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Saturday, August 4, 2018

अब भा ज पा को सिर्फ हिंदुत्व का सहारा

अभी तक भा ज पा  हर बार चुनाव जीतने के तीन ही संकल्प  लेकर वोटरों को आकर्षित करती रही है  - राम मंदिर,  समान आचार संहिता और धारा 370 .अब दूसरी बार भा ज पा की सरकार बनी है और अपने शासन के चार साल पूरे भी  कर चुकी है लेकिन ये संकल्प  न कभी पूरे हुए  और न हो  सकते हैं ।जनता की नज़र में ये मुद्दे अब अपना महत्व खो चुके हैं ।न नौ मन तेल हो पा रहा है और न राधा के नाचने की कोई संभावना है ।भा ज पा हमेशा हिन्दू और हिन्दुत्व के नाम पर वोट माँगती आई है ।कार्य प्रदर्शन , जन कल्याण और सफल प्रशासन के मुद्दे कांग्रेस के हैं अतः भा ज पा इनकी बात ही नहीं करती ।

चार साल में बहुत पानी यमुना में बह चुका ।  2019 का चुनाव करीब आ रहा है ।फिर चार राज्यों के विधान सभा चुनाव तो एकदम सिर पर आ पहुँचे ।भा ज पा किन मुद्दों पर वोट माँगे  ? नोट बन्दी पर ? जी एस टी पर ? किसानों की बदहाली पर ? पेट्रोल की कीमतों पर ? देश की पूँजी के पलायन पर ? तमाम कारण ऐसे पैदा हो गये हैं जिनके लिये अब नये बहाने काम नहीं आ रहे हैं ।पलटवार की भी कोई सीमा होती है ।कहाँ तक किये जाएँ  ? भा ज पा का प्रचार तंत्र उसकी गिरती हुई साख को बचाने में जी जान से लगा हुआ है पर बात बन नहीं पा रही है ।

भा ज पा के पास ले दे कर अब  हिन्दुत्व का ही सहारा बचा  है -

एक भरोसो , एक बल,  एक आस बिस्वास ।

वही हिन्दुत्व उसका तारणहार है ।वही संकट मोचन है ।भा ज पा अपने पारंपरिक हिन्दू वोटरों को एक नये मोहपाश में बाँध रही है ।आसाम में एन सी अार के मुताबिक चालीस लाख लोग वहाँ के नागरिकों में शामिल नहीं पाये गये हैं ।इनमें से अधिकांश बंगलादेशी घुसपैठिये मुसलमान हैं ।अब इन सबको खदेड़ कर भगा दिया जायेगा ।अब पूरे देश में असली नागरिकों का पंजीकरण कराया जाएगा ।तब इतने ही मुसलमान और पकड़ में आएँगे ।इन सब को यहाँ से बोरिया बिस्तर समेट कर जाना होगा ।हिन्दुओं के संतोष के लिये यह एक राम बाण है ।बहुत दिनों से उनको समझाया जा रहा है कि मुसलमान चार शादियाँ करते हैं ।आठ बच्चे पैदा करते हैं ।इनको हटाया नहीं गया तो कुछ दिनों में ये बहुमत में आ जायेंगे  ।ऊपर से ये बंगलादेशी घुस पैठिये मुँह उठाए चले आए हैं ।इनको यहाँ रहने का कोई हक नहीं है ।भारत को मुस्लिम मुक्त करना है ।

