परेशान है आयशा (रज़ि ) की बेटियां ,फातिमा(रज़ि ) की बहने
मुसलमानो की आधी ताक़त उस वक़्त ख़त्म हो गयी जब साज़िशन औरतो को परदे परहेज़ की आड़ में न सिर्फ तालीम से दूर कर दिया गया बल्कि तरबियत से बिलकुल अलग कर के सिर्फ घरो की चाहरदीवारी में रख दिया गया एक पूरी साज़िश के तहत इस्लाम का रूप रंग बदल कर उसको इतना बेरंग बना दिया गया कि आज मुसलमान औरते गुमराहियों के अंधेरो में गुम होती जा रही है. जिस मज़हब ने दुनिया में औरतो को उसके हक़ दिलाने की शुरुआत की उसी को मानने वालो में औरतो के हालात बहुत बुरे है। इसका नतीजा ये है की कुछ औरते बग़ावत कर के बेहयाई को आधुनिकता के रूप में अपनाने लगी है जब की एक दूसरा ग्रुप खुद को बेहद मज़हबी बनाने की कोशिश में न सिर्फ दुनिया और समाज से दूर कर के दकियानूस हो गया जिसकी वजह से अपनी औलाद और परिवार की भी सही तरबियत नहीं कर पाती। आज मुस्लिम समाज की हकीकत ये है की या तो आधुनिकता के नाम पर बेहयाई या फिर मज़हब के नाम दकियानूस बने हुए । जबकि रसूलल्लाह (सल्ल ) ने बीच के रास्ते को बेहतरीन बताया है। हम उस मां हज़रत आयशा की बेटियां है जो अपनी ही माँ की तरबियत से महरूम हो गयी है जो रसूलल्लाह की तालीम और तरबियत को तमाम औरतो तक पहुँचाती थी। जब तक इस आधी ताक़त को इकठ्ठा नहीं किया जायेगा तब तक इस क़ौम को अंधेरो में ही भटकना पड़ेगा,,,,,,,,,,,,जारी
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