रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Tuesday, March 26, 2019

किस पंचायत की बात कर रहे हो

गुरुग्राम की गुंडागर्दी पर जब बीबीसी की टीम ग्राउंड रिपोर्ट के लिए भोंडसी पहुंची तो एक बुज़ुर्ग ने कहा कि हम मुसलमानों को यहां रहने नही देंगे, यदि वह माफ़ी मांगेंगे तो उनको यहां रहने की इजाज़त दी जायेगी और गर उन्होंने माफ़ी नही मांगी तो 2,4 दिन में गांव में पंचायत होगी और पंचायत उनका बहिष्कार कर हुक्का पानी बंद करेगी क्योंकि मुसलमानो के घर में हथियारों का ज़खीरा रहता है,अब कोई इस गुंडे बुज़ुर्ग से कहे कि यदि साजिद के घर मे हथियार होते तो वो तथाकथित 25-30 गुंडे मवाली, आतंकी साज़िद के घर पर हमला नही करते साजिद के बच्चों के साथ मारपीट नही करते साजिद के परिवार की औरतों के साथ बर्बरता की सारी हदें पार ना करते, साजिद व दिलशाद समेत परिवार के मर्दो की गर्दन, टांग, हाथ, पसलियां नही तोड़ते, उनके घर पर तांडव नही मचाते और यदि यह सब भी कर देते रो तो साजिद के पास हथियार होने पर यह तथाकथित लाश बनकर वहां से दूसरों के कंधों पर जाते ये बात अलग कि बीजेपी का केंद्रीय मंत्री भले ही उनकी लाश पर तिरंगा लपेटने चला जाता लेकिन लाश ज़रूर बन सकते थे क्योंकि आदमी अपने साथ हो रही दरिंदगी, बर्बरता को सहन कर सकता है लेकिन उसके घर की महिलाओं के साथ उसकी आँखों के सामने बर्बरता की सारी हदें पार होती रही और साजिद व अन्य मर्द ख़ुद भी बर्बरता सहन करते रहे क्योंकि उनके पास हथियार नही था, और हथियार अख़लाक़ के परिजनों के पास भी नही था, हथियार अफराज़ूल, पहलू, जुनैद, मज़लूम, ज़ुबैर, रकबर के पास भी नही था।
अब सवाल यह उठता है कि यह बुजुर्ग किस पंचायत की बात कर रहा है, शायद उसी पंचायत की जब गुड़गांव में 12 साल की बच्ची के साथ रेप के बाद हत्या हो जाती है और वह पंचायत सरकार का हुक्का पानी बंद करने की धमकी नही देती?शायद उसी पंचायत की जो एक युवक गिरगिट को मार देता है तो उस युवक का हुक्का पानी बंद कर समाज से बहिष्कार कर गांव से भगा दिया जाता है?शायद यह बुजुर्ग उसी पंचायत की बात कर रहा है जो परिवार में बेटा ना होने की वजह से एक आदमी अपनी चारों बेटियों को वचन देता है कि बेटियों मेरी अर्थी को तुम ही शमशान तक ले जाना और पिता की मृत्यु के बाद बेटियां पिता को दिए हुए वचन को निभाने के लिए अर्थी को कांधा देती है तो पंचायत उन बेटियों का भी हुक्का पानी बंद कर समाज से बहिष्कार का ऐलान कर देती है?
आख़िर इस पंचायत को पंचायत लगाने का हक़ दिया किसने है?यह पंचायत बेटियों के साथ हो रही रेप की घटनाओं के बाद किस बिल में बड़ जाती है उस बिल का पता लगाना जरूरी है ताकि ऐसी घटनाओं पर इस पंचायत को खींच कर हर उस घटना पर लगाम लगाने के लिए रगड़ा जा सके।।

