रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Sunday, March 24, 2019

सरकारी नोकरी और मुसलमान

*हम उर्दू वाले*

बचपन से सुनते आए हैं, आज भी  कम पढ़े लिखे मुस्लिमो में ये बात आम है कि मुसलमानों को सरकारी नोकरी नही मिलती।
मुस्लिमो के साथ भेदभाव किया जाता है। एक कम अक़्ल जाहिल इंसान ये बात कहे तो समझ आती है पर क्या हम जैसे दानिश मंद और तालीम के ठेकेदार ये बात कहें तो बेईमानी हैं।
पर हमारे पास इसका एक माक़ूल जवाब तो हैं कि सरकारी जॉब हासिल करने के लिए पहले ज़रूरी है क़ाबलियत।

आज रिज़ल्ट के बाद अपने फिक्रमन्द साथियों का गुस्सा और अफ़सोस देखते हुए लिखने पर मजबूर होना पड़ा।
शमसुद्दीन सर तो इतने ज़्यादा हताश हैं कि क्या बताऊँ??

आज ये मुद्दा इसलिए उठाया गया है कि *TGT urdu female* का शानदार रिज़ल्ट हमारे मुँह पर एक तमाचा है।
135 सीट्स में से बस एक का सिलेक्शन हुआ है।

काफ़ी बहाने होंगे हमारे पास, इसके लिए रह रह कर सरकार और DSSSB को ही कोस रही होंगी हमारी बहने।
पेपर मुश्किल था,
आउट ऑफ सिलेबस था।
ऐसा था, वैसा था।

शायद दुनिया जहान से बाहर की बातें पूछ ली होंगी??
या फिर एलियन्स के द्वारा बनाया हुआ पेपर पकड़ा दिया गया हो??
हो सकता है यहूदियों की ही कोई साज़िश हो??
या ये भी हो सकता है कि DSSB पर अमेरिका का दवाब हो इसलिए टफ पेपर बनाया गया हो..!!

बगैरह बगैरह..

पर क्या हमने खुद अपने गिरेबान में झाँका??
कितना तैयार थे हम इस पेपर के लिए??

ग़ैर मुस्लिमों और अपने ही कुछ मुस्लिमो का ये सोचना है कि..
ये उर्दू वाले तो बस ऐसे ही लग जाते हैं।
लग जाओ ऐसे ही।
लग तो गए 135 में से एक इससे बहतर और क्या होता।
उस एक सीट वाली बहन को सलाम जिनकी वजह से इज़्ज़त की चादर एक काँटे में अटक कर पूरी तरह उड़ी नही।

खैर..
अब सोचना ये हैं कि कमी कहाँ हुए?? ताकि आगे उसके लिए तैयारी कर ली जाए।

1-इसमें सबसे बड़ी गलती है उर्दू के ठेकेदारों की।
जो लोग आज ख़िदमत ए उर्दू का दम भरते हैं, उनके खाते में तनख्वाह इंग्लिश में छपी आती है। तो क्यों टेंशन लें??
हाँ वक़्त आने पर उर्दू के नाम पर दो चार जलसे करवा देंगे।
मुशायरे होंगे और उर्दू मिलन में बिरयानी तोड़ कर खत्म ख़िदमत।

कितने हमारे ऐसे PRT या उर्दू TGT हैं जिन्होंने अपनी क़ौम की बेटियों की रहबरी की??

मुश्किल से दो चार

बाक़ी??

बाक़ी हैं ना,
किसी के पास वक़्त नही हैं
किसी को स्कूल के काम से फुर्सत नही।
कोई बस इसलिए काम करता है कि पहले उसका भला हो या नाम हो उसके बाद ही निकलेंगे घर से।

शमसुद्दीन सर जैसे लोगो का परिवार नही है क्या??
क्या इनको वक़्त पर खाना और सोने की ज़रूरत नही हैं??

बड़े अफसोस की बात है कि उर्दू के ज़रिए नोकरी मिलते ही सबसे पहले हम उर्दू को ही भूल जाते है।
उर्दू के नाम से जो तनख्वाह आती है उसी से अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजते हैं

अगर कोई ये सोच रहा हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं??
तो आपको कुछ नाम बता दूँ
*मोहम्मद रिज़वान अंसारी*
जिसने अकेले दम पर स्पेशल एडुकेटर की फ़ौज खड़ी कर दी।

*उस्ताद शमसुद्दीन सर*
किसी के सर के बाल गिने जा सकते  हैं पर *शम्स सर* की क़ौम की खिदमते गिनना मुश्किल है।

*उस्ताद नईमुद्दीन सर*
जिनकी कोचिंग से सभी वाक़िफ़ हैं।

2- दूसरे दर्जे पर ज़िम्मेदार वो लोग हैं जो उर्दू के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं।
ना हम आज तक उर्दू का अच्छा स्टडी मटेरियल बना सके ताकि क़ौम को फायदा हो सके।

कोचिंग वाले भी बस पहले पेपर को तैयार करवा कर मैदान में भेज देते हैं ये सोच कर कि..
उर्दू तो ये खुद कर लेंगे, इसमे है ही क्या??

