रऊफ अहमद सिददीकी की दुनिया में आपका स्वागत है

Thursday, January 30, 2014

चाय और मिर्ज़ा जी

हम अपने पड़ोसी मिर्ज़ा जी से बड़े परेशान थे सूरज निकलना भूल सकता मगर वो सुबह सुबह अख़बार और
चाय और हमारी कुर्सी पर कब्जा करना नही भूलते थे हम से पहले हमारा अख़बार वो ही पढ़ते चाय का कप तो
हमारे हाथ में आने से पहले उनके हाथ में पहुच जाता था हमारी परेशानी हमारे पुराने नोकर मुन्नू खां शायद
समझ गये थे बोले -सिद्दीकी साहब अगर आप कहे तो ये परेशानी में दूर कर सकता हूँ -हम ने भी खुश होकर
हां कर दी -अगले दिन जेसे ही मिर्ज़ा जी ने आकर अख़बार पर कब्जा किया -मुस्कुराते हुए मुन्नू खां आ धमके - बोले मिर्ज़ा जी ठंडा लेंगे या गरम मिर्ज़ा जी ने रोब झाड़ते हुए कहा - गरम चाय -हुजुर कप में या गिलास में -
कप में -छोटे कप में या बड़े -
बड़े में
काली या दूध वाली
दूध वाली
मीठी या फीकी
मीठी
गर्म या ठंडी
गरम
हुज़ूर बिस्कुट
इतना सुन कर मिर्ज़ा जी आग भाबुला हो हए -भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी चाय -अख़बार मेज़ पर पटक
ऐसे गये की आज तीन दिन हो गये दिखाई नही दिए -मगर इन तीन दिनों में न मुझे अख़बार अच्छा लगा
न चाय और मेने फेसला किया अब में अख़बार और चाय बिना  मिर्ज़ा जी के ,,,,,,,कभी नही