रउफ अहमद सिद्दीकी
सम्पादक
जनता की खोज नोएडा

Monday, March 25, 2019

देवबंद दारुल उलूम

दोस्तो:देवबन्द एक शेहर का नाम हैं जो जिला सहारनपुर यूपी में हैं यंहा पर एक मदरसा हैं जो 314 साल पुराना हैं जिसका नाम दारुल उलूम असगरया है इसके बाजू में एक और मदरसा हैं जिसको दुनया दारुल उलूम देवबन्द के नाम से जानती हैं और पूरी दुनया का सरवे करने के बाद ये भी बताया गया हैं के दुनया का नम्बर वन भी यही मदरसा हैं जो 150 साल पुराना हैं इसमें एडमिशन (दाखला)लेने के लिये पहले इक्जाम (इम्तिहान)देना पढ़ता हैं और येह रमजान के 10 दिन बाद होते हैं इस इक्जाम में तकरीबन 20000 हजार स्टूडेंट शिर्कत करते हैं इनमें से 2000 का एडमिन होता हैं और 4000 हजार पहले से एक्जाम पास होते हैं इसका एक साल का खर्चा 270000000 करोड़ होता हैं येह सब खर्चा मुसलमानो की हलाल कमाई के चंदे से होता हें !
👉इस मदरसे की शुरूआत करने वाले हजरत मौलाना कासिम नानौतवी हैं
👉जब इस मदरसे की शुरूआत की थी उस वक़्त हुकूमत अंर्गेजो की थी हर तरफ से दुशमन हि दुशमन थे और लाखो उलाम ऐ कराम को सूली पर लटका दिया था उस वक़त भारत में इस्लाम का बचाना बहुत मुश्किल था लेकिन हजरत नानौतवी लगातार कोशिश में लगे रहे अल्लाह ने उनकी मेहनत को क़बूल किया और आज पूरी दुनया में उलामा ऐ देवबन्द का चरचा होरहा हैं
इसने हर फितने को हरा कर दीने मोहम्मद स•की हिफाजत की हैं और करता रहेगा इन्शाअल्ला.      इतना शेयर करो कि दारुल उलूम के खिलाफ बोलने वालों की आंखें खुली की खुली रह जाए

Sunday, March 24, 2019

सरकारी नोकरी और मुसलमान

*हम उर्दू वाले*

बचपन से सुनते आए हैं, आज भी  कम पढ़े लिखे मुस्लिमो में ये बात आम है कि मुसलमानों को सरकारी नोकरी नही मिलती।
मुस्लिमो के साथ भेदभाव किया जाता है। एक कम अक़्ल जाहिल इंसान ये बात कहे तो समझ आती है पर क्या हम जैसे दानिश मंद और तालीम के ठेकेदार ये बात कहें तो बेईमानी हैं।
पर हमारे पास इसका एक माक़ूल जवाब तो हैं कि सरकारी जॉब हासिल करने के लिए पहले ज़रूरी है क़ाबलियत।

आज रिज़ल्ट के बाद अपने फिक्रमन्द साथियों का गुस्सा और अफ़सोस देखते हुए लिखने पर मजबूर होना पड़ा।
शमसुद्दीन सर तो इतने ज़्यादा हताश हैं कि क्या बताऊँ??

आज ये मुद्दा इसलिए उठाया गया है कि *TGT urdu female* का शानदार रिज़ल्ट हमारे मुँह पर एक तमाचा है।
135 सीट्स में से बस एक का सिलेक्शन हुआ है।

काफ़ी बहाने होंगे हमारे पास, इसके लिए रह रह कर सरकार और DSSSB को ही कोस रही होंगी हमारी बहने।
पेपर मुश्किल था,
आउट ऑफ सिलेबस था।
ऐसा था, वैसा था।

शायद दुनिया जहान से बाहर की बातें पूछ ली होंगी??
या फिर एलियन्स के द्वारा बनाया हुआ पेपर पकड़ा दिया गया हो??
हो सकता है यहूदियों की ही कोई साज़िश हो??
या ये भी हो सकता है कि DSSB पर अमेरिका का दवाब हो इसलिए टफ पेपर बनाया गया हो..!!

बगैरह बगैरह..

पर क्या हमने खुद अपने गिरेबान में झाँका??
कितना तैयार थे हम इस पेपर के लिए??