ना अच्छी कोचिंग है
ना अच्छी किताबें हैं
ना अच्छे उस्ताद हैं

तो फिर रिज़ल्ट यही होना कोई बड़ी बात नही।
अगर नही जागे तो आगे इससे भी बुरा हो सकता है।

3, तीसरे दर्ज पर खुद वही ख्वातीन ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने ये पेपर दिया या आगे देंगी।

हम मानते हैं कि ख़्वातीन के लिए बहुत सी लिमिट्स हैं।

पर जब आपने जॉब के अप्लाई किया ही था तो ज़रा तो रहम करतीं??
सब कुछ ऐसे ही नही हो जाता, जैसे आप सबने सोच लिया।

वो ज़माने गए जब उर्दू को हलवा समझा जाता था।

सिर्फ फार्म भरने से आपका काम खत्म नही हो जाता।

बड़े अफसोस की बात है कि आज हमारी बहनो के पास tik tok ओर हुस्न दिखाने का वक़्त है pub G पर घण्टों बरबाद कर देंगी लेकिन अपने मुस्तक़बिल के लिए इतना वक़्त नही है कि ढंग से तैयारी ही कर लेती।

कौन करें तैयारी, और क्यों करें??

किसी के शौहर बहुत अच्छा कमा रहे हैं।
तो कोई पहले ही PRT टीचर है तो क्या बेकार में किताबों में सर फोड़ें??

कोई तो कॉट्रेक्ट पर 10 साल गुजारने के बाद सिर्फ इसलिए मुतमइन है कि अब तक कि कमाई में मियाँ के साथ मिलकर प्लाट ले तो लिया है, अब किस बात की हाय तौबा करें??

ख़ैर कहने के लिए बहुत सी बातें हैं पर प्रॉब्लम का ज़िक्र करके उतना फायदा नही जितना उसका हल खोजने में।

अब वक़्त है सर जोड़ कर बैठो और सोचो कि आगे करना क्या है??

दौलत और शौहरत की फ़िक़्र ना करते हुए, ख़ालिस क़ौम के लिए सोचने का वक़्त है।

लोग हँस रहें हैं हम पर, अब नही जागे तो कब जागेंगे??

जो भी साथी अपनी क़ाबलियत और ताकत के हिसाब से जो कर सकता है वो करो।

जिसको समझाना आता है वो समझाओ।
जिसको पढ़ाना आता है वो पढ़ाओ।
जिसको लिखना आता है वो लिखो।
लोगो को गाइड करें।

मेरी उन सभी साथियों से ये गुज़ारिश है जो TGT उर्दू बनने का ख़्वाब सजाए बैठे है कि वो अपनी तरफ से कोई कमी ना छोड़े। अपनी तरफ से अपना बेस्ट करें। जहाँ तक रहबरी का सवाल है उसके लिए हम सब आपके साथ हैं इन्शाल्लाह।

यहाँ ये बात भी क़ाबिल ए गौर है कि..
अगर DSSSB की तरफ से कोई ना इंसाफी या टेक्निकल फाल्ट दिखता है तो उसको दूर करने के किये *शम्स सर* की अगुवाई में पूरी टीम आपके साथ है।
पर अगर कमज़ोरी आपकी तरफ से हुई तो उसकी भरपाई कौन करेगा??

ये शम्स, रिज़वान, वसीम, अरशद, शाहिद सर, एजाज़, नईम सर या में आपको बस रास्ता ही तो दिखा सकते हैं उस पर चलना तो आपको खुद होगा।

आप मिलकर अपनी खोई हुई इज़्ज़त को दुबारा हासिल करें।

ये अहद करें कि अगली बार इन्शाल्लाह 100% सीट्स भरनी हैं।

ये काम तेरा या मेरा नही, ये हम सबका काम है।

रऊफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज नोएडा

No comments:

Post a Comment

मेरी दुनिया में आप आए इसके लिए आपका आभार. निवेदन है कि कृपया टिप्पणी दिए बिना यहाँ से न जाएँ और मेरी दुनिया वापस लौट कर भी आएँ.