योगा से ही होगा जीवन सफल।
इस्लाम में योगा का महत्व ।
योगा को धर्म और मजहब के चश्में से नहीं देखना चाहिए। योगा को विज्ञान और स्वास्थ्य के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए। धर्म और मजहब भी इंसानी जिंदगी को बेहतर बनाने का जरिया है। इसीलिए अवतारों अथवा पैगंबरों ने योगा को धर्म और मजहब के माध्यम से जोड़ा है। इसी काम को आध्यात्म गुरु, संतो ने भी आगे बढ़ाया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने जब 21 जून को विश्व योगा दिवस घोषित करना चाहा तो सभी देशों ने भी अपनी स्वीकार्यता दिखलाई। सनातन धर्म में योगा जहां स्वीकार्य है, वहीं इस्लाम ने तो इसे अंगीकार कर लिया है। इस्लाम में योगा का महत्व इतना अधिक है कि उसका सोना, जागना, खाना – पीना, उठना बैठना, घूमना फिरना हद तक पूजा पद्धति सलात अथवा नमाज़ सब योगा है। इंसान के जिस्म के हर हिस्से का योगा से ताल्लुक है। जिसका योग ठीक तो उसकी नमाज़ ठीक। जिसकी नमाज़ ठीक तो उसकी नीयत ठीक। जिसकी नीयत ठीक तो उसकी तकदीर ठीक। इसलिए योगा को तेरा मेरा के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
आइए जानते है नमाज़ में योगा के प्रयोग को। नमाज़ अदा करने से पूर्व इस्लाम के अनुयाई गुस्ल (स्नान) करते है। उनके स्नान करने के तरीके में भी योगा का समावेश है। इसीलिए डाक्टर कहते है इस्लाम के तरीके से स्नान करने वाले कभी फालिज या ब्रेन हेमरेज के शिकार नहीं होते। क्योंकि इस्लामिक तरीके के स्नान में सीधा शरीर पर पानी नहीं डालते, बल्कि पहले हांथों को कोहनी तक धोते है। फिर नापाकी के हिस्से को, जिसमे नाभि के नीचे का हिस्सा चारों ओर से सबसे अहम है को पानी से पाक करते है। फिर कुल्ली करते है उसके बाद नाक में नर्म हड्डी तक पानी पहुंचा कर साफ़ करते है। इसके बाद हथेली से कोहनी की ओर पानी डालते है। उसके बाद हथेली में पानी लेकर सर का मसा करते हुए गर्दन के पीछे से आगे को साफ़ करते हुए हांथों को फेरते है। तब शरीर पर पानी डालते है और इतना पानी डालते है कि पूरा शरीर भीग जाए। कोई हिस्सा सूखा न रहे। यह प्रक्रिया तीन बार करते है। तब आप साबुन शैम्पो आदि जो चाहे उसका उपयोग करे।
गुसल के बाद और नमाज़ से पहले वुजू करना होता है। यह योगा का अगला चरण होता है। इसमें हाथों की हथेलियों से लेकर कोहनियों तक, मुंह की कुल्ली से लेकर नाक में पानी देने तक, आंखो से लेकर सिर एवं गर्दन के मसे तक। पैरों के पंजों से लेकर टखनों तक सब योगा ही योगा। यह हालत है वूजू की। इसके बाद नमाज़ की शुरुआत होती है।
जिसमे सबसे पहले रुख का सही होना। पूरी दुनिया के मुसलमान सऊदी अरब के मक्का शहर में स्थापित काबा शरीफ की ओर रुख कर नमाज़ पढ़ते है। रुख दुरुस्त करने के बाद नीयत करते हुए हाथों की हथेली को सीधा रखते हुए कानों तक ले जाते है और नाभि के पास हाथ को बाँध लेते है।
ईश्वर का ध्यान करते हुए ईश्वर की तारीफ़ करते हुए पूरी दुनिया की बेहतरी की प्रार्थना करते है। इसके बाद ईश्वर की तारीफ़ करते हुए अर्द्ध चंद्राकार की स्थिति में जाते है जिसे रुकू कहते है। इस स्थिति में भी ईश्वर का गुणगान करते है। फिर सीधे खड़े होते हुए नतमस्तक यानि कि सिजदे में चले जाते है। सिजदे में जाकर भी दुनिया से ध्यान हटाकर सिर्फ ईश्वर की बड़ाई बयान करते है। यही प्रक्रिया दोहराते है। पांचो समय में कितनी बार प्रक्रिया दोहरानी है यह तय है। नमाज हो जाने के बाद उँगलियों पर ईश्वर की तारीफ़ में तस्बीह (जाप) पढ़ते है। एक ख़ास मुद्रा में हाथों को सीने के सामने उठाकर अपने और अपने परिवार सहित पूरी कायनात (श्रष्टि) के लिए दुआ मांगते है। फिर हथेलियों को पूरे चेहरे पर मलते है। इस पूरी प्रक्रिया के अन्दर योग और एक्यूप्रेसर का समावेश रहता है।
इसीलिए नमाज से हमारे शरीर की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है। कुछ मांसपेशियां लंबाई में खिंचती है जिससे दूसरी मांसपेशियों पर दबाव बनता है। इस प्रकार मांसपेशियों को ऊर्जा हासिल होती है।