ग़ैर मुस्लिमों और अपने ही कुछ मुस्लिमो का ये सोचना है कि..
ये उर्दू वाले तो बस ऐसे ही लग जाते हैं।
लग जाओ ऐसे ही।
लग तो गए 135 में से एक इससे बहतर और क्या होता।
उस एक सीट वाली बहन को सलाम जिनकी वजह से इज़्ज़त की चादर एक काँटे में अटक कर पूरी तरह उड़ी नही।

खैर..
अब सोचना ये हैं कि कमी कहाँ हुए?? ताकि आगे उसके लिए तैयारी कर ली जाए।

1-इसमें सबसे बड़ी गलती है उर्दू के ठेकेदारों की।
जो लोग आज ख़िदमत ए उर्दू का दम भरते हैं, उनके खाते में तनख्वाह इंग्लिश में छपी आती है। तो क्यों टेंशन लें??
हाँ वक़्त आने पर उर्दू के नाम पर दो चार जलसे करवा देंगे।
मुशायरे होंगे और उर्दू मिलन में बिरयानी तोड़ कर खत्म ख़िदमत।

कितने हमारे ऐसे PRT या उर्दू TGT हैं जिन्होंने अपनी क़ौम की बेटियों की रहबरी की??

मुश्किल से दो चार

बाक़ी??

बाक़ी हैं ना,
किसी के पास वक़्त नही हैं
किसी को स्कूल के काम से फुर्सत नही।
कोई बस इसलिए काम करता है कि पहले उसका भला हो या नाम हो उसके बाद ही निकलेंगे घर से।

शमसुद्दीन सर जैसे लोगो का परिवार नही है क्या??
क्या इनको वक़्त पर खाना और सोने की ज़रूरत नही हैं??

बड़े अफसोस की बात है कि उर्दू के ज़रिए नोकरी मिलते ही सबसे पहले हम उर्दू को ही भूल जाते है।
उर्दू के नाम से जो तनख्वाह आती है उसी से अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजते हैं

अगर कोई ये सोच रहा हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं??
तो आपको कुछ नाम बता दूँ
*मोहम्मद रिज़वान अंसारी*
जिसने अकेले दम पर स्पेशल एडुकेटर की फ़ौज खड़ी कर दी।

*उस्ताद शमसुद्दीन सर*
किसी के सर के बाल गिने जा सकते  हैं पर *शम्स सर* की क़ौम की खिदमते गिनना मुश्किल है।

*उस्ताद नईमुद्दीन सर*
जिनकी कोचिंग से सभी वाक़िफ़ हैं।

2- दूसरे दर्जे पर ज़िम्मेदार वो लोग हैं जो उर्दू के नाम पर अपनी दुकानें चला रहे हैं।
ना हम आज तक उर्दू का अच्छा स्टडी मटेरियल बना सके ताकि क़ौम को फायदा हो सके।

कोचिंग वाले भी बस पहले पेपर को तैयार करवा कर मैदान में भेज देते हैं ये सोच कर कि..
उर्दू तो ये खुद कर लेंगे, इसमे है ही क्या??

ना अच्छी कोचिंग है
ना अच्छी किताबें हैं
ना अच्छे उस्ताद हैं

तो फिर रिज़ल्ट यही होना कोई बड़ी बात नही।
अगर नही जागे तो आगे इससे भी बुरा हो सकता है।

3, तीसरे दर्ज पर खुद वही ख्वातीन ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने ये पेपर दिया या आगे देंगी।

हम मानते हैं कि ख़्वातीन के लिए बहुत सी लिमिट्स हैं।

पर जब आपने जॉब के अप्लाई किया ही था तो ज़रा तो रहम करतीं??
सब कुछ ऐसे ही नही हो जाता, जैसे आप सबने सोच लिया।

वो ज़माने गए जब उर्दू को हलवा समझा जाता था।

सिर्फ फार्म भरने से आपका काम खत्म नही हो जाता।

बड़े अफसोस की बात है कि आज हमारी बहनो के पास tik tok ओर हुस्न दिखाने का वक़्त है pub G पर घण्टों बरबाद कर देंगी लेकिन अपने मुस्तक़बिल के लिए इतना वक़्त नही है कि ढंग से तैयारी ही कर लेती।

कौन करें तैयारी, और क्यों करें??

