय भी भ्रष्टाचार व्याप्त हो।
जो भी हो ये सच है पद्मावती इतिहास के पन्नो में उपस्थित थी वो काल्पनिक नही थी।

Friday, November 3, 2017

हम ने वो कर दिखाया।

एक ईमानदार आत्मस्वीकृति
अभी तक का सबसे जबर्दस्त जुमला कल सामने आया कि कांग्रेस ने जो कुछ पचास साल में नहीं किया था वह हमने तीन साल में कर दिखाया !  मानना पड़ेगा कि इतनी ईमानदारी से सच को स्वीकार कर लेने के लिये पर्वत से भी ऊँचा और सागर से भी गहरा आत्म बल चाहिये ।लोग तो अपनी छोटी से छोटी गलती का दोष तत्काल दूसरों पर मढ़ देते हैं ।परन्तु आपकी बात अलग है ।सचमुच जो कमाल आपने तीन साल में कर दिखाया इसे तो दूसरी पार्टियाँ तीन सौ साल में भी न दिखा पातीं ।लाखों लोगों को बेरोजगार कर देने  और तमाम कारोबारियों को भिखारी बना देने में कितनी मेहनत पड़ती है विपक्ष को  कुछ पता भी है ? नोट बन्दी को सफल बनाने में जो दो सौ देशप्रेमी शहीद हो गये उनका इतिहास तो स्वर्णाक्षरों में लिखा ही जायेगा ?आप ने शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट अाधा करके पिछली सरकारों के मुँह पर तमाचा मारा है ।मारा है या नहीं  ?आपने ऐसी  फ़िजूल  बातों पर सरकारी धन के दुरुपयोग को रोक दिया ।दूसरी तरफ़   जनता की मुफ़्तखोरी पर रोक लगाने के लिये हर तरह की सब्सिडी पर भी लगाम कस दी । आपने देश का विकास करने के लिये रेल का भाड़ा तो बढ़ाया ही बुज़ुर्गों और बच्चों को स्वावलम्बी बनाने के लिये किराये में दी जाने वाली  छूट बन्द कर दी ।क्या पचास साल में कभी ऐसा हुआ था ?आप देशहित में पेट्रोल और रसोई गैस के दाम बढ़ाते जा रहे हैं और जनता खुशी खुशी खरीद रही है ।आपका दावा है कि जब तक सब के सब भूखे न मरने लगें तब तक दाम बढ़ाये जा सकते हैं । आपने सचमुच बहुत दूर की सोची है ।करदाताओं के पैसों का जैसा सदुपयोग आपने तीन साल में किया है उसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था ।आप ने देश को इतना अमीर बना दिया है कि वह हजारों  करोड़ तो दो महापुरुषों की मूर्ति बनवाने में आसानी से खर्च कर सकता  है ।आप भारतीय  जनता के आग्रह का सम्मान करते हुए गरीब जनता को बुलेट ट्रेन की और हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज की सैर करने लायक बना रहे हैं ।ऐसा महान लोक हितकारी शासक  तो अभी तक न किसी ने देखा था और न सुना था ।जी एस टी के रूप में जनता की सेवा का नया रास्ता आप से पहले किसने खोजा था  ? यह गुड ऐंड सिंपल टैक्स है ऐसा आप ही नहीं जनता भी महसूस करने लगी है ।इसके यूसेज से कारोबार में  अप्रत्याशित लाभ हुआ है ।इस तीन साल में आपने इस बदहाल देश को सोने की चिड़िया बनाने में बहुत  खून पसीना बहाया है ।मनमोहन सिंह ने कहा था कि भविष्य में जब इतिहास लिखा जायेगा तो मेरी सेवाओं को जरूर पहचाना जायेगा ।वही बात तो इन तीन सालों पर भी लागू होती है ।आज आपके  विपक्षी आपको बदनाम करने के चाहे जितने भी हथकंडे इस्तेमाल कर लें पर इतिहास आपकी  अच्छाई और सच्चाई को हमेशा याद रखेगा । मंज़िलें अभी और भी हैं ।नेति  नेति  ! यह अन्तिम सत्य नहीं ।इसके विकास और विस्तार के रास्ते हमेशा  खुले रहते हैं ।ऐसा हमारे ऋषि मुनि कहा करते थे ।आप क्या सोचते हैं ?