इस प्रक्रिया को ग्लाइकोजेनोलिसस के नाम से जानते हैं। मांसपेशियों में होने वाली गति नमाज के दौरान बढ़ जाती है। इस वजह से मांसपेशियों में ऑक्सीजन और खुराक में कमी आ जाती है जिससे रक्त वाहिकाओं में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे रक्त आसानी से वापस हृदय में पहुंच जाता है और रक्त हृदय पर कुछ दबाव बनाता है जिससे हदय की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। इससे हृदय में रक्त प्रवाह में भी अधिकता आ जाती है।
पांचों वक्त की नमाज अदा करने से फ्रेक्चर के जोखिम कम हो जाते हैं। नमाज ना केवल हड्डियों के घनत्व को बढ़ाती है बल्कि जोड़ों में चिकनाई और उनके लचीलेपन में भी इजाफा करती है। बुढ़ापे में चमड़ी भी कमजोर हो जाती है और उसमें सल पड़ जाते हैं। शरीर की मरम्मत की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। साथ ही रोगों से लडऩे की क्षमता में भी कमी हो जाती है।
बुढ़ापे में शारीरिक गतिविधि कम होने से इन्सूलिन का स्तर भी कम हो जाता है। शरीर के विभिन्न अंग अपने काम में कमी कर देते हैं। इन्हीं कारणों के चलते बुढ़ापे में दुर्घटनाएं और रोग ज्यादा होते हैं। नमाज से मांसपेशियों में ताकत, खिंचाव की शक्ति और लचीलापन बढ़ता है। साथ ही सांस और रक्त प्रवाह में सुधार होता है। इस तरह हम देखते हैं कि नमाज अदा करते रहने से बुढ़ापे में जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है। बुढ़ापे में कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं नमाज से सहनशक्ति,आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता में बढ़ोतरी होती हैं।
नमाज अदा करने से सांस क्रिया में भी सुधार होता है। नमाज के दौरान गहरी सांस लिए जाने से वाहिकाओं में हवा के लिए ज्यादा जगह हो जाती है। यही नहीं नमाज शरीर के वजन और केलोरी को नियंत्रित रखती है। अधिकाश लोग वाकिफ हैं कि कसरत हदय की कॉरोनरी बीमारी को रोकती है। यही नहीं कसरत डायबिटीज,सांस की बीमारियों,ब्लड प्रेशर में भी फायदेमंद होती है।
नमाज के दौरान की गई कसरत से मानसिक सुकून हासिल होता है। तनाव दूर होता है और व्यक्ति ऊर्जस्वित महसूस करता है। आत्मविश्वास और याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। नमाज में कुरआन पाक के दोहराने से याददाश्त मजबूत होती है। हम देखते हैं कि पांचों वक्त की फर्ज, सुन्नत, नफिल नमाज और रोजों के दौरान तरावीह के अनगिनत फायदे ईश्वर ने बन्दों के लिए रखे हैं।
पांचो वक्त की फर्ज, सुन्नत,नफिल नमाज और तरावीह अदा करने से केलोरी जलती है,वजन कम होता है, मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और जोड़ों में लचीलापन आता है, रक्त प्रवाह बढता है, हृदय और फेफड़ों अधिक क्रियाशील हो जाते है । शारीरिक और मानसिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है, दिल की बीमारियों में कमी आती है साथ ही आत्मनियंत्रण और स्वावलम्बन में बढ़ोतरी और तनाव व उदासीनता में कमी भी आती है।
सिर्फ इतना ही नहीं नमाज अदा करते रहने से ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढती है, चेहरे पर चमक,भूख में कमी और भरपूर चैन की नींद आती है। नमाज अदा करते रहने से बुढ़ापे की विभिन्न तरह की परेशानियों से ना केवल राहत मिलती है बल्कि हर एक परेशानी से जुझने की क्षमता पैदा होती है।
इसलिए योग को द्वेष से नहीं अपनत्व से देखा जाना चाहिए। धर्म चाहे कोई भी हो, लेकिन इसमें पूजन विधि जरूरी है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में एक शांत स्थान पर बैठकर, अपना आसन ग्रहण करके पूजा करने का नियम है। इसके अलावा सिख धर्म में यह जरूरी है कि जब भी आप पाठ करें आपका सिर ढका होना चाहिए। इसके अलावा इस्लाम के भी कुछ नियम हैं।
यहाँ एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि नेकी के लिए बुलाने वाला या प्रोत्साहित करने वाला भी पुण्य अथवा सवाब का हकदार होता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का योगा के प्रति प्रोत्साहन भी पुण्य के दायरे में आता है। इसलिए अपनाएं योग और भगाएं रोग।
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