किसी के शौहर बहुत अच्छा कमा रहे हैं।
तो कोई पहले ही PRT टीचर है तो क्या बेकार में किताबों में सर फोड़ें??

कोई तो कॉट्रेक्ट पर 10 साल गुजारने के बाद सिर्फ इसलिए मुतमइन है कि अब तक कि कमाई में मियाँ के साथ मिलकर प्लाट ले तो लिया है, अब किस बात की हाय तौबा करें??

ख़ैर कहने के लिए बहुत सी बातें हैं पर प्रॉब्लम का ज़िक्र करके उतना फायदा नही जितना उसका हल खोजने में।

अब वक़्त है सर जोड़ कर बैठो और सोचो कि आगे करना क्या है??

दौलत और शौहरत की फ़िक़्र ना करते हुए, ख़ालिस क़ौम के लिए सोचने का वक़्त है।

लोग हँस रहें हैं हम पर, अब नही जागे तो कब जागेंगे??

जो भी साथी अपनी क़ाबलियत और ताकत के हिसाब से जो कर सकता है वो करो।

जिसको समझाना आता है वो समझाओ।
जिसको पढ़ाना आता है वो पढ़ाओ।
जिसको लिखना आता है वो लिखो।
लोगो को गाइड करें।

मेरी उन सभी साथियों से ये गुज़ारिश है जो TGT उर्दू बनने का ख़्वाब सजाए बैठे है कि वो अपनी तरफ से कोई कमी ना छोड़े। अपनी तरफ से अपना बेस्ट करें। जहाँ तक रहबरी का सवाल है उसके लिए हम सब आपके साथ हैं इन्शाल्लाह।

यहाँ ये बात भी क़ाबिल ए गौर है कि..
अगर DSSSB की तरफ से कोई ना इंसाफी या टेक्निकल फाल्ट दिखता है तो उसको दूर करने के किये *शम्स सर* की अगुवाई में पूरी टीम आपके साथ है।
पर अगर कमज़ोरी आपकी तरफ से हुई तो उसकी भरपाई कौन करेगा??

ये शम्स, रिज़वान, वसीम, अरशद, शाहिद सर, एजाज़, नईम सर या में आपको बस रास्ता ही तो दिखा सकते हैं उस पर चलना तो आपको खुद होगा।

आप मिलकर अपनी खोई हुई इज़्ज़त को दुबारा हासिल करें।

ये अहद करें कि अगली बार इन्शाल्लाह 100% सीट्स भरनी हैं।

ये काम तेरा या मेरा नही, ये हम सबका काम है।

रऊफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज नोएडा

कर्ज़ वाली दुल्हन

*कर्ज़ वाली लड़की*

एक 15 साल के भाई ने अपने वालिद से कहा "अब्बूजान बाजी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है" अभी जीजाजी ने फोन पर बताया।

उसकी बड़ी बहन की सगाई कुछ दिन पहले एक अच्छे घर में तय हुई थी।

दीनमोहम्मद जी पहले से ही उदास बैठे थे धीरे से बोले...

हां बेटा.. उनका कल ही फोन आया था कि वो एक दो दिन में *दहेज* की  बात करने आ रहे हैं.. बोले... *दहेज* के बारे में आप से ज़रूरी बात करनी है..

बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था.. कल को उनकी *दहेज* की मांग इतनी ज़्यादा हो कि मैं पूरी नही कर पाया तो ?"

कहते कहते उनकी आँखें भर आइ..

घर के हर एक शख्स के मन व चेहरे पर फिक्र की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी...लड़की भी उदास हो गयी...

खैर..

अगले दिन समधी समधन आए.. उनकी बखूबी इस्तक़बाल किया गया..

कुछ देर बैठने के बाद लड़के के वालिद ने लड़की के वालिद से कहा" दीनमोहम्मद जी अब काम की बात हो जाए..

दीनमोहम्मद जी की धड़कन बढ़ गयी.. बोले.. हां हां.. समधी जी.. ज़रूर..