आव्रजन  की समस्या सभी देशों में है ।लोग किसी न किसी बहाने विकसित देशों में प्रवेश कर जाते हैं फिर जैसे तैसे ग्रीन कार्ड बनवा कर वहाँ की नागरिकता हासिल कर लेते हैं ।अमेरिका भी अवैध रूप से वहाँ रह रहे भारतीयों को वापस भेजने की बात करता है किन्तु यह हो नहीं पाता ।मैक्सिको से तो वहाँ इतने लोग चले आते हैं कि अब ट्रंप मैक्सिको की सीमा पर दीवार खड़ी करने जा रहे हैं ।हम भी कह रहे हैं कि इन बंगला देशियों को वापस भेज देंगे किन्तु क्या यह इतना आसान है  ? जो सैंतालिस साल से यहाँ बसे हुए हैं , जो इतने साल से टैक्स दे रहे हैं , वोट डाल रहे हैं उनको वापस भेजना संभव नहीं ।राजीव गाँधी ने  1985 में आसाम  समझौता किया था । तब जो 1971 की समय सीमा तय की थी उस पर तब के तभी अमल किया जा सकता था ।किन्तु तीन करोड़  व्यक्तियों की नागरिकता प्रमाणित करना एक बेहद पेचीदा काम था जो समय से पूरा नहीं हो पाया और तैंतीस साल निकल गये । हो तो अब भी नहीं पाया है पर सरकार को एक मुद्दा मिल गया ।सोचने वाली बात है कि आज के दिन सन 71 के आव्रजन की सीमा तय करना सर्वथा अनुचित और अमानवीय है ।यह सीमा पाँच से सात साल की होनी चाहिये थी  ।जो बहुत पहले से बसे हुए हैं उनको ग्रीन कार्ड जैसी नागरिकता देने की बात सोची जा सकती है ।या कोई और रास्ता निकाला जा सकता है पर देश निकाला  दे देना इस  समस्या का समाधान नहीं।इस तरह तो हम समस्या के समाधान के नाम पर तमाम नयी समस्याओं को आमंत्रित कर लेंगे ।

इतनी बड़ी संख्या में लोग यहाँ हमला करने या लूट पाट करने नहीं आए हैं ।सब के सब रोजगार और जीवन यापन के साधनों की तलाश में ही आते रहे हैं ।इनका आना वैसे ही लेना चाहिये  जैसे भारतीय नागरिक अमेरिका या कैनेडा में अवैध तरीके से घुस जाते हैं ।वहाँ भी इसका घोर विरोध होता है पर झगड़ा मानवीय स्तर का है ।हमारे देश में  इसे विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक मसला माना जा रहा है ।इसे सांप्रदायिक  रंग देकर उसका राजनैतिक लाभ उठाने से सरकार को रोका नहीं जा सकता है ।

आसाम के चुनाव में  प्रधान मंत्री ने यह तुरुप चाल चली थी कि हम बंगलादेशी घुसपैठियों को यहाँ से निकाल बाहर करेंगे ।अब चार राज्यों के चुनाव में भी हिन्दू वोटरों का इस वायदे पर भरोसा बना रहा तो इसका बहुत बड़ा लाभ सत्ता पक्ष को मिलेगा ।जो भी इसका विरोध करेगा वह देश द्रोही कहलाएगा ।समझने वाले तो समझ रहे हैं कि यह वैसा ही अधूरा संकल्प है जो  पूरा तो नहीं होगा किन्तु वोट दिलाने वाली कामधेनु बना रहेगा  ।नागरिकों की पहचान का काम अभी भी मुकम्मल तौर पर नहीं हो पाया है पर चुनाव जिताने के लिये संजीवनी ऊर्जा रखता है  राम मंदिर कहाँ बन पाया   ? समान आचार संहिता कहाँ लागू हुई ? धारा 370कहाँ हटी   ? पर वोट तो वायदों पर ही मिलता  है।पिछले वायदे तो पन्द्रह लाख के वायदों की तरह खोटे निकल गये ।इस नये वायदे में नयी चमक दमक है ।नया भरोसा है ।सरकार को इसकी सख्त जरूरत है ।सरकार का लक्ष्य बस  इतना ही है । जैसे भी संभव हो ,  सत्ता मिले और मिलने के बाद किसी भी कीमत पर बनी रहे ।फिर और क्या चाहिये  ?