लड़के के वालिद ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनमोहम्मद जी कि और खिसकाई ओर धीरे से उनके कान में बोले. दीनमोहम्मद जी मुझे *दहेज* के बारे बात करनी है!...

दीनमोहम्मद जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले बताईए समधी जी....जो आप को अच्छा लगे.. मैं पूरी कोशिश करूंगा..

समधी जी ने धीरे से दीनमोहम्मद जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुये बस इतना ही कहा.....

आप लडकि कि बिदाई में कुछ भी देगें या ना भी देंगे... थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे.. मुझे सब कबूल है... पर *कर्ज लेकर* आप एक रुपया भी *दहेज मत देना.* वो मुझे कुबूल नहीं..

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी *"कर्ज वाली लडकि"* मुझे कुबूल नही...

मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए.. जो मेरे यहाँ आकर मेरे घर को बरकतों से भर देगी..

दीनमोहम्मद जी हैरान हो गए.. उनसे गले मिलकर बोले.. समधी जी बिल्कुल ऐसा ही होगा...!

*सबक :-  कर्ज वाली लडकि ना कोई बिदा करें न ही कोई कबुल करे.*

*आज के दिनो मे बहुत सारे मां बाप परेशान है लोग दहेज मांग रहे है, बहुत सारी लडकिया बिना शादी के घरो मे बैठी है, क्यों के उनके पास पैसा नही, 👉गरीबो से निकाह करो,अामीरो के लिए तो लाईन लगी है...!*

*ज़रूरी ऐलान* :- "आओ बनाये निकाह आसान "

Tuesday, March 19, 2019

तालीम की अहमियत को समझें मुसलमान

मैं शुरू से कहता हूं कि सुधार की आवाज आम मुस्लिम के अंदर से उठनी चाहिए ...

मैं मुस्लमान हूँ,
मै प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री   नही बन सकता, क्योकि मेरी तादाद कम है और जातिवाद ज्यादा,  लेकिन मैं कलेक्टर, एडीएम, तहसीलदार, कमिश्नर, एसपी, डीएसपी तो बन ही सकता हूँ।
     लेकिन मै निकम्मा हूं

       मुझ से घंटो पढ़ाई नही होती, अगर मैं पढ़ने लग गया तो चौराहों की रौनकें ख़त्म हो जाएगी, जो की मै होने नही दूंगा, मै पढ़ गया तो गुटखा, ताश पत्तियां छूट जाएगी जो की मै छोड़ना नही चाहता।
        मै पढ़ गया तो मुहल्ले की रौनक कम हो जाएगी, दिन भर आवारा गिर्दी इन्ही मुहल्ले में ही तो करता हूँ मै,  हां! काम नही है मेरे पास, लेकिन क्या फ़र्क़ पढता है, अल्लाह दो वक़्त की रोटी तो खिला ही देता है ना!

     हां मै मुसलमान हूँ, और पैदा होते है एक सील ठप्पा लग गया था मेरी तशरीफ़ पर कि मै पंचर की दूकान खोलूंगा या हाथो में पाने पकड़ कर गाड़ियां सुधारूँगा, या बहुत ज्यादा हुआ तो दूसरों की गाड़ियां चलाऊंगा।
       हां मै मुसलमान हूँ, , अपने भाइयो की टांग खिंचाई, मेरा अहम शगल है।
   
     आखिर मै क्यों नही पढा ?  या मै क्यों नही पढ़ नही पाया? ये सवाल हो सकता है! लेकिन मैं अनपढ़ हूं इसमें शक नही!

       हां मै मुसलमान हूं,और हिंदुस्तान में 30 करोड़ हुँ , लेकिन मै ज्यादातर अनपढ़, गरीब, गन्दी बस्तियों में ही हूं, इसका दोष मै दुसरो पर मंढता हूं, मै चाहता हूँ कि मेरे घर आंगन की झाड़ू लगाने भी सरकार आये।

    मै मुसलमान हूं, घर के सामने अतिक्रमण करना भी मेरा अहम शग़ल है, मै पंद्रह फिट की रोड को आठ फिट की करने मै भी माहिर हुँ, फिर उस आठ फिट की रोड़ पर रिक्शा खड़ी करना भी मेरा अधिकार है, हां मै मुसलमान हूँ, जिसका धर्म 'पाकी आधा ईमान', 'तालीम अहम बुनियाद है' मानने वाला है लेकिन मै इस पर कभी अमल नही करता ।
       मै हमेशा सउदी अरब दुबई जैसे देशों की दुहाई देकर अपनी बडाइयां करता हूँ, लेकिन मैने हिंदस्तान में खुद पर कभी कोई सुधार नही किया, न मै सुधरना चाहता हूँ।
हां मै मुसलमान हूं, मै अनपढ़ हूँ, क्यों की माँ-बाप ने बचपन से गैरेज पर नौकरी से लगाया और मै गरीब घर से हुँ।

      बेहतर तालीम देने के लिए माँ-बाप के पास रुपया नही है, और मेरी कौम तालीम से ज्यादा लंगर को तवज्जोह देती है, वो खिलाने मात्र को सवाब समझती है।

      मै मुसलमान हूं, मै खूब गालियां देता हूं, मै रिक्शा चलाता हूं, दूध बेचता हूं वेल्डिंग करता हूं मै गैरेज पर गाड़िया सुधारता हु, मै चौराहे पर बैठ कर सिगरेट पीता हूं,गांजा पिता हूं, ताश पत्ते खेलता हूं, क्योंकी मै अनपढ़ हूं, और मै अनपढ़ सिर्फ दो वजह से हूं, एक–माँ-बाप की लापरवाही, दूसरा –कौम के जिम्मदारो की लापरवाही ।
      माँ-बाप मजबूर थे, लेकिन मेरी कौम मजबूर न थी, न है! मैने आंखो से देखा है लाखो रुपयों के लंगर कराते हुए, मैने आँखों से देखा है लाखों रुपए कव्वाली पर उड़ाते हुए, मैने आँखों से देखा है बेइंतहा फ़िज़ूल खर्च करते हुए।
   काश! मेरे माँ-बाप या मेरी कौम मेरी तालीम की फ़िक़्र मंद होती तो आज मै प्रधान मंत्री या मंत्री न सही, लेकिन मैं आज क्लेक्टर, एडीएम,कमिश्नर जैसे बड़े पदों पर होता, बिना वोट पाये भी लाल बत्ती में होता, या कम से कम मै डॉक्टर,इंजिनियर,आर्किटेक्चर,या एक अच्छा बिजनेस मैन तो होता ही, लेकिन बचपन से मन में एक वहम घर कर गया है, "कि मियां तुम मुसलमान हो और मुसलमानो को यहाँ नौकरी आसानी से नही मिलती" लेकिन मैं ये तो भूल ही गया कि मेरे नबी ने तमाम जिंदगी तिजारत ही की और तालीम पर अहम् जोर दिया, फिर मै उनका उम्मती होकर नौकरी न मिलने की बात सोच कर तालीमात क्यों हासिल नही करता ?

  (नोट- दोस्तों ये तहरीर सिर्फ इस्लाही पोस्ट के लिए लिखी गयी है, रिक्शा चला कर पेट पालना या वेल्डिंग करना  दूध बेचना गैरेज के पाने उठाना या मजदूरी करना कोई गलत काम नही, लेकिन हम इसके लिए पैदा हुए है ये सोच कर तालीम हासिल न करना गलत है, खूब पढ़ाई करो, कि हर पद पर सिर्फ तुम दिखो, तुम्हे इज्जत से देखे, तुम पढ़े लिखे तबके में गिने जाओ, अंधविश्वास से दूर एक नयी जिंदगी जीकर मुल्क़ व क़ौम की ख़िदमत करे  और.....जहां प्रोपोगंडा नामक चीज ही न हो, आने वाली नस्लो को पढा लिखा कर हम अब तक के अपने इतिहास को बदल दे, यही एक ललक है कि ये कौम एक नया सवेरा देखे

रऊफ अहमद सिद्दीकी
संपादक
जनता की खोज
समाचार पत्र वे
मासिक पत्रिका

